पति पॉजिटिव..4 माह का बेटा अस्पताल में, बूढ़े मां-बाप भी बिस्तर पर..दिन तो निकल जाता लेकिन रात नहीं कटती

कोरोना वायरस ने इस तरह तांडव मचाया कि कई परिवारों की खुशियां तहस-नहस हो गईं। लाखों लोग इस महामारी के प्रकोप में आकर अपनों से बिछड़कर हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह गए। हालांकि अच्छी खबर यह है कि इससे कई गुना लोगों ने बिना अस्पताल गए घर पर ही यह जंग जीत ली। क्योंकि उन्होंने अपना हौसला और हिम्मत बनाए रखी थी। साथ ही डॉक्टर की सलाह पर दवा लेते रहे। जिसकी दम पर कोरोना को उनके सामने घुटने टेकने पड़े और और हंसती-खेलती जिंदगी फिर से पटरी पर लौट आई। पढ़िए ऐसे ही एक कोरोना विनर की कहानी..

बैतूल (मध्य प्रदेश). कोरोना वायरस ने इस तरह तांडव मचाया कि कई परिवारों की खुशियां तहस-नहस हो गईं। लाखों लोग इस महामारी के प्रकोप में आकर अपनों से बिछड़कर हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह गए। हालांकि अच्छी खबर यह है कि इससे कई गुना लोगों ने अपना हौसला और हिम्मत बनाए रखी। जिसकी दम पर कोरोना को उनके सामने घुटने टेकने पड़े और हंसती-खेलती जिंदगी फिर से पटरी पर लौट आई। एमपी बैतूल के ऐसे ही एक शख्स हैं, जिन्होंने अपने जोश और जुनून से साबित कर दिखाया कि इस कोरोना रूपी तूफान से डरकर नहीं भागना है, बल्कि उसका डटकर सामना करना है। उन्होंने बताया कि जिस दिन मुझे घर पर 105 डिग्री बुखार था, उसी दिन पत्नी 4 माह के बेटे को लेकर अस्पताल गई थी। डॉक्टरों के कहने पर उसे भर्ती कराना पड़ा। अगर इस बुरे वक्हत में दोनों हौसला नहीं रखते तो कोरोना पता नहीं क्या तांडव मचाता। आइए जानते हैं उनकी यह जिंदादिल कहानी..

Asianetnews Hindi के अरविंद रघुवंशी ने मध्य प्रदेश के बैतूल जिला में रहने वाले 38 साल के नौजवान हरि यादव से बात की,जो कि भोपाल की एक निजी कंपनी में नौकरी करते हैं। लॉकडाउन में वह अपने गांव गए हुए थे, उन्हें नहीं पता था कि यहां आते ही वह संक्रमित हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि कैसे इस जानलेवा वायरस ने उनके परिवार को हिलाकर रख दिया। इस कोरोना रूपी तूफान ने हमारे परिवार की खुशियों को डुबोकर रख दिया था। लेकिन हमने भी सोच लिया था, कि इसमें से बचकर बाहर निकलेंगे और फिर धीरे-धीरे सब नॉर्मल होने लगा।

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4 माह के बेटे और बूढ़े मां बाप का चेहरा देख रोने लगा था
हौसला हो तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी हार जाती है। हमारे साथ भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ। 20 अप्रैल 2021 को अचानक तबीयत खराब हुई। तेज फीवर आया, हाथ पांव टूटने लगे और सिर दर्द होने लगा। रात भर में कमजोरी ने घेर लिया। मैं बात को समझ गया था कि ये लक्षण कोरोना संक्रमण के हो सकते हैं। मैंने जरा भी देरी नहीं की और सुबह होते ही सीधे बैतूल जिला अस्पताल गया और जांच कराई। एंटीजन टेस्ट में 21 अप्रैल 2021 को कोरोना संक्रमित पाया गया। थोड़ी देर के लिए चिंता हुई। जायज भी थी क्योंकि घर में बूढ़े मां बाप और साथ में 4 माह का बेटा समेत पूरे परिवार के साथ रह रहा था। कुछ समय के लिए मन निराशा से भर गया। अकेले में आंसू आने लगे और मायूस हो गया। फिर सोचा इस तरह कोरोना से जीत नहीं पाऊंगा और मैंने यहीं से निश्चय किया, अब कोरोना कुछ नहीं, बस डॉक्टरों की सलाह और अपने आत्मबल से इसे दूर भगाना है।

