सार

हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर वट सावित्री (Vat Savitri Vrat 2022) का व्रत किया जाता है। इस व्रत का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इस बार ये व्रत 30 मई, सोमवार को है।

उज्जैन. इस व्रत में सावित्री और सत्यवान (Story of Savitri Satyavan) की कथा सुनने का विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण ले आई थी। इसलिए ये माना जाता है कि वट सावित्री पर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनने से महिलाओं का सौभाग्य अखंड बना रहता है। सावित्री-सत्यवान की कथा के बारे में लगभग सभी जानते हैं, लेकिन सावित्री ने यमराज से कौन-से वरदान मांगे थे, जिसकी वजह से उन्हें सत्यवान के प्राणों को छोड़ना पड़ा, इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं, आज हम आपको उन्हीं वरदानों के बारे में बता रहे है…

सावित्री ने यमराज से मांग थे ये 3 वरदान
धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब यमराज सत्यवान के प्राण निकालकर यमलोक जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी। ये देखकर यमराज ने सावित्री को समझाने का काफी प्रयास किया लेकिन वो नहीं मानी। सावित्री का पति के प्रति प्रेम और समर्पण देखकर यमराज ने सावित्री से कहा कि “हे देवी, तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो और यहां से लौट जाओ।” 
तब सावित्री ने कहा कि “मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, इसलिए आप उनकी आंखों की ज्योति लौटा दीजिए, जिससे वे दोबारा इस संसार को देख सकें।” सावित्री की बात सुनकर यमराज ने उन्हें ये वरदान दे दिया और सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। सावित्री फिर उनके पीछे-पीछे चलने लगी।
ये देखकर यमराज ने सावित्री से कहा “देवी तुम वापस जाओ। इस मार्ग पर कोई जीवित मनुष्य नहीं चल सकता।”
तब सावित्री ने कहा कि “भगवन मुझे मेरे पतिदेव के पीछे-पीछे चलने का पूर्ण अधिकार है और ये मेरा कतर्व्य भी है। इसलिए ये किसी भी तरह से अनुचित नहीं है।” सावित्री की बात सुनकर यमराज और भी प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा।
सावित्री ने कहा कि “ मेरे ससुर राजा थे, लेकिन दुश्मनों ने उनका राज्य छिन लिया है, इसलिए वे वन-वन में भटक रहे हैं। उन्हें उनका राज्य पुन: मिल जाए।” यमराज ने सावित्री को ये वरदान भी दे दिया। इसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलते हुए यमलोक के द्वार तक पहुंच गई।
ये देखकर यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा। इस बार सावित्री ने यमराज से 100 संतान और अखंड सौभाग्यवती बनने का वरदान मांगा। यमराज ने सावित्री को ये वरदान भी दे दिया।
इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि “प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। लेकिन मेरे पति के प्राण तो आपके पास हैं ऐसे में आपका ये वरदान कैसे पूरा हो सकता है।”
सावित्री की बात सुनकर यमराज ने सत्यवान के प्राण छोड़ दिए और यमलोक चले गए।
सावित्री उसी स्थान पर लौट आई जहां उसके पति सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। यमराज के वरदान से वह पुन: जीवित हो गया। सावित्री और सत्यवान जब अपने घर लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका राज्य उन्हें पुन: मिल गया है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।

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