खाने को रोटी, सिर पर नहीं पिता का साया;मां दादी और 6 भाई बहनों का उठाया जिम्मा, ऐसे पालता है पेट

बिहार राज्य के पश्चिम चंपारण से सामने आया है। जहां 9 साल के मासूम के पिता का निधन हो गया। जिसके बाद मां, दादी और 5 भाई बहनों के भरण पोषण की पूरी जिम्मेदारी उसके कंधे पर आ गई। जिसमें नौ वर्षीय सुनील को पिता से विरासत में मिली भूजा और आलूचॉप की रेहड़ी ही सहारा बनी।

पटना. कोई यदि किसी से पूछे कि आप 9 वर्ष की उम्र में क्या कर रहे थे। तो समान्यतः कहेगा कि मैं खेलकूद रहा था या अपना बचपन जी रहा था। लेकिन जब किसी 9 वर्ष के मासूम पर घर चलाने की जिम्मेदारी आ जाए तो आप सोच सकते हैं कि उस पर क्या बीतता है। ऐसा ही एक मामला बिहार राज्य के पश्चिम चंपारण से सामने आया है। जहां 9 साल के मासूम के पिता का निधन हो गया। जिसके बाद मां, दादी और 5 भाई बहनों के भरण पोषण की पूरी जिम्मेदारी उसके कंधे पर आ गई। जिसमें नौ वर्षीय सुनील को पिता से विरासत में मिली भूजा और आलूचॉप की रेहड़ी ही सहारा बनी। यह मासूम दुकान लगाकर अपने घर में दो जून की रोटी का बंदोबस्त करता था। लेकिन सोशल मीडिया ने अब मासूम का जीवन बदल दिया है। आईए जानते है पूरी कहानी...

9 साल की उम्र में बेचने लगा भूजा और आलूचॉप

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बगहा नगर क्षेत्र के वार्ड नंबर 10 में रहने वाले राजन गोड़ का निधन चार माह पहले हो गया था। राजन ही अपनी 55 वर्षीय विधवा मां, पत्नी और छह बच्चों के भरण पोषण का एकमात्र सहारा थे। राजन की मौत के बाद पूरा परिवार अनाथ और असहाय हो गया। जिसके बाद परिजनों का पेट भरने के लिए नौ वर्षीय सुनील ने पिता द्वारा विरासत में छोड़ के गए भूजा और आलूचॉप की रेवड़ी को अपने आय का हिस्सा बना आया। स्थानीय लोग बताते हैं कि 9 वर्ष का सुनील रोज सुबह घर से ठेला लेकर रेलवे स्टेशन के बाहर लगाने लगा और भूजा और आलूचॉप बेचने लगा। 

सोशल मीडिया पर वायरल हुई कहानी 

वैसे सोशल मीडिया की जमकर आलोचना की जाती है। लेकिन कई मामलों में इस सोशल मीडिया न कईयों को जिंदगी बदल दी है। इसी क्रम में मासूम द्वारा किए जा रहे इस संघर्ष पर सामाजिक कार्यकर्ता अजय पांडेय की नजर पड़ी। अजय पांडेय ने मासूम के इस तस्वीर और सुनील से पूछताछ के बाद उसके परिजनों की कहानी अपने फेसबुक वॉल पर पोस्ट कर दी। जिसके बाद फेसबुक पोस्ट पर लोग मदद के लिए प्रेरित किया। लोग बड़ी संख्या में मदद के लिए सामने आने लगे। सोशल मीडिया पर वायरल हुई सुनील की कहानी के बाद पड़ोसी हरि प्रसाद मदद के लिए आगे आए और सुनील का फिर से स्कूल में नाम लिखवाया। 

अब तक मिल चुके हैं 45 हजार रुपए 

वहीं, सुनील की कहानी फेसबुक पर साझा करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अजय ने सुनील की मां का बैंक में खाते भी खुलवा दिया और अपने फेसबुक पर एकाउंट नंबर भी शेयर कर दिया। जिसके बाद लोग सुनील की मां के खाते में आर्थिक मदद भी दे रहे हैं। जानकारी के मुताबिक सुनील की मां के खाते में अब तक 45 हजार रुपए सहायता के रूप में मिल चुका। 

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