सार

देश में हर दिन कोरोना के लाखों केस आ रहे रहे हैं। हजारों लोग मर भी रहे हैं, जबकि ठीक होने वालों की तादाद लाखों में है। फिर भी, इंसान मरने वालों का आंकड़ा देखकर डर और खौफ में जी रहा है। सबको लग रहा है हर कोई इस वायरस की चपेट में आ जाएगा, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। सावधानी, बचाव और पॉजिटिव सोच रखने वाले शख्स से यह बीमारी कोसों दूर भागती है।

प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश). बहुत बुरा हाल है। सिर्फ कोरोना का नहीं, बल्कि माहौल का भी। आए दिन कोरोना पॉजिटिव लोगों का ग्राफ अप-डाउन हो रहा है। सरकार हर दिन रिकवर हुए लोगों और मौत का आंकड़ा देश को बताती है। हैरानी की बात यह है कि हमारा और हमारे समाज का पूरा फोकस मौत के आंकड़ों पर आकर रुक जाता है। लोगों को ज्यादातर इन्हीं आंकड़ों पर बात करते हुए सुना जाता है। रिकवर हुए लोगों पर बातें कम ही होती हैं। वायरस तो है लेकिन डर का वायरस भी कोरोना जितना घातक साबित हो रहा है। 99 फीसदी लोग ठीक हो रहे हैं, अगर इन पर चर्चा शुरू हो जाए तो बीमारी को हराने में हिम्मत का ऑक्सीमीटर बढ़ जाएगा।

Asianetnews के सुशील तिवारी ने प्रतापगढ़ के बुजुर्ग संतोष जी से बात की। इन्होंने अपनी शुरुआती हताशा, दर्द-तकलीफ के साथ हॉस्पिटल के पॉजिटिव माहौल के बारे में जो कुछ बताया वो कोरोना के हौवा को खत्म करने में हर किसी को मदद करेगी। छठीं कड़ी में पढ़िए एक बुजुर्ग ने कोरोना को कैसे हराया, शब्दशः....

पहली कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः 2 दिन बुरे बीते, फिर आया यूटर्न...क्योंकि रोल मॉडल जो मिल गया था

दूसरी कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने यूं जीती जंगः 3 सबक से देश के पहले जर्नलिस्ट ने वायरस की बजा डाली बैंड

तीसरी कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः 20 Kg वजन कम हुआ फिर भी 60 साल के बुजुर्ग से हार गया वायरस

चौथी कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः दवाई के साथ आत्मबल बढ़ाने-वायरस को हराने किए 2 और काम

पांचवी कड़ी: कोरोना से लोगों ने कैसे जीती जंगः वायरस हावी ना हो, इसलिए रूटीन को स्ट्रॉन्ग, क्वारंटाइन को बनाया इंट्रेस्टिंग

''मेरा नाम संतोष खंडेलवाल (65) है। प्रतापगढ़ जिला, उत्तर प्रदेश का निवासी हूं। कोरोना मुझे हुआ लेकिन सबसे ज्यादा मेरे बेटे और पत्नी ने इस बीमारी के दर्द को झेला। मैं हॉस्पिटल के अंदर यमराज से लड़ रहा था, और बाहर वो दोनों भगवान से मेरी जिंदगी के लिए दुआ कर रहे थे। कहने के लिए कोई एक बीमार होता है, हकीकत में परिवार का हर शख्स मेंटली और इमोशनली बीमार हो जाता है। अगस्त 2020 का महीना था। 4-5 दिन बुखार, जोड़ों में दर्द था। खाना भी अच्छा नहीं लगता था, कुछ स्वाद नहीं मिल पा रहा था। लोकल डॉक्टर को दिखाकर दवाई ले रहा था, लेकिन इसका कोई असर नहीं दिख रहा था। पॉजिटिव होने से एक दिन पहले सांस लेने में भी तकलीफ बढ़ गई थी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। बेटे को बुलाकर कहा, मुझे कहीं और दिखाओ। मेरी तकलीफ बढ़ती जा रही है। मैं बचूंगा नहीं। मुझे कहीं एडमिट करवा दो। मैं हार्ट का पेशेंट हूं। 25 साल पहले डॉक्टर ने मुझे कहा था, ऑपरेशन करवा लीजिए। लेकिन मैंने योग और आयुर्वेदिक दवाओं के दम पर खुद को फिट रखे आ रहा था। कभी कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई। लेकिन उस दिन मैं टूट रहा था। जो दर्द और तकलीफ मुझे थी, वो मैं किसी से बयां नहीं कर पा रहा था।''

