सार

देश में हर दिन कोरोना के लाखों केस आ रहे रहे हैं। हजारों लोग मर भी रहे हैं, जबकि ठीक होने वालों की तादाद लाखों में है। फिर भी, इंसान मरने वालों का आंकड़ा देखकर डर और खौफ में जी रहा है। सबको लग रहा है हर कोई इस वायरस की चपेट में आ जाएगा, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। सावधानी, बचाव और पॉजिटिव सोच रखने वाले शख्स से यह बीमारी कोसों दूर भागती है।

बिहार. कोरोना की रिपोर्ट तो पॉजिटिव आ चुकी थी, अब इस टेंशन का राग अलापता फिरता या कुछ ऐसा करता कि वायरस मुझसे हाथ जोड़ ले। बिहार के चंदन सिंह की स्टोरी कुछ ऐसी ही है। उन्होंने वायरस को दिमाग में ही नहीं आने दिया। इसे सिर्फ एक रूटीन वायरल फीवर जैसा ट्रीट किया। उन्हें पता था, कोरोना-कोरोना रटता रहा तो ये बीमारी मुझे आसानी से हरा देगी। इनका एक ही मंत्र था कि इस बीमारी के दौरान अपने कॉन्फिडेंस को एवरेस्ट से भी ज्यादा ऊंचा कर लो ताकि कोरोना नामक वायरस ऊपर देखने की हिम्मत भी ना जुटा सके।

Asianetnews Hindi के सुशील तिवारी ने चंदन सिंह से बात की। उनका कॉन्फिडेंस, उनकी स्ट्रेटजी हर किसी के लिए एक मिसाल साबित हो सकती है। पांचवी कड़ी में पढ़िए इन्होंने कैसे कोरोना को हराया...शब्दशः...

 

पहली कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः 2 दिन बुरे बीते, फिर आया यूटर्न...क्योंकि रोल मॉडल जो मिल गया था

दूसरी कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने यूं जीती जंगः 3 सबक से देश के पहले जर्नलिस्ट ने वायरस की बजा डाली बैंड

तीसरी कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः 20 Kg वजन कम हुआ फिर भी 60 साल के बुजुर्ग से हार गया वायरस

चौथी कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः दवाई के साथ आत्मबल बढ़ाने-वायरस को हराने किए 2 और काम

'मेरा नाम चंदन सिंह है। बिहार के सिवान जिले का रहने वाला हूं। नोएडा में कार्यरत हूं। 6 अप्रैल 2021, ये दिन कोई कैसे भूल सकता है। इस दिन मेरे अंदर कोरोना वाले लक्षण बनने स्टार्ट हुए थे। 6 अप्रैल सुबह जब उठा तो मुझे फीवर था। आंखों में जलन थी। मुंह बहुत ज्यादा सूख रहा था। बार-बार पानी पी रहा था। ऑफिस भी जाना था। पत्नी ने कहा- फोन करके छुट्टी ले लो। मैंने बताया- यह संभव नहीं है, क्योंकि वहां ऑलरेडी कई लोग छुट्टी पर हैं। कुछ नाश्ता करने का मन नहीं हुआ। घर में दवाई रखी थी, उसे खाकर ऑफिस निकल गया। मन में यही था कि यह रूटीन फीवर है, दो-तीन खुराक दवा लूंगा और ठीक हो जाऊंगा। जैसे-तैसे ऑफिस पहुंचा, पता चला अलग-अलग डिपार्टमेंट के कई लोग पॉजिटिव हो चुके हैं। मैंने इन बातों को एक कान से सुना, दूसरे से निकाल दिया। क्योंकि मुझे खुद पर भरोसा था कि मैं तो सिक्योरिटी से लैश हूं। मतलब मास्क पहना हूं। किसी को टच नहीं कर रहा। टाइम-टाइम पर हाथों को सेनेटाइज कर रहा हूं...ऐसे कैसे कोरोना हो जाएगा। 2 बजते ही हालत खराब हो गई। शरीर के अंदर सिहरन बढ़ गई। बैठे नहीं जा रहा था। बॉडी में ऐंठन बढ़ने लगी। समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करूं। बॉस को बताया कि काम करने की कंडीशन में नहीं हूं। ज्यादा देर तक यहां रहा तो दिक्कत बढ़ जाएगी। उन्होंने तत्काल घर जाने को बोल दिया।''

7 अप्रैल का दिन बहुत टेंशन वाला था, क्योंकि कुछ कठोर फैसले जो लेने थे...

