Corona Winner: 70% लंग्स खराब, लगा नहीं बचूंगी, डॉ.ने मान लिया था हार...चमत्कार से जीती जंग

भारत में अभी कोरोना वायरस की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है। हालांकि संक्रमण के मामलों में काफी हद तक गिरावट आई है। लेकिन लोगों के दिलों में इसका डर अभी भी बना हुआ है। यह डर और भय अच्छा है, क्योंकि आपकी जरा सी लापरवाही के चक्कर में बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। खौफ के इस माहौल में कई मरीज ऐसे भी थे, जिन्हें संक्रमण मौत के दरवाजे तक ले गया था। लेकिन उनकी सकारात्मक सोच और जिंदगी जीने के जज्बे के आगे बीमारी को घुटने टेकने पड़े और कोरोना की जंग जीत गए। ऐसे ही एक कोरोना विनर ने इस महामारी पर जीत के अनुभव बताए...

Asianet News Hindi | Published : Jun 4, 2021 6:28 PM IST / Updated: Jun 12 2021, 05:51 PM IST

भोपाल (मध्य प्रदेश). भारत में अभी कोरोना वायरस की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है। हालांकि संक्रमण के मामलों में काफी हद तक गिरावट आई है। लेकिन लोगों के दिलों में इसका डर अभी भी बना हुआ है। यह डर और भय अच्छा है, क्योंकि आपकी जरा सी लापरवाही के चक्कर में बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। महामारी अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। इसलिए घर में रहिए और परिवार को सुरक्षित रखिए। इस वायरस ने कई घरों को तबाह कर दिया, कई बच्चों के सिर से माता-पिता का साया छीन लिया है। खौफ के इस माहौल में कई मरीज ऐसे भी थे, जिन्हें संक्रमण मौत के दरवाजे तक ले गया था। लेकिन उनकी सकारात्मक सोच और जिंदगी जीने के जज्बे के आगे बीमारी को घुटने टेकने पड़े और कोरोना की जंग जीत गए। ऐसे ही एक कोरोना विनर ने इस महामारी पर जीत के अनुभव बताए...

Asianet news के अरविंद रघुवंशी ने मध्य प्रदेश रायसेन जिले के उदयपुरा शहर में रहने वाली एक महिला शिक्षिका पुष्पा रघुवंशी से बात की। जिनकी बहादुर बेटी ने 15 दिन तक संघर्ष कर अपनी मां को कोरोना संक्रमण से विजय दिला दी। पूरा परिवार चिंतित था, लेकिन बेटी ने हार नहीं मानी। आइए जानते हैं कैसे वह इस संक्रमण की चपेट में आईं और कैसे घर में रहकर कोरोना को मात देने में कामयाब हुईं।

कोरोना गाइडलाइन का पूरा पालन किया फिर भी हो गया कोरोना
मैं सिलवानी तहसील के एक गांव में सरकारी टीचर हूं, लेकिन महामारी की वजह से स्कूल बंद होने के कारण पिछले एक साल से अपने पर घर थी। यहीं से बच्चों की मोबाइल के जरिए ऑनलाइन क्लास लेती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था, परिवार में मैं मेरे पति और मेरी 23 साल की बेटी अच्छे से रह रहे थे। पहले सीजन से लेकर दूसरी लहर तक हमारे घर में कोई कोरोना का शिकार नहीं हुआ था। क्योंकि कोरोना गाइडलाइन का पूरा पालन कर रहे थे। जब तक कोई जरुरी काम ना हो घर से बाहर नहीं जाते थे। भगवान से भी यही प्रार्थना करते थे कि जैसे पहली लहर में हम ठीक रहे, वैसे ही इस बार हम पर कृपा बनाए रखना। क्योंकि मुझे पहले से ही सांस की बीमारी थी, अगर संक्रमित हो जाती तो पता नहीं क्या होगा। 