मामला सीरियस था, इसलिए 15 मिनट के अंदर ICU में कर दिया शिफ्ट

''उस दिन बेटे को देखकर आंखें भर आईं। वो समझ गया पिता जी को ज्यादा तकलीफ है। उसने फौरन मुझे फेमली डॉक्टर के पास लेकर गया। डॉक्टर ने देखते ही कहा- आपने बहुत लेट कर दिया है। अब यहां कुछ नहीं हो सकता है। अगर इन्हें बचाना है तो तत्काल लखनऊ ले जाइए। यहां पर वो सुविधाएं नहीं हैं। डॉक्टर साहब ने आनन-फानन में मुझे लखनऊ के KGMU का रास्ता दिखा दिया। घर पर सभी तैयारियां करके दूसरे दिन सुबह बेटे के साथ चलने को तैयार हुआ। पत्नी भी जिद करके बैठ गई। वो मुझे अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। वो बेटे से बार-बार निवेदन कर रही थी। मैंने इशारे से उसे साथ चलने को कहा। फिर क्या था- सुबह 10 बजे के आसपास हम वहां पहुंच गए। संयोग अच्छा था। उस समय केस कम थे, इसलिए KGMU में तत्काल दाखिला मिल गया। सबसे पहले कोरोना का टेस्ट हुआ। शाम को 6 बजे के लगभग रिपोर्ट आ गई। वो पॉजिटिव थी। यह जानकारी मुझे नहीं दी गई। बेटे तुषार को यह मालूम था। डॉक्टरों को लगा- मैं बुजुर्ग हूं और इस बीमारी को सुनकर मेरे अंदर कुछ भी रिएक्शन हो सकता है। मामला थोड़ा सीरियस था, इसलिए मुझे 15 मिनट के अंदर ICU में जाने को कह दिया गया।''

बगल वाले बेड पर मौत देख मेरी बॉडी में सिहरन पैदा होने लगी थी...

'ICU में जब शिफ्ट हुआ, उस दिन मैं बहुत दुखी था। यह सब कुछ इतनी जल्दी हो गया कि मैं बेटे और पत्नी का चेहरा तक नहीं देख पाया। उनसे कुछ कह नहीं पाया था। आंखों में आंसू लिए मैं ICU में शिफ्ट हो गया। यहां पहुंचने के बाद भगवान से एक ही प्रार्थना की  कि हे प्रभु! मुझे यहां मौत मत देना। किसी तरह से घर पहुंच जाऊं, उसके बाद जो चाहे कर देना। घर पर कम से कम क्रियाकर्म तो सही से हो जाएगा। डर लग रहा था। यह डर इसलिए और बढ़ गया था क्योंकि मेरे बगल वाला बेड चला गया (मौत) था। मेरे सामने उसको प्लास्टिक में पैक किया गया था। यह देख मैंने अपना सिर दूसरी तरफ कर लिया लेकिन वहां के डॉक्टर बहुत मेहनती थे। उस इंसान को बचाने के लिए डॉक्टरों ने बहुत मेहनत की थी। जान लगा दी थी। बाहर भले ही लोग कहें कि डॉक्टरों ने मरीज को मार डाला लेकिन मैंने अपनी आंखों से उन सबको मेहनत करते हुए देखा था। वो हर संभव कोशिश कर रहे थे कि उनका पेशेंट बच जाए। लेकिन डॉक्टर भी भगवान के आगे हार जाता है। सामने उसकी मौत को देखकर मेरे अंदर सिहरन पैदा हो रही थी। सोचता था कोई मेरी पत्नी और बेटे को बुला दे, एक बार तो मिल लूं। वो दोनों भी लखनऊ में होटल लेकर रह थे। 11 दिन तक मैं वहां था, एक बार भी परिवार को देख नहीं पाया।'

पॉजिटिव माहौल का डबल डोज बना रामबाण

''लोग कहते थे या कहते हैं, कोरोना वाले पेशेंट के साथ डॉक्टर और स्टाफ छुआछूत जैसा व्यवहार करता है। यह गलत है, मुझे बड़ा सुकून तब मिला जब मैंने देखा डॉक्टर, नर्स, अटेंडर...सभी लोग मुझे आकर छू रहे हैं। मुझसे बात कर रहे हैं। एक दिन तो एक डॉक्टर ने मेरा हेड मसाज तक कर डाला। मतलब, वो लोग मुझे परिवार के सदस्य की तरह रख रहे थे। यहां तक अगर बेड पर कोई टॉयलेट कर देता तो कोई नाराज नहीं होता था। स्वीपर हंसते हुए साफ-सफाई करता था। यह देखकर हिम्मत मिलती थी। सुकून मिलता था। धीरे-धीरे डर दूर हो रहा था। डॉक्टर आकर बताते थे कि आप बहुत तेजी से रिकवर कर रहे हो। डॉक्टरों का व्यवहार देखकर मेरे सारे भ्रम दूर हो गए। मेरी सोच एकदम पॉजिटिव हो चुकी थी। मुझे लगा हॉस्पिटल का पॉजिटिव माहौल और मेरे अंदर की पॉजिटिव सोच ही अब इस बीमारी के लिए रामबाण दवा बनेगी।''