''एक बार मन में आया कि घर चलता हूं लेकिन तभी ऑफिस के कोरोना पॉजिटिव लोग याद आ गए। गाड़ी डॉक्टर के क्लीनिक के रास्ते मोड़ ली। डॉक्टर के यहां पहुंचा। तेज बुखार, गले में खराश, बदन दर्द, खांसी...जैसी दिक्कतें बताते ही वो समझ गया। उन्होंने कहा-  पहले कोरोना टेस्ट करवाओ, क्योंकि जो भी लक्षण बताए, वो सब कोरोना वाले हैं। कोरोना लक्षण वाली दवाइयां लिख दे रहा हूं लेकिन जल्द से जल्द टेस्ट करवा लो। मैं घर आया। पिता जी और पत्नी को यह जानकारी दी और बिना समय गंवाए खुद को कमरे में कैद कर लिया। कैद तो हो गया लेकिन परिवार को लेकर टेंशन होने लगी। सोच रहा था, पत्नी तो साथ थी, उसका भी टेस्ट करवाना होगा। पिता जी को एक कमरे में आइसोलेट कर दूंगा। लेकिन मेरे 7 साल के बेटे का क्या होगा। हम तीनों अगर खुद को कैद भी कर लेते हैं तो उसको कौन देखेगा। कहीं ये बीमारी...। अजीब सा ख्याल आ रहा था। डर था वो खेलते-कूदते मेरे पास ना आ जाए। वो एक जगह रुकने वाला नहीं था। लाख मना करने के बाद भी वो किसी ना किसी बहाने अंदर आ सकता था। 7 अप्रैल सुबह सबसे पहले मैंने गुड़गांव में रहने वाली सिस्टर को फोन लगाया। उसको सारी स्थिति बताई। वो तत्काल आने को तैयार हो गई। दोपहर तक वो आ गई और बेटे को साथ ले गई। मेरा बेटा बुआ से क्लोज था, इसलिए दिक्कत नहीं थी। सुकून मिला। अब मैं, पत्नी और पिता जी बचे।''

रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो पिता ने लगा डाली प्यार भरी डांट...

''अब टेंशन थी कोरोना टेस्ट की। बेटे को भेजने के बाद 7 अप्रैल को ही प्राइवेट हॉस्पिटलों में टेस्ट के लिए नंबर लगाने लगा। 8 अप्रैल को नजदीक के सेंटर पर टेस्ट का नंबर लगा। सुबह-सुबह पत्नी को लेकर पहुंच गया। मैडम को लक्षण नहीं था, फिर भी एहतियातन टेस्ट करवा लिया। टेस्ट करवाने के बाद दिनभर मन बेचैन रहा। शाम को रिपोर्ट आ गई। पत्नी की रिपोर्ट नेगेटिव थी, मेरा तो मुझे पहले से ही अंदाजा लग गया था। पिता जी को जब मैंने पॉजिटिव होने की खबर दी तो वो भड़क गए। किसी को छू लिया होगा, मास्क नहीं लगाया होगा, सही से हाथ नहीं धुला होगा...टाइप की बातें कहते हुए डांटने लगे, हालांकि ये उनका प्यार था। कमरे में बंद चुपचाप मैं वो सब सुन रहा था। टारगेट पर ऐसा नहीं कि मैं ही था, पत्नी भी थी। वो भी चुपचाप अपने कमरे में पिता जी की प्यार भरी डांट सुन रही थी। कुछ देर बाद वो शांत हो गए।''

कॉन्फिडेंस को एवरेस्ट से ऊंचा कर लिया...

