मोदी ने कहा- कांग्रेस न होती तो पंडित कश्मीर में होते, जानिए क्यों पंडितों के लिए जहन्नुम था 1990 का कश्मीर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) ने आज राज्यसभा में कश्मीरी पंडितों की पीड़ा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बताया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर राज्यसभा में बोलते हुए मोदी ने तीखे शब्दों में कहा कि अगर कांग्रेस ने होती, तो पंडित कश्मीर में होते। जानिए पूरी कहानी...

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) ने आज राज्यसभा में कश्मीरी पंडितों की पीड़ा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बताया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर राज्यसभा में बोलते हुए मोदी ने तीखे शब्दों में कहा कि अगर कांग्रेस ने होती, तो पंडित कश्मीर में होते। बता दें कि मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष रूप से बनाई गई धारा 370(Article 370) तथा अनुच्छेद 35-ए के प्रावधानों को निरस्त कर दिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर के दो हिस्से कर लद्दाख को अलग कर केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया। जम्मू-कश्मीर का भी पूर्ण राज्य का दर्जा समाप्त कर उसे भी एक केन्द्र शासित प्रदेश में बदल दिया था।

यह भी पढ़ें-राज्यसभा में कांग्रेस पर गरजे PM मोदी-आपने भारतीय वैक्सीन के खिलाफ मुहिम चलाई; पता नहीं आपको कौन सलाह देता है

Latest Videos

pic.twitter.com/B3s1ERiS65

धारा 370 हटने के पहले बुरे थे कश्मीरी पंडितों के हालात
धारा 370 और 35ए के कारण जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू नहीं था। यानी देश की संसद और केन्द्र सरकार यहां के लिए रक्षा, विदेश तथा संचार के अलावा अन्य किसी मामले में दखल नहीं कर सकती थी। राज्य अपना खुद का संविधान था। इसलिए यहां दूसरे भारतीय कानून लागू नहीं होते थे। 1990 के बाद यह पहला मौका है, जब कश्मीरी पंडितों की जमीनों पर हुए कब्जे छुड़ाए जा रहे हैं। घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी होते देखकर आतंकवादी बौखलाए हुए हैं। प्रशासन ने सितंबर, 2021 में एक पोर्टल शुरू किया है, इसमें ऐसी विवादास्पद प्रॉपर्टी को लेकर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। 

आरोप लगते रहे हैं कि 1990 से 2021 के बीच 31 वर्षों में केंद्र में कांग्रेस की 15 साल तक सरकार रही। 1991 से 1996 तक पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी और 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह की सरकार थी। लेकिन कांग्रेस ने कभी कश्मीरी पंडितों और वहां के लोगों के लिए कुछ नहीं किया।

यह भी पढ़ें-कांग्रेस न होती, तो पंडित कश्मीर में होते, इमरजेंसी का कलंक न होता

कश्मीर छोड़ने पर विवश किया गया
1990 में कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था, तब कश्मीरी पंडितों के घरों पर नोटिस चिपका दिए जाते थे कि या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़कर भाग जाओ या फिर मरने को तैयार रहो।

यह भी पढ़ें-कर्नाटक हिजाब मामला : उडुपी में महात्मा गांधी मेमोरियल कॉलेज के बाहर विरोध, छात्र बोले पहनेंगे भगवा स्कार्फ

कौन हैं ये कश्मीरी पंडित
कश्मीरी पंडितों को कश्मीर ब्राह्मण भी कहते हैं। ये जम्मू और कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्र यानी कश्मीर घाटी के पंच गौड़ ब्राह्मण समूह से ताल्लुक रखते हैं। 1990 से जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर नहीं था, तब मुस्लिम प्रभाव के बावजूद कश्मीरी पंडित मूल रूप से कश्मीर घाटी में ही रहते थे। लेकिन मुस्लिम प्रभाव बढ़ने के साथ बड़ी संख्या में लोगों का जबरिया मुस्लिम बना दिया गया।

1981 तक कश्मीर में पंडितों की आबादी सिर्फ 5 प्रतिशत बची थी। 1990 के दशक में आतंकवाद के उभार के दौरान कट्टरपंथी इस्लामवादियों और आतंकवादियों द्वारा उत्पीड़न और धमकियों के बाद उनका पलायन और बढ़ गया। 19 जनवरी 1990 की घटना सबसे शर्मनाक थी। उस दिन मस्जिदों से घोषणाएं की गईं कि कश्मीरी पंडित काफिर हैं। पुरुषों को या तो कश्मीर छोड़ना होगा या इस्लाम में परिवर्तित होना होगा या उन्हें मार दिया जाएगा। जिन लोगों ने पहला विकल्प चुना, उनसे अपने परिवार की महिलाओं को वहीं छोड़कर जाने को कहा गया। कश्मीरी पंडितों पर लिखी गईं तमाम किताबों के अनुसार 1990 के दशक के दौरान 140,000 की कुल कश्मीरी पंडित आबादी में से करीब 100,000 ने घाटी छोड़ दी। कुछ लोग यह संख्या 2 लाख तक बताते हैं। 

यह भी पढ़ें-'माफी मांगें', कश्मीर के बारे में ऑनलाइन विवाद के बाद सरकार की हुंडई को दो टूक

Share this article
click me!

Latest Videos

शर्मनाक! सामने बैठी रही महिला फरियादी, मसाज करवाते रहे इंस्पेक्टर साहब #Shorts
महज चंद घंटे में Gautam Adani की संपत्ति से 1 लाख Cr रुपए हुए स्वाहा, लगा एक और झटका
SC on Delhi Pollution: बेहाल दिल्ली, कोर्ट ने लगाई पुलिस और सरकार को फटकार, दिए निर्देश
Maharashtra Election: CM पद के लिए कई दावेदार, कौन बनेगा महामुकाबले के बाद 'मुख्य' किरदार
कानूनी प्रक्रिया: अमेरिकी न्याय विभाग से गिरफ्तारी का वारंट, अब अडानी केस में आगे क्या होगा?