जनरल वार्ड में जब हुआ शिफ्ट तो वायरस के पैदा होने पर कर डाली रिसर्च

''11 दिन बाद रात 12 बजे ICU से जनरल वार्ड में मुझे शिफ्ट कर दिया गया। उस दौरान भी मैं टेंशन में आ गया। मुझे लगा भाई इतनी रात को क्यों निकाल रहे हैं। डॉक्टरों ने कहा- दादा घबराने की जरूरत नहीं है। अभी आप पूरी तरह से ठीक हैं, आपका ये बेड आपसे ज्यादा जरूरतमंद को दिया जाएगा। जनरल वार्ड में आने के बाद मुझे गांव जैसा माहौल मिल गया। सामने वाले पेशेंट से काफी बात होती थी। इस दौरान हम लोग कोरोना पर किसी तरह की चर्चा नहीं करते थे। एक-दूसरे के गांव, परिवार का हालचाल पूछते थे। किस्से कहानियां कहते थे। यह भी चर्चा होती थी जो हो रहा है, उसके कहीं ना कहीं हम ही जिम्मेदार हैं। जिस मात्रा में हम पेड़ काटते हैं, क्या उसी मात्रा में लगाते भी हैं? क्या प्रदूषण रोकने के लिए हमने कोई कदम उठाया? क्या हमारी गंगा पवित्र हुई? उनको दूषित किसने किया, हम इंसानों ने ही। क्या हमने पॉलीथिन का यूज बंद किया? प्रकृति को बचाने के लिए हमने सिर्फ दिखावा किया है। सिर्फ सरकार का मुंह देखने से चीजें कंट्रोल में नहीं होंगी। हमने अपने स्तर पर कोई प्रयास नहीं किया। ये सब बीमारियां प्रकृति हमें दे रही है। आपस में हम लोग इसी तरह की बातें करते थे। 12 दिन ऐसे ही कट गया।''

हॉस्पिटल में बजते थे शानदार गाने, होता था डांस...

''हॉस्पिटल में रहने के दौरान सबसे ज्यादा बच्चों की याद आती थी। पत्नी से जब बात होती थी, वो सिर्फ यही कहती थी हिम्मत मत हारना। 11 दिन ICU और जनरल वार्ड में 12 दिन, कुल मिलाकर 23 दिन यहां रहा। यहां पर बेटे और पत्नी से मुलाकात होती थी। पहली बार उन्हें देखा तो रोने लगा। वो लोग भी रो रहे थे। मुझे जिंदा होने की आश जाग गई थी। बेटे ने साथ नहीं छोड़ा। हर कदम पर वो मेरे लिए फिक्रमंद था। भगवान करे सबको ऐसा बेटा दे। जनरल वार्ड में एक पर्ची भी दी गई थी। उसमें योग करने की अलग-अलग स्टेप थे। हर दिन 2 बार योग करता था। बड़ा सुकून मिलता था। जनरल वार्ड में भी नियम का पूरा पालन किया जाता था। हर कोई एक-दूसरे से दूरी बनाकर बात करता था। अच्छी बातें होती थीं। हॉस्पिटल की तरफ से म्यूजिक चलता था। कई बार डांस भी हुआ। मस्ती भरा माहौल होता था। लगता ही नहीं था कि हम लोग बीमार हैं। एक दिन ऐसा हुआ कि वार्ड में एक ही परिवार के 4 लोग कोरोना पॉजिटिव आ गए। बच्चे की मां, बच्चा, पिता और दादी। वो लोग भी खूब मस्ती करते थे। चारों डांस भी करते थे। ईश्वर की कृपा से व्यवस्था टाइट थी। दूध-फल, बढ़िया खाना। अरे मेरा तो वजन बढ़ गया था।''

रात 12 बजे मुझे मिला था सरप्राइज...

''जनरल वार्ड में 9वें दिन मेरी जांच एक बार फिर हुई। रिपोर्ट निगेटिव आई। 12वें दिन मुझे डिस्चार्ज करने का आदेश जारी हुआ। मैं अंदर से बहुत खुश था। डिस्चार्ज में जैसे-जैसे लेट हो रहा था, मैं परेशान था। सोच रहा था कितनी जल्दी बाहर निकल जाऊं। जब बाहर निकला तो सामने बेटा और पत्नी खड़े थे। यह देखकर दोनों तरफ से खुशी के आंसू निकल पड़े। तीनों गले लगकर रो पड़े। मुझे लगा मैं एक बार फिर से पैदा हुआ हूं। नई जिंदगी मिल गई थी। पत्नी और बेटा 23 दिन तक होटल में रुके रहे। मुझे अकेला नहीं छोड़ा। लखनऊ से निकलकर मैं रात करीब 12 बजे अपने गांव पहुंचा। अंदाजा था सभी लोग सो चुके होंगे। सुबह सबसे मुलाकात होगी। लेकिन मेरी यह सोच तब काफूर हो गई जब देखा कि कार से उतरते ही ढोल-नगाड़े बजने लगे। मुझे फूल-माला से लाद दिया गया। मैं उस दिन बहुत रोया। पूरा परिवार मेरी आंखों के सामने था। उम्मीद नहीं थी वापस लौटकर आऊंगा। घर पर 15 दिन मैं क्वारंटाइन और रहा। अब सब कुछ पूरी तरह से ठीक है। मैं एकदम नॉर्मल हो गया हूं।''

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। 
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