75 साल पुराने विक्टोरियो के सिक्के आज भी डिमांड में, यहां बनते हैं 4000 किलो चांदी के सिक्के

दीपावली पर चांदी के सिक्कों की पूजा का विशेष महत्व होता है। चांदी के सिक्कों पर लक्ष्मीजी की आकृति बनाई जाती है। मध्य प्रदेश में इंदौर में सबसे ज्यादा चांदी के सिक्के बनते हैं। आपको बता दें कि अकेले मध्य प्रदेश में करीब 10000 किलो चांदी के सिक्कों की खपत होती है इनमें से करीब 4000 किलो चांदी के सिक्के अकेले इंदौर में बनते हैं।
 

इंदौर, मध्य प्रदेश. दीपावली पर लक्ष्मी की आकृति वाले चांदी के सिक्कों की भारी डिमांड होती है। लक्ष्मी पूजन के दौरान इन सिक्कों को रखने का अपना विशेष महत्व होता है। ज्वेलर्स की मानें तो मध्य प्रदेश में 10000 किलो चांदी के सिक्कों की खपत होती है। इनमें से अकेले 4000 किलो इंदौर में बनते हैं। यानी इंदौर चांदी के सिक्के बनाने का प्रमुख गढ़ है। इन चांदी के सिक्कों में 75 साल पुराने विक्टोरिया के सिक्कों की आज भी भारी डिमांड बनी हुई है। हालांकि अब इनकी उपलब्धता कम होने से ये महंगे भी मिलते हैं। इंदौर सराफा एसोसिएशन के पदाधिकारी बसंत सोनी ने एक मीडिया के बताया कि शहर में बमुश्किल आधा दर्जन लोग ही चांदी के सिक्कों के अलावा बर्तन और मूर्तियों का निर्माण करते हैं। ये लोग पूरे साल इनका निर्माण करते हैं। चूंकि डिमांड अधिक है, इसलिए ये पूर्ति नहीं कर पाते हैं।


रेट महंगी हो जाती है
आमतौर पर 10 ग्राम वजन के चांदी के सिक्के मार्केट में अधिक बिकते हैं। वहीं विक्टोरिया की आकृति वाला सिक्का 11 ग्राम से ऊपर होता है। विक्टोरिया और जार्ज पंचम की आकृतिवाले सिक्के अधिक प्रचलन में हैं। 10 ग्राम चांदी का यह सिक्का 1300 रुपए से ऊपर में बिका। 1945 तक जो चांदी के सिक्के बनाए गए, यानी पंचम जार्ज के समय के..वे प्योर माने जाते हैं। वहीं मुगल काल के सिक्कों में 96 प्रतिशत तक शुद्धता मिलती थी। बता दें कि दीपावली पर चांदी के सिक्के लक्ष्मीजी के प्रतीक माने जाते हैं।

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गंभीर बीमार के कारण चीजें सीखने-समझने में होती है दिक्कत, फिर भी दीयों में दिखाई कला

भोपाल. अगर कुछ करने की ठान लो, असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। यह हैं 19 साल के अक्षत। ये डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं। इस बीमारी में सोचने-समझने की क्षमता सामान्य लोगों से काफी कम होती है। बावजूद इस युवक का जुनून देखिए। इसने नासिक जाकर वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग ली और अब दीपावाली पर खूबसूरत दीये बना रहा है। अक्षत के खूबसूरत दीयों देखकर उनके रिश्तेदार इतने प्रभावित हुए कि उनकी काफी डिमांड हो गई है।

जानिए अक्षत की खूबी...
अक्षत की मां आरती घोडगावकर बताती हैं कि अक्षत ने पिछले साल नासिक में कलात्मक दीये बनाने की ट्रेनिंग ली थी। इस साल लॉकडाउन के कारण उसे वहां नहीं ले जा सके। अक्षत लॉकडाउन में बोर हो रहा था। उसने खाली वक्त में दीये बनाना शुरू किए। लोगों को यह बहुत पसंद आए। अक्षत एक दिन में 50-60 दीये डेकोरेट कर लेता है। अक्षत इनकी मार्केटिंग सोशल मीडिया के जरिये करता है। चार दीयों के पैकेट की कीमत 40 रुपए है। बता दें किडाउन सिंड्रोम को ट्राइसोमी 21 के नाम से भी जानते हैं। इसमें चीजों को समझने में दिक्कत के अलावा शारीरिक विकास में देरी होती है। यह एक आनुवंशिक विकार है। 

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