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कमजोरी इतनी कि मुंह में एक निवाला नहीं जा रहा था 
मैं घर से जांच कराने परिवार के सदस्य के साथ जिला अस्पताल तक आया था रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो परिवार के सदस्य के साथ घर वापस नहीं गया, बल्कि घर से अलग बाइक मंगवाई और खुद चलाते हुए घर पहुंचा। इस समय मैं बहुत थका हारा था हिम्मत से काम लिया जब घर पहुंचा तो सबसे पहले एक अलग कमरा निश्चित किया, वहां रहने लगा। आराम तो था नहीं लेकिन परिवार के सामने सब कुछ ठीक होने का दिखावा करते रहा। इतना कमजोर पड़ गया था कि पलंग से भी उठने में दिक्कत होती थी। लेकिन परिवार जब मुझे दुखी देखता तो वह मायूस हो जाते थे। फिर मैंने डॉक्टर ने जो दवाइयां दी थी यह बराबर ली खाना खाने का मन बिल्कुल नहीं हो रहा था मगर जबरन खाना खाया। 

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जिस दिन में संक्रमित हुआ उसी दिन बेटे को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा
हरि यादव ने बताया कि मेरे बीमार होने तक सब ठीक था, लेकिन जिस दिन मेरी रिपोर्ट संक्रमित आई उसके दूसरे दिन मेरा 4 महीने का बेटा भी बीमार हो गया। तबीयत ऐसी बिगड़ी कि उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इसके अलावा  माता-पिता को भी सर्दी-जुकाम और हल्का सा फीवर आ गया। हालांकि उनको कोरोना नहीं था। लेकिन मैंने उनको बिस्तर पर आराम करने का कह दिया था। मेरे लिए यह बड़ा दुख था पता नहीं मेरी पत्नी ने इसे कैसे जिया, लेकिन उसकी हिम्मत के सामने मैं दंग रह गया। वह कहने लगी आप चिंता मत करो मैं बेटे को लेकर अस्पताल जाती हूं और उसने भतीजे को साथ लिया और चली गई। अस्पताल में जांच कराने पर पता चला ब्लड में इन्फेक्शन है, भर्ती करना पड़ेगा। मैं घर के एक कमरे में बंद और परेशान था, बार बार रोना आता था। उधर पत्नी अस्पताल में बेटे की हालत देख दुखी थी। पर हम दोनों फोन पर संपर्क में थे। आपस में तय किया कि घबराने से कोई हल नहीं निकलने वाला बल्कि डटकर मुकाबला करना चाहिए मैं घर पर खुद का ध्यान रखता हूं आप अस्पताल में बेटे का इलाज करवाओ। 
 

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फिर क्या था मैंने हर तरह की समस्याओं को लेकर हेल्पलाइन पर कॉल किया और सलाह के आधार पर दवाइयां लेते गए किसी तरह का कोई वहम नहीं पाला कि ना ही किसी भी अफवाह पर ध्यान दिया घबराया तो बिल्कुल नहीं। सोच लिया था कि जो होगा देखा जाएगा।  किसी तरह से पांचवें दिन से मुझे आराम लगना शुरू हुआ तब तक मैंने मोबाइल नहीं चलाया किसी से ज्यादा बात नहीं की टीवी ज्यादा नहीं देखी बस खाने पीने पर ध्यान दिया जो मन हुआ वह मंगवा कर खाया। सुबह और शाम योगा और कसरत की और सकारात्मक सोच पैदा की, खाली समय में रामायण के दोहे चौपाइयां पढ़ी उनका अर्थ समझा इस बुरे समय में अपने जीवन में उतारा। महात्मा गांधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग का अध्ययन किया। सबके बीच परिवार में माता पिता की चिंता सबसे अधिक की मैंने उनके पास परिवार के अन्य सदस्यों का आना-जाना भी बंद करवा दिया उनकी देखभाल पहले से बढ़ा दी उनकी डाइट पर ध्यान दिया यह सब काम कॉल के माध्यम से कराया। यहां तक की कोरोना संक्रमण में मैंने परिवार को परिवार के ही दूसरे सदस्य से मिलने से रोका और इसकी वजह बताई।

