PM Modi In Bhopal : कौन हैं भूरी बाई जिन्होंने मोदी को दिया अनमोल तोहफा, जानिए इसकी खासियतें..

Published : Nov 15, 2021, 02:17 PM IST
PM Modi In Bhopal : कौन हैं भूरी बाई जिन्होंने मोदी को दिया अनमोल तोहफा, जानिए इसकी खासियतें..

सार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झाबुआ से लाई गई आदिवासियों की पारंपरिक जैकेट और डिंडोरी से लाया गया आदिवासी साफा पहनाया गया। इस दौरान पद्मश्री भूरिबाई ने उन्हें एक पेंटिंग भेंट की, जिसकी हर तरफ चर्चा होने लगी है।

भोपाल : PM नरेंद्र मोदी (narendra modi) भगवान बिरसा मुंडा (birsa munda) की जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस समारोह में शामिल होने के लिए भोपाल (bhopal) के जंबूरी मैदान (jamburi maidan) पहुंच चुके हैं। आदिवासी कलाकारों ने पारंपरिक नृत्य के साथ उनका स्वागत किया। भाजपा के वरिष्ठ नेता लक्ष्मीनारायण गुप्ता का सम्मान किया। मंच पर प्रधानमंत्री को झाबुआ से लाई गई आदिवासियों की पारंपरिक जैकेट और डिंडोरी से लाया गया आदिवासी साफा पहनाया गया। इस दौरान पद्मश्री भूरी बाई (Bhuribai) ने उन्हें एक पेंटिंग भेंट की, जिसकी हर तरफ चर्चा होने लगी है। जानिए कौन हैं भूरी बाई और उन्होंने पीएम को जो तोहफा दिया है, क्या है उसकी खासियत..

भूरी बाई का अनमोल तोहफा
मध्यप्रदेश (madhya pradesh) की प्रख्यात चित्रकार पद्मश्री भूरी बाई ने जनजातीय कलाकृति को दर्शाती सुंदर पेंटिंग भेंट की। भूरी भाई ने प्रधानमंत्री को भराड़ी शीर्ष के तैयार की गई आदिवासी भील पिथौरा पेटिंग भेंट की है। ये पेंटिंग भील समुदाय में होने वाली शादी की मुख्य रस्म को दिखाती है। इसमें लड़की की शादी के समय हल्दी और मेंहदी से भराड़ी बनाई जाती है। भराड़ी के समय मोर को महत्व दिया गया है। जो संदेश देती है कि भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय मोर की रक्षा करनी चाहिए। ऐसी ही पूरी पेंटिंग में शादी की रस्म को दिखाया गया है। 

कौन हैं भूरी बाई?
आदिवासी समुदाय से आने वाली भूरी बाई, मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पिटोल गांव की रहने वाली हैं। बचपन से ही भूरी बाई चित्रकारी करने की शौकीन थी। उन्होंने कैनवास का इस्तेमाल कर आदिवासियों के जीवन से जुड़ी चित्रकारी को करने की शुरूआत की और देखते ही देखते ही उनकी पहचान पूरी देश में हो गई। भूरी बाई की बनाई गई पेटिंग्स ने न केवल देश बल्कि विदेशों में भी पहचान बनाई। उनकी पेटिंग अमेरिका में लगी वर्कशॉप में भी लगाई गई। जहां उनकी पेटिंग खूब पसंद की गई। वे देश के अलग-अलग जिलों में आर्ट और पिथोरा आर्ट पर वर्कशॉप का आयोजन करवाती हैं।

पिता से विरासत में मिली पिथौरा कला
भूरी बाई का यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता था। भूरी बाई पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने गांव में घर की दीवारों पर पिथोरा पेंटिंग करने की शुरूआत की। बाद में उनकी पेटिंग की पहचान सब जगह में होने लगी। इसके बाद भूरी बाई ने परिवार के साथ भोपाल आकर 25 साल तक मजदूरी की। उस दौर में भोपाल में पेटिंग बनाने का काम करती थीं। बाद में संस्कृति विभाग की तरफ से उन्हें पेटिंग बनाने का काम दिया गया। जिसके बाद वे भोपाल के भारत भवन में पेटिंग करने लगीं। पद्मश्री भूरी बाई ने संघर्ष के दिनों में अपनी प्राचीन विरासत को सहेज कर रखा। पारंपरिक कला के माध्यम से भूरी बाई ने देशभर में खूब नाम कमाया। 45 साल की भूरी बाई को प्रदेश सरकार 1986-87 में सर्वोच्‍च पुरस्‍कार शिखर सम्‍मान से सम्मानित किया जा चुकी है। इसके अलावा 1998 में मध्‍य प्रदेश सरकार ने ही उन्‍हें अहिल्‍या सम्‍मान से भी सम्मानित किया था।

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