''6 अप्रैल की शाम को डॉक्टर ने जब पॉजिटिव होने की जानकारी दी, उसी वक्त मैंने खुद को तैयार कर लिया था। उसी दिन आइसोलेट हो गया था। 8 अप्रैल को रिपोर्ट आने के बाद मैंने सोच लिया था कि खुद को एकदम स्ट्रांग कर लेना है। एक भी फालतू बातें दिमाग में नहीं आने देनी हैं। रूम में कैद रहना है। पूरी सावधानी बरतनी है। बराबर दवाई लेनी है। प्रोटीन युक्त खाना खाना है। एक्सरसाइज करनी है। कुल मिलाकर इम्यूनिटी को स्ट्रांग करना है। यह सब मैंने माइंड में बैठा लिया। पहले दिन से ही क्लियर था कि हॉस्पिटलाइज्ड वाली कंडीशन नहीं बनने देना है। मेरे अंदर ये बात चल रही थी कि मैं हॉस्पिटल से ज्यादा तेजी से घर पर रिकवर हो सकता हूं। मैंने अपने माइंड को एक मैसेज भेजा कि भाई कोरोना कोई हौवा नहीं है। बी पॉजिटिव। कॉन्फिडेंस को एवरेस्ट से ज्यादा ऊंचा कर लिया था, और वायरस से कह भी दिया था कि अब हिम्मत है तो आंख उठाकर ऊपर देख।''

कुछ दिनों के लिए मेरी टीचर बन गईं थी मिसेज

''6 अप्रैल को मैंने भारतीय औषधालय की तरफ से आइसोलेशन का पूरा चार्ट भी डाउनलोड कर लिया था। उसको सिर्फ देखा ही नहीं, बल्कि फॉलो करना भी स्टार्ट कर दिया। ये चार्ट मैडम को भी व्हाट्सएप कर दिया। मैं थैंकफुल हूं मैडम जी का कि उन्होंने पूरा सपोर्ट किया। उन्होंने मेरा पूरा सिस्टम बना दिया था। कई बार ढीला पड़ जाता था, लेकिन वो मुझसे चार कदम आगे रहती थीं। हर चीज टाइमली मिलती थी। कुछ दिनों तक वो मेरी टीचर बन चुकी थीं। स्ट्रिक्ट होकर रूटीन को फॉलो करवाती थीं। चार्ट में टाइम के हिसाब से चीजें डिवाइड थीं। मैं भूल ना जाऊं, इसलिए चार्ट को मोबाइल के होम पर भी लगा रखा था। ताकि जब भी मोबाइल देखूं, वो चार्ट सामने हो।''

कोरोना को हराना था, इसलिए सिस्टम को बनाया स्ट्रॉन्ग

''सिस्टम को स्ट्रांग बना लिया था। सुबह 6 बजे उठ जाना था। सबसे पहले एक ग्लास गुनगुना पानी पीता था। शुरुआत में तो गर्म नींबू वाला पानी लेता था लेकिन इससे खराश बनने लगी थी। बाद में सिर्फ गर्म पानी लेने लगा। फ्रेश होने के बाद योग शुरू होता था। करीब आधे घंटे तक अनुलोम-विलोम सहित रामदेव के बताए हुआ 5 योग करता था। इसके बाद भाप लेता था। सुबह 8 से 8.15 बजे तक विटामिन सी युक्त खाना खा लेता था। खाने में पनीर फ्राई, वोकली (हरा गोभी), दलिया लेता था। यह सुबह का सबसे पहला डाइट था। इस दौरान चाय बंद कर दी थी। गैप दे-देकर सेब-ऑरेन्ज खाता रहता था। इस दौरान काढ़ा भी पीता था। काढ़े में सात आइटम (लौंग, काली मिर्च, तेजपत्ता, अजवाइन, हल्दी, तुलसी पत्ता, शहद-नींबू, दालचीनी) होता था। दिन में 5-6 बार भाप लेता था। गले में खंरास थी इसलिए गर्म पानी में कच्ची हल्दी, सेंधा नमक मिलाकर गरारे करता था। इस दौरान जो सबसे जरूरी चीज थी, वो था 5 से 6 लीटर पानी। डॉक्टर ने भी कहा था गुनगुना पानी जितना पियोगे, उतना जल्दी आप रिकवर होगे। आइसोलेशन के दौरान मैंने कभी चावल नहीं खाया। डॉक्टर ने गेंहु वाले प्रॉडक्ट को ज्यादा से ज्यादा खाने को कहा था। दलिया, रोटी आदि। गेहुं इसिलए क्योंकि इसमें इम्युनिटी लेबल बढ़ाने की शक्ति होती थी। दोपहर के खाने में रोटी, कढ़ी लेता था। कढ़ी इसलिए क्योंकि वो खट्टा और उसमें कढ़ी पत्ता होता था। यह भी इम्यूनिटी के लिए रामबाण होता है। शाम को आधे घंटे फिर योगा करता था।''

हर दिन एक वायरस खत्म हो रहा था...

