'1 बच्चा भी नहीं दे सकी'- ससुराल वालों के बुरे ताने, Isha Ambani ने IVF पर खुलकर की बात

Isha Ambani on IVF taboo: ईशा अंबानी ने बताया कि मेरी एक और प्यारी दोस्त प्रजनन परेशानी से जूझ रही थी। उसके ससुराल वाले उसकी आलोचना करते थे, उनका मानना ​​था कि हर महिला को स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करना चाहिए।

Shivangi Chauhan | Published : Jun 29, 2024 8:17 AM IST

हेल्थ डेस्क : ईशा अंबानी इन दिनों में अपने बेहतरीन फैशन सेंस के लिए सुर्खियां बटोर रही हैं, खासकर अपने लेटेस्ट वोग फोटोशूट में वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं। वोग के साथ अपने इंटव्यू में ईशा ने आईवीएफ के साथ अपनी जर्नी के बारे में खुलकर चर्चा की है। क्योंकि ईशा के जुड़वां बच्चे आदिशक्ति और कृष्णा ऐसे ही पैदा हुए हैं। अब ईशा ने आईवीएफ को सामान्य बनाने के महत्व पर जोर देते हुए बताया कि किसी को भी अलग-थलग या शर्मिंदा महसूस नहीं करना चाहिए। यह एक कठिन प्रक्रिया है जब आप इससे गुजर रहे होते हैं, तो आप शारीरिक रूप से थक जाते हैं। अगर आज दुनिया में आधुनिक तकनीक है, तो बच्चे पैदा करने के लिए इसका इस्तेमाल क्यों न करें? यह कुछ ऐसा होना चाहिए जिसके बारे में आप उत्साहित हों, न कि कुछ ऐसा जिसे आपको छिपाना पड़े। 

ईशा अंबानी की दोस्तों ने सहे सामाज के ताने 

ईशा अंबानी ने इसी चर्चा में बताया कि मुझे एक बार एक दोस्त के साथ हुई बातचीत की याद है जिसने बताया था कि उसकी बेटी आईवीएफ के जरिए पैदा हुई थी। हालांकि मैंने इसके बारे में ज़्यादा नहीं सोचा, लेकिन इसने प्रजनन क्षमता से जुड़ी सामाजिक वर्जनाओं को उजागर किया। कई महिलाओं को आलोचना का सामना करना पड़ता है। मेरी एक और प्यारी दोस्त प्रजनन परेशानी से जूझ रही थी। उसके ससुराल वाले उसकी आलोचना करते थे, उनका मानना ​​था कि हर महिला को स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करना चाहिए। 

वे मुझे बताते रहते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं जल्दी नहीं उठती। जब भी मैं दोस्तों के साथ बाहर जाती हूं तो लोग मुझे जज करते हैं। वे मुझे लगातार याद दिलाते हैं कि उनके परिवार में किसी को भी गर्भधारण करने में कभी परेशानी नहीं हुई है और यह हमेशा उनके लिए एक प्राकृतिक प्रक्रिया रही है। यह सुनकर बहुत दुख होता है। मेरे पति कहते हैं कि वे बस दुखी हैं और हमें उनकी टिप्पणियों को दिल पर नहीं लेना चाहिए, लेकिन मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती। 

सामाज में बांझपन आज भी टैबू

बांझपन से गुज़रना आसान नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि बांझपन का सामना करने वाली 40 प्रतिशत महिलाओं में मनोवैज्ञानिक निदान होता है, जो कि सबसे आमतौर पर डिप्रेशन या एंजाइटी का कारण होता है। संतानहीनता को अक्सर महिलाओं की गलती के रूप में देखा जाता है, जिससे प्रजनन संबंधी समस्याओं का सामना करने वाली महिलाओं को भारी इमोशनल तनाव का सामना करना पड़ता है। बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि IVF शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह से चुनौतीपूर्ण है। महिलाएं बच्चे को जन्म देने की अपनी इच्छा के कारण इसे सहन करती हैं, दर्दनाक इंजेक्शन, कई अपॉइंटमेंट और सफलता की निरंतर प्रत्याशा का सामना करती हैं, यह जाने बिना कि परिणाम सुखद होगा या निराशाजनक। 

ये अनुभव प्रजनन संबंधी संघर्षों और परिवारों को बढ़ाने में मदद करने के लिए IVF जैसी आधुनिक तकनीक के उपयोग के बारे में अधिक खुली बातचीत की आवश्यकता को सामने लाते हैं। चाहे बच्चा प्राकृतिक रूप से गर्भाधान किया गया हो, या चिकित्सा तकनीक की मदद से या नैचुरल डिलीवरी हो या सी-सेक्शन के माध्यम से जन्मे, इससे क्या ही कोई फर्क पड़ता है? बांझपन से जुड़े कलंक का मुकाबला करने में महिलाओं को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।

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