World down syndrome day: क्या होता है डाउन सिंड्रोम, क्यों इससे पीड़ित बच्चों की शक्ल होती है कॉमन, जानें
हेल्थ डेस्क: 21 मार्च को वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे मनाया जा रहा है। यह एक अनुवांशिक बीमारी है। एक रिपोर्ट के अनुसार 700 में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होता है। आज हम आपको बताते हैं इस बीमारी के बारे में...
Deepali Virk | Published : Mar 21, 2023 8:22 AM IST
क्या होता है डाउन सिंड्रोम
डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे 47 क्रोमोसोम के साथ पैदा होते हैं, जबकि एक सामान्य बच्चा 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है। ये विकार प्रेगनेंसी के दौरान ही बच्चों में आ जाता है। 46 क्रोमोसोम में 23 और 23 माता-पिता से बच्चे को मिलते हैं। जब माता-पिता के क्रोमोसोम में से 21वें क्रोमोसोम का डिविजन नहीं हो पाता है, तो 21वां क्रोमोसोम अपनी एक्स्ट्रा कॉपी बना लेता है। इसी कारण डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे 47 क्रोमोसोम के साथ पैदा होते हैं। यह एक शारीरिक और मानसिक विकार होता है, इसे ही डाउन सिंड्रोम या ट्राइसोमी 21 कहा जाता है।
क्यों होती है डाउन सिंड्रोम की बीमारी
डाउन सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जो ताउम्र रहती है, इसे कभी भी ठीक नहीं किया जा सकता है। आमतौर पर यह विकार बच्चों में प्रेगनेंसी के समय ही हो जाता है, जिसमें महिलाओं की उम्र 35 साल या उससे ज्यादा होती है। हालांकि, प्रीनेटल जांच के जरिए बच्चों में डाउन सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है।
एक जैसी शक्ल के होते हैं डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे
डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होने वाले बच्चों में काफी समानता होती हैं। उनके शरीर और चेहरे की बनावट काफी कुछ एक जैसी होती है। इनके चेहरे फ्लैट होते हैं, सिर और माथा छोटा होता है और नाक-कान भी छोटे होते हैं, आंखें बादाम की शेप की होती है, जीभ भी थोड़ी मोटी और उभरी हुई होती है। हाथ और पैर छोटे होते हैं। इसके अलावा इनकी हाइट भी थोड़ी कम होती है।
डाउन सिंड्रोम की गंभीरता
डाउन सिंड्रोम बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास सामान्य बच्चों की तुलना में कम होता है। इतना ही नहीं कई बार डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे बच्चों को बहरेपन, कमजोर आंखे, मोतियाबिंद, थायराइड, सोते वक्त सांस लेने में दिक्कत, अल्जाइमर और हार्ट संबंधी परेशानियां भी हो सकती हैं।
डाउन सिंड्रोम की पहचान कैसे हो
बच्चों में डाउन सिंड्रोम बीमारी का पता लगाने के लिए प्रीनेटल जांच सबसे ज्यादा जरूरी होती है। खासकर जो महिलाएं लेट प्रेगनेंसी करती हैं उन्हें डाउन सिंड्रोम की जांच जरूर करवानी चाहिए, क्योंकि उनमें इसकी आशंका सबसे ज्यादा होती है। इसमें उन्हें स्क्रीनिंग टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। स्क्रीनिंग के जरिए ही पता चलता है कि बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है या नहीं।
डाउन सिंड्रोम का इलाज
डाउन सिंड्रोम का कोई पुख्ता इलाज नहीं है, लेकिन इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को आप स्पीच थेरेपी या अन्य थेरेपी दिलवा सकते हैं, जिससे वो अपने रोजमर्रा के काम खुद करने लगते हैं। इतना ही नहीं डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे आम बच्चों की तरह स्कूल जा सकते हैं, लिख सकते हैं, पढ़ सकते हैं। बस इन्हीं प्यार और अपनापन देने की जरूरत है।