''6 से लेकर 9 अप्रैल तक मुझे फीवर, दर्द, जलन, थकान ज्यादा थी। 10 को फीवर खत्म हो गया। लेकिन इस बीच गले में भयानक दर्द बढ़ गया। इसके लिए अलग से कोई दवा नहीं ली। गरारा और भाप की मात्रा बढ़ा दी थी। 12 अप्रैल तक दर्द गायब हो गया। गले में दर्द खत्म हुआ तो खांसी शुरू हो गई लेकिन यह भी दो-तीन दिन में अपने आप ठीक हो गया। रात में सब्जी, दो रोटी और कढ़ी लेता था। सोने से पहले एक ग्लास हल्दी वाला गर्म दूध लेता था। हल्दी वाला दूध सुबह भी लेता था। इस दौरान दिन में 2 से 3 बार ऑक्सीमीटर से अपना ऑक्सीजन लेबल भी नाप लेता था।''

पॉजिटिव सोचने के सिवा कोई और रास्ता नहीं था, इसलिए क्वारंटाइन को बनाया इंट्रेस्टिंग...

''इस बीच मोबाइल देखना, आराम करना...यही दिनचर्या थी। चैटिंग से खुद को दूर कर लिया था। क्योंकि पता था लोग कई सवाल करेंगे। कुछ सवाल नेगेटिव भी हो सकते हैं। इसलिए दूरी बनाना मुझे ठीक लगा। पॉजिटिव और मोटीवेशनल मूवीज बहुत देखीं। एनर्जी वाले गाने खूब सुने। मन में कभी नेगेटिव ख्याल नहीं आने दिया। पिता जी, पत्नी और मैंने डिसाइड किया था कि नेगेटिव बातें मन में नहीं आने देनी हैं क्योंकि वो मुझे और कमजोर कर देंगी। मुझे पता था, इसका कोई इलाज नहीं है। अगर आपके अंदर हिम्मत कम होगी तो बीमारी हावी होती चली जाएगी। इसलिए पॉजिटिव सोचने के सिवा कोई और रास्ता नहीं था। सोचता था, जो होना था वो हो चुका है। अभी मेरी उम्र ही क्या है। जिंदगी में बहुत कुछ करना बाकी है। यह सब सोचकर मन में अच्छे ख्याल आते थे।''

10 फीट दूर बैठे पिता जी का आया इमोशनल वीडियो कॉल...

''वीडियो कॉल से घरवालों से बातचीत होती थी। मैं, पिता जी, पत्नी और गुड़गांव में बैठा बेटा। ये चारों लोग एक साथ वीडियो पर आते थे। खूब मस्ती करते थे। एक दूसरे की टांग खींचते थे। हंसी-मजाक करते थे। पिता जी और पत्नी से आमने-सामने दरवाजा खोलकर बात नहीं कर सकते थे। वायरस के संक्रमण का खतरा था, इसलिए अपने-अपने कमरे में बैठकर वीडियो कॉल पर बात होती थी। हमने डिसाइड किया था कि कोई भी बीमारी से रिलेटेड बात नहीं करेगा। 6 से लेकर 9 अप्रैल तक मैंने पिता जी से फोन पर बात की थी, इस बीच वीडियो कॉल नहीं किया। लेकिन 10 अप्रैल को 10 फीट दूर कमरे में बैठे पिता जी का वीडियो कॉल आया। मैं सकपका गया। वो मेरा चेहरा देखकर रोने लगे। कुछ सेकेंड बाद उन्होंने फोन काट दिया। 4-5 दिन तक उन्होंने बेटे का चेहरा जो नहीं देखा था। हालांकि, कुछ देर बाद उन्होंने वापस कॉलबैक किया। उनको हिम्मत दी कि अब मैं पूरी तरह से ठीक हूं। इसके बाद सब कुछ नॉर्मल होने लगा।  20 अप्रैल तक मैं पूरी तरह से ठीक हो चुका था। 21 अप्रैल से ऑफिस का काम भी स्टार्ट कर दिया।''

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। 
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