शरीर का पूरा हिस्सा टूटने लगा और सांस फूलने लगी
2 मई को अचानक मेरे पति की तबीयत खराब हुई, दूसरे दिन उनको तेज बुखार और सर्दी-खांसी के लक्षण हुए। इसके बाद हमने डॉक्टर को दिखाया तो वह निगेटिव पाए गए। उन्होंने एक सप्ताह की दवा दी, लेकिन वह चार दिन बाद ही ठीक हो गए, लेकिन कमजोरी बनी हुई थी। इसलिए उन्हें बेड रेस्ट करने की सलाह दी गई थी। इसी दौरान 5 मई को मुझे भी बुखार आया, सांस लेने में दिक्कत होने लगी, बुखार तेज बढ़ गया, शरीर का पूरा हिस्सा टूटने लगा। मेडिकल से लाकर एक दो दिन दवा भी खाई, लेकिन कोई आराम नहीं लगा। जिसके बाद मैंने अपने लक्षण बताए तो डॉक्टर ने कोरोना जांच की सलाह दी। किसी तरह जांच कराई और दवा लेकर घर आ गए।

पॉजिटिव सुनते ही मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई
घर पहुंचकर मेरी तबीयत और ज्यादा बिगड़ गई। घबराहट होने लगी, बार-बार यही सोचती की कोरोना हो गया तो पता नहीं क्या होगा। जांच की रिपोर्ट आने में 3 दिन का वक्त लगा और मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। यह सूचना मिलने पर मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई। मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। लेकिन बेटी मेरा हौसला बनाए रखती, बार-बार यही कहती मम्मी कुछ नहीं होगा नॉर्मल है तीन से चार दिन में सब ठीक हो जाएगा। डॉक्टरों ने कोरोना डोज देकर घर में रहने की सलाह दी। लेकिन घर आते ही घबराहट और बढ़ गई, जिसका नतीजा यह हुआ कि तबीयत सुधरने की जगह बिगड़ती चली गई। पलंग से उठने की हिम्मत भी नहीं बची थी। एक गिलास पानी को पीने में 15 मिनट लगते थे। खाना खाने का भी मन नहीं करता था। दो दिन तक एक रोटी भी नहीं खाई, बेटी जबरदस्ती सुबह-शाम एक-एक कटोरी दलिया खिला देती थी। 

डॉक्टर कह चुके थे, अब अस्पताल में भर्ती होना ही एक विकल्प
घर में ऐसा कोई नहीं था जो अस्पताल ले जा सकता, क्योंकि पति पहले से ही बीमार थे और अकेली बेटी क्या करती। इसलिए मैंने घर में रहने की जिद की। फिर गांव से मेरा भतीजा आया और तीसरे दिन मुझे अस्पताल लेकर गया। डॉक्टरों ने जब मेरा ऑक्सीजन लेवल चेक किया तो 96 से गिरकर 85 पर आ चुका था। वहीं फैंफड़ों में भी संक्रमण बढ़ रहा था। क्योंकि सांस की बीमारी होने की वजह से फैंफड़ों पर संक्रमण का ज्यादा असर पड़ रहा था। 70 प्रतिशत से ज्यादा लंग्स खराब हो चुके थे। डॉक्टरों ने कहा कि अब तो आपके पास एक ही विकल्प है कि आप जिला अस्पताल में भर्ती हो जाइए। नहीं तो प्रॉब्लम बढ़ सकती है। लेकिन में एडमिट होने के लिए तैयार नहीं थी। क्योंकि जब भी डॉक्टरों और नर्सों को पीपीई किट में देखती तो घबराहट होने लगती थी। फिर टीवी में जिस तरह से अस्पतालों के बारें में खबरें चल रही थीं तो और भी डर जाती। कई बार मन बनाया, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने की हिम्मत नहीं कर पाई।

