अयोध्या विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो सकती है। कोर्ट ने सभी पक्षों के लिए बहस का टाइम स्लॉट तय लिया है। 6 अगस्त से इस विवाद पर नियमित सुनवाई हो रही है। ऐसे में बताते हैं कि इस पूरे विवाद में साल 1986 किस लिए अहम हो जाता है।
नई दिल्ली. अयोध्या विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो सकती है। कोर्ट ने सभी पक्षों के लिए बहस का टाइम स्लॉट तय लिया है। 6 अगस्त से इस विवाद पर नियमित सुनवाई हो रही है। ऐसे में बताते हैं कि इस पूरे विवाद में साल 1986 किस लिए अहम हो जाता है। दरअसल इसी साल फैजाबाद जिला जज रहे कृष्णमोहन पांडेय ने ताला खोलने का आदेश दिया।
1949 में लगा था ताला
1949 में कुछ लोगों ने विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्ति रख दी और पूजा शुरू कर दी, इस घटना के बाद मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया और सरकार ने विवादित स्थल पर ताला लगवा दिया। 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी। इस घटना के बाद नाराज मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।
ताला खोलने के फैसले में एक बंदर की भूमिका थी ?
फैजाबाद जिला जज रहे कृष्णमोहन पांडेय ने विवादित इमारत का ताला खोलने का फैसला दिया था। जब वो फैसला लिख रहे थे तो उनके सामने एक बंदर बैठा था। उसकी भी बड़ी दिलचस्प कहानी है।
हेमंत शर्मा की किताब 'युद्ध में अयोध्या' में जिक्र
अयोध्या में 1 फरवरी 1986 को विवादित इमारत का ताला खोलने का आदेश फैजाबाद के जिला जज देते हैं। राज्य सरकार चालीस मिनट के भीतर उसे लागू करा देती है। शाम 4.40 पर अदालत का फैसला आया। 5.20 पर विवादित इमारत का ताला खुला। अदालत का ताला खुलवाने की अर्जी लगाने वाले वकील उमेश चंद्र पांडेय भी कहते हैं, हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि सब कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा।"
फैसला सुनाते वक्त सामने बैठा था बंदर
युद्ध में अयोध्या नाम की किताब लिखने वाले लेखक हेमंत शर्मा ने लिखा है, यह किताब उनकी आंखों देखी घटनाओं का दस्तावेज है। किताब में उन्होंने एक बंदर का जिक्र किया है। किताब के चेप्टर 'रामलला की ताला मुक्ति' में लिखा है कि तब फैजाबाद के जिला जज रहे कृष्णमोहन पांडेय ने 1991 में छपी अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जिस रोज मैं ताला खोलने का आदेश लिख रहा था"
"मेरी अदालत की छत पर बैठा था काला बंदर"
"मेरी अदालत की छत पर एक काला बंदर पूरे दिन फ्लैग पोस्ट को पकड़कर बैठा रहा। वे लोग जो फैसला सुनने के लिए अदालत आए थे, उस बंदर को फल और मूंगफली देते रहे। पर बंदर ने कुछ नहीं खाया। चुपचाप बैठा रहा। मेरे आदेश सुनाने के बाद ही वह वहां से गया। फैसले के बाद जब डी.एम. और एस.एस.पी. मुझे मेरे घर पहुंचाने गए, तो मैंने उस बंदर को अपने घर के बरामदे में बैठा पाया। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने उसे प्रणाम किया। वह कोई दैवीय ताकत थी।"
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