सेक्सुअल हैरेसमेंट केसों की मीडिया रिपोर्टिंग पर बैन, बॉम्बे HC ने कहा-मीडिया कर रही बढ़ाचढ़ाकर रिपोर्टिंग

कोर्ट का मानना है कि मीडिया संस्थान खबरों को बढ़ाचढ़ाकर दिखाते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस तरह के मामलों में लगातर बढ़ा-चढ़ाकर रिपोर्टिंग देखी जा रही है, जो कि आरोपी और पीड़ित पक्ष दोनों के अधिकारों का हनन है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 28, 2021 10:34 AM IST

मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सेक्सुअल हैरेसमेंट से जुड़ी खबरों की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी है। वर्कप्लेस पर होने वाली सेक्सुअल हैरेसमेंट (Sexual Harassment) से जुड़ी खबरों में संस्थान का नाम प्रकाशित या प्रसारित नहीं करने का भी आदेश दिया है।

क्यों कोर्ट ने दिया आदेश?

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कोर्ट का मानना है कि मीडिया संस्थान खबरों को बढ़ाचढ़ाकर दिखाते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस तरह के मामलों में लगातर बढ़ा-चढ़ाकर रिपोर्टिंग देखी जा रही है, जो कि आरोपी और पीड़ित पक्ष दोनों के अधिकारों का हनन है।

हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम पटेल ने मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाने के साथ ही आदेश दिया है कि इन मामलों में आदेश भी सार्वजनिक या अपलोड नहीं किए जा सकते हैं। ऑर्डर की कॉपी में पार्टियों की व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी का उल्लेख नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि कोई भी आदेश खुली अदालत में नहीं बल्कि न्यायाधीश के कक्ष में या इन कैमरा दिया जाएगा।

जो उल्लंघन करेगा उसके खिलाफ अवमानना

कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करने वालों को कोर्ट की अवमानना माना जाएगा। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि कोई भी पक्ष, उनके वकील या गवाह मीडिया को मामले में अदालत के आदेश या किसी अन्य फाइलिंग के विवरण का खुलासा नहीं कर सकते हैं। सिर्फ अधिवक्ताओं और वादियों को सुनवाई में हिस्सा लेने की अनुमति होगी।

कोर्ट ने आगे यह भी कहा है आदेश में ‘A बनाम B’, ‘P बनाम D’ लिखा और पढ़ा जाएगा। आदेश में किसी भी व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी जैसे ई-मेल आईडी, मोबाइल या टेलीफोन नंबर, पते आदि का उल्लेख नहीं होगा। किसी गवाह के नामों का उल्लेख नहीं किया जाएगा और उनके पते सूचीबद्ध नहीं होंगे। अदालत ने मौजूदा आदेश के बारे में कहा कि चूंकि इस आदेश में सामान्य दिशानिर्देश हैं, इसलिए इसे अपलोड करने की अनुमति है।

अदालत में सुनवाई के दौरान सीमित स्टाफ रहेगा

अदालत ने आगे कहा है कि केस से जुड़े रिकॉर्ड को सीलबंद रखा जाना चाहिए और अदालत के आदेश के बिना किसी को नहीं दिया जाना चाहिए। एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के अलावा किसी को भी किसी भी फाइलिंग/आदेश का निरीक्षण या कॉपी करने के लिए सख्त प्रतिबंध हैं। अदालत ने आगे कहा कि सुनवाई के दौरान कोर्ट में सिर्फ सपोर्ट स्टाफ (क्लर्क, चपरासी, आदि) ही रहेंगे।

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