घर को बेटी ने बनाया अस्पताल और बन गई खुद डॉक्टर 
इस मुश्किल घड़ी में मेरी बेटी ने जो किया वह शायद अस्पताल में एक डॉक्टर भी नहीं कर पाता। उसने सबसे पहले घर की टीवी बंद की और मेरे मोबाइल का नेट बंद करवा दिया। ताकि मैं किसी तरह से कोरोना की खबरें नहीं सुन सकूं। वह डॉक्टरों के टच में बराबर रहती और उनके बताए अनुसार मुझे दवा देती। रोज किसी ना किसी के बारे में झूठ कहती कि मम्मी ये ठीक हो गए वो ठीक हो गए, उनको भी कोरोना था। ताकि में अपना हौसला बनाए रखूं। वह 24 घंटे में से 14 घंटे हर 10 मिनट में मुझसे बात करती थी। कभी बुआ का किस्सा निकाल लेती तो कभी परिवार में हुई शादी का। कुल मिलाकर वो मुझे कोरोना टॉपिक  से हटाना चाहती थी। क्योंकि में बहुत ज्यादा घबरा रही थी।

आज बेटी नहीं होती तो में भी नहीं होती
बेटी ने घर और मेरे कमरे की सारी खिड़कियां खोल दीं ताकि शुद्द हवा आ सके।  इसके बाद मैं सुबह घर की बालकनी में ताजा हवा लेने लगी। बेटी जबरदस्ती करके मुझे खाना खिलाती, रोजाना सुबह-शाम जूस देती और योगा के साथ आधे घंटे हल्की-फुल्की एक्सरसाइज कराती। नाश्ते के लिए वह रात में चने पानी में भिगो देती और सुबह खाली पेट गुड़ के साथ खाने को देती। रात को सोने से पहले वह रामायण के दोहे चौपाइयां पढ़कर मुझे सुनाती और उनका अर्थ बताती। जिससे मेरे मन में किसी प्रकार की कोई निगेटिविटी ना आए। एक सप्ताह बाद  धीरे-धीरे प्रॉपर डाइट से मुझे थोड़ा बेहतर लगने लगा। देखते ही देखते में कुछ ही दिनों में रिकवर होने लगी।

हर एक घंटे में एक ही सवाल आपको अच्छा लग रहा है?
में होम आइसोलेशन थी, लेकिन इस दौरान मेरी बेटी और भतीजा हर दिन डॉक्टर के संपर्क में थे। दवाइयों से लेकर खाने तक उन्होंने जो कुछ बताया, उसी का वह पालन कराते। सुबह शाम वह मेरा ऑक्सीजन लेवल चेक करती थी। 10वे और 11वें दिन के बाद मेरा बुखार भी उतर गया और सर्दी-खांसी भी चली गई। कोरोना संक्रमित के दौरान बेटी हर एक घंटे में मुझसे एक ही सवाल पूछती आप कैसा महसूस कर रही हो? घबराहट तो नहीं हो रही?  चिंता नहीं करो आप जल्द ठीक हो जाएंगी। आप तो एक टीचर हैं ऐसे कैसे हिम्मत हारोगी। शायद बच्ची की इसी हिम्मत की वजह से मैंने कोरोना को हरा दिया।

संदेश: हाथ जोड़कर विनती करती हूं..लापरवाही मत कीजिए
कोरोना जंग जीत चुकीं पुष्पा रघुवंशी ने बताया कि मैं आखिर में यही कहूंगी कि गंभीर स्थिति में पहुंचने के बाद भी डॉक्टरों की सलाह और सकारात्मक सोच बनाए रखिए। साथ ही इस दौरान अपने परिवार से बात करते रहिए। क्योंकि जब आपका परिवार आपके साथ होता है तो आप कोरोना तो क्या इससे और बड़ी भी कई जंग जीत सकते हैं। मेरा यही निवेदन है कि अभी कोरोना गया नहीं है, अगर आपने जरा सी भी लापरवाही की तो वह आपको जकड़ लेगा। इसलिए घर में रहिए और सुरक्षित रहिए।


Asianet News का विनम्र अनुरोधः आईए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona
 

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