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मेरी पत्नी अंदर से टूट चुकी थी, दिन कट जाता लेकिन रात भयानक होती
मुझे मुझसे ज्यादा चिंता मेरे बेटे की थी। क्योकि वह जन्म के चार महीने बाद ही अस्पताल में भर्ती हो गया था, वह भी उस दौरान जब कोरोना पीक पर चल रहा था। पत्नी मुझे और बेटे को लेकर बहुत दुखी थी। वह अंदर से टूट चुकी थी, लेकिन सामने आते ही मुस्कुराने लगती। रात को उसे नींद नहीं आती थी, दिन तो उसका किसी तरह से घर का काम और बेटे की देखभाल में कट जाता था, लेकिन रात नहीं कटती थी। वह हर पल यही सोचती अब क्या होगा। कल का दिन कैसा होगा। फिर भी उसका चेहरा देखकर कभी ऐसा नहीं लगा कि वह अंदर से इतना दुखी है। में अपने साथ-साथ बेटे की तबीयत का अपडेट लेते रहा पत्नी को तसल्ली दी कहा कि यही परीक्षा की घड़ी इसमें पास होना पड़ेगा। बेटे की चिंता करो लेकिन वहीं तक करो, ज्यादा चिंता में डूबने की जरूरत नहीं है माना कि बेटा का स्वस्थ होना जरूरी, लेकिन उसके लिए इतना भी परेशान होने की जरूरत नहीं है कि खुद की तबीयत बिगड़ जाए। मन में कई तरह की सोच पैदा करने से बेटे की तबीयत ठीक होने वाली नहीं है, बल्कि बेहतर इलाज कराने से ही उसे आराम मिलेगा। मेरी इन बातों ने पत्नी को इस बात का एहसास कराया कि दूर रहकर भी हम पास हैं। फिर क्या होना था अस्पताल में बेटे की तबीयत में तो आराम था, घर पर मैं भी पहले की तुलना में अच्छा महसूस करने लगा था।

पत्नी फोन पर एक ही सवाल पूछती थी सब ठीक तो हो जाएगा ना
पत्नी बहुत घबराई हुई थी फोन करेती सवाल पूछती आपको अच्छा लग रहा है आप ठीक हो जाएंगे बच्चा ठीक होगा कि नहीं, मैं उसे तसल्ली देता सब ठीक हो जाएगा घबराने की चिंता करने की बात नहीं यदि आप घबराओगे ऐसे में कहीं आपकी तबीयत खराब हो गई तो बहुत मुश्किल हो जाएगी इसलिए हिम्मत रखना है मेरी तबीयत या बेटे की तबीयत दोनों में से किसी की तबीयत ज्यादा गंभीर होती है तब भी हिम्मत से काम लेना पड़ेगा। फिर उसने बेटे और मुझे गंभीर नहीं होने दिया।

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बेटे की याद में ज्यादा सोच लिया तो फिर आया तेज बुखार
मैंने महसूस किया कि संक्रमण के दौरान ज्यादा चिंता करना सेहत के लिए बहुत नुकसान में डाल सकता है। यही मेरे साथ होते-होते बचा मैंने एक दिन ज्यादा सोच लिया चिंता की कि मैं बीमार हूं बेटा अस्पताल में भर्ती पत्नी फोन पर हमेशा बेबसी सी बात करती इतने में तो तबीयत बिगड़ गई, दूसरे दिन तड़के बुखार ने घेर लिया मैं परेशान हो गया डॉक्टर की सलाह पर दवाइयों का डोज बदलना पड़ा, तब आराम मिला इस बात से एक सीख मिलती है की जब तबीयत खराब हो और खासकर पूर्ण संक्रमण के दौरान तो बिल्कुल चिंता और तनाव में आने की जरूरत नहीं है, हौसला रखने से ही कोरोना संक्रमण से जीता जा सकता है।

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आईए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona

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