
Chhattisgarh Khadi Handloom Secrets: भारत की आजादी की लड़ाई में खादी सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का भी प्रतीक थी। 2 अक्टूबर को देशभर में गांधी जयंती मनाई जाती है, ऐसे में इस बार उनके स्वदेशी आंदोलन की खास खादी के बारे में बात करते हैं। महात्मा गांधी ने "स्वदेशी आंदोलन" के जरिए चरखे से खादी बुनने को स्वतंत्रता संग्राम को हथियार बनाया। यही कारण है कि खादी आज भी भारतीय संस्कृति और संघर्ष की याद है। लेकिन जब बात छत्तीसगढ़ की खादी की आती है, तो यह सिर्फ ऐतिहासिक धरोहर नहीं बल्कि आधुनिक फैशन की भी पहचान है।
छत्तीसगढ़ की खादी अपनी बनावट, रंग और टेक्सचर की वजह से बाकी राज्यों से अलग मानी जाती है। यहां की खादी मुख्य रूप से स्थानीय कारीगरों और बुनकरों द्वारा हाथ से तैयार की जाती है। कपास की कताई से लेकर बुनाई तक हर प्रक्रिया पारंपरिक तरीके से होती है। यही कारण है कि इसमें एक नेचुरल खुरदरापन और सादगी झलकती है, जो कि दूसरे मशीन से बनी खादी में नहीं मिलती।
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छत्तीसगढ़ की खादी की सबसे बड़ी खासियत इसकी टिकाऊ, क्वालिटी और मौसम के अनुकूल होती है। यह सर्दी में गर्म और गर्मी में ठंडी का अहसास कराती है। यहां की खादी में नेचुरल रंगों और ब्लॉक प्रिंटिंग का भी यूज होता है, जो इसे और बाकियों से और ज्यादा अलग बनाता है।
जहां एक समय खादी को केवल साधारण पहनावे या राजनीतिक प्रतीक के रूप में देखा जाता था, वहीं अब छत्तीसगढ़ की खादी डिजाइनरों और फैशन इंडस्ट्री के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है। बड़े फैशन शो में खादी से बने इंडो-वेस्टर्न ड्रेसेस, जैकेट्स, साड़ी और कुर्ते नए ट्रेंड सेट कर रहे हैं। युवा पीढ़ी भी अब इसे स्टाइल और एथनिक टच देने के लिए इसके आउटफिट अपने वार्डरोब में शामिल कर रहे हैं।
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गांधीजी के चरखे से जुड़ी यह खादी अब ग्लोबल मार्केट में "सस्टेनेबल फैशन" का प्रतीक बन चुकी है। पर्यावरण के अनुकूल और केमिकल-फ्री उत्पादन के कारण इसकी डिमांड लगातार बढ़ रही है।
देश के अन्य हिस्सों में बनने वाली खादी अक्सर हल्के कपड़े और सफेद या ऑफ-व्हाइट शेड में ज्यादा मिलती है। जबकि छत्तीसगढ़ की खादी में पारंपरिक कारीगरी, गहरे रंग और स्थानीय कला का मिश्रण देखने को मिलता है। यहां की खादी की सादगी के साथ-साथ इसमें क्षेत्रीय और स्थानीय लोककला का टच भी देखने को मिलता है। यही वजह है कि यह छत्तीसगढ़ में सिर्फ कपड़ा नहीं बल्कि संस्कृति और पहचान का भी प्रतीक मानी जाती है।