राम मंदिर में स्थापित रामलला की भव्य मूर्ति को कर्नाटक के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने तराशा है। हाल ही में एशियानेट न्यूज (Asianet News) के साथ बातचीत में उन्होंने बताया कि कैसे 70% काम पूरा करने के बाद भी उन्हें नए सिरे से काम स्टार्ट करना पड़ा।
Arun Yogiraj Exclusive Interview: पिछले महीने 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई। रामलला की मूर्ति मैसूरू के मशहूर मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाई है। एशियानेट न्यूज (Asianet News) के राजेश कालरा से बातचीत के दौरान योगीराज ने बताया कि उन्होंने कुछ ही महीनों में 70% काम पूरा कर लिया था, लेकिन बावजूद इसके उन्हें नए सिरे से मूर्ति बनानी पड़ी। आखिर ऐसा क्या हुआ कि योगीराज को दोबारा काम करना पड़ा?
3 महीने में ही मैंने अपना 70% काम पूरा कर लिया, लेकिन..
अरुण योगीराज के मुताबिक, रामलला की मूर्ति बनाने के लिए मेरा सिलेक्शन अप्रैल के महीने में हुआ था और मैंने काम जून के महीने से शुरू किया। काम शुरू करने के पहले हमें लिखित में कई तरह के इंस्ट्रक्शन दिए गए। इस तरह मैंने अपना काम शुरू किया और करीब-करीब 70% पूरा भी कर लिया। फिर अचानक एक दिन मेरे पास नृपेन्द्र मिश्रा जी का फोन आया और उन्होंने मुझे तत्काल अयोध्या से दिल्ली बुलाया।
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8 में से एक रिपोर्ट नेगेटिव और सबकुछ नए सिरे से..
योगीराज के मुताबिक, जब मैं अयोध्या से दिल्ली पहुंचा तो उन्होंने मुझसे कहा-एक इश्यू है और वो ये कि पत्थर की रिपोर्ट निगेटिव आई है। हर एक पत्थर को 5 से 8 तरह के टेस्ट से गुजरना पड़ता है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ रॉक मैनेजमेंट (IIRM) के साइंटिस्ट इसकी टेस्टिंग करते हैं। तो इस तरह नृपेन्द्र मिश्रा जी ने मुझसे कहा कि 8 में से 1 टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई है, इसलिए अब नए सिरे से बनाओ। ये बात मुझे अगस्त के आखिर में पता चली और सितंबर से मैंने नई मूर्ति पर फिर से काम शुरू किया।
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कौन हैं अरुण योगीराज?
अरुण योगीराज कर्नाटक स्थित मैसूर के रहने वाले हैं। उनका परिवार पिछले 250 साल से मूर्तिकला का काम कर रहा है। अरुण योगीराज अपने खानदान में पांचवीं पीढ़ी के मूर्तिकार हैं। शुरुआत में अरुण योगीराज पिता और दादा की तरह मूर्तियां बनाने के पेशे में नहीं आना चाहते थे। यही वजह रही कि उन्होंने 2008 में मैसूर यूनिवर्सिटी से MBA किया और बाद में एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करने लगे। हालांकि, 9 से 5 की जॉब में वे संतुष्ट नहीं थे, इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से खुद को मूर्तिकला के काम में समर्पित कर दिया। योगीराज ने अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाया और आज देश के सबसे बड़े मूर्तिकारों में शामिल हैं।
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