चांद की पहली कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचा चंद्रयान-2, इसरो ने ऐसे पाई सफलता

इसरो ने मंगलवार को चंद्रयान-2 को चांद की पहली कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश करा दिया है। इसरो ने 8.30 और 9.30 के बीच चंद्रयान-2 को LBN 1 में प्रवेश कराया है।  चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में अगले 24 घंटे तक चक्कर लगाएगा।  

Asianet News Hindi | Published : Aug 20, 2019 4:34 AM IST / Updated: Aug 20 2019, 07:48 PM IST

नई दिल्ली. इसरो ने मंगलवार को चंद्रयान-2 को चांद की पहली कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश करा दिया है। इसरो ने 8.30 और 9.30 के बीच चंद्रयान-2 को LBN 1 में प्रवेश कराया है। अब यान चांद की इस कक्षा में अगले 24 घंटे तक चक्कर लगाएगा। प्रवेश कराने से पहले इसकी स्पीड को 90 प्रतिशत यानि 10.98 किमी प्रति सेकंड से कम कर 1.98 किमी प्रति सेकंड किया गया। चांद पर गुरूत्वाकर्षण बल को देखते हुए इसकी स्पीड को कम किया गया। 1 सिंतबर तक चार बार चांद के चारों तरफ चंद्रयान-2 अपनी कक्षा बदलेगा। चांद की कक्षा में प्रवेश कराना वैज्ञानिकों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था। अब 7 सितंबर को यान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। 

वहीं चांद के ऑर्बिट में प्रवेश करने के बाद इसरो चीफ के सिवान ने कहा कि चंद्रयान-2 मिशन ने आज एक बड़ा मील का पत्थर पार कर लिया है। सुबह 9 बजकर 30 मिनट पर यान को चांद की तय कक्षा में प्रवेश कराया गया।

उन्होंने कहा अब हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती 2 सितंबर को है, जब लैंडर को ऑर्बिटर से अलग किया जाएगा। 3 सिंतबर को हमारे सामने 3 सेकंड की चुनौती होगी, जिसमें हमें यह तय करना होगा कि लैंडर सामान्य रूप से काम कर रहा है या नहीं

कक्षा में प्रवेश के बाद अब सबसे बड़ी चुनौती यान की सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो के सामने चांद की कक्षा में प्रवेश कराना सबसे बड़ी चुनौती थी। इसकी वजह चंद्रमा का वातावरण पृथ्वी की तरह नहीं है। चांद की कक्षा में प्रवेश कराने के बाद वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यान को सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग कराने को लेकर रहेगी। चंद्रमा पर गुरूत्वाकर्षण हर जगह पर अलग अलग है। इस वजह से चंद्रयान की लैंडिंग के दौरान यान के क्रैश होने का खतरा बड़ जाता है। वहां रेडियों सिग्नल की कमी की वजह से उन्हें यान को सही तरह से ऑपरेट करना मुश्किलों भरा रहेगा। जरा सी चूक भी मिशन को असफल कर सकती है। वैज्ञानिकों को चांद के गुरूत्वाकर्षण बल और वातावरण का सही तरीके से ध्यान रखना होगा। चांद के तापमान में भी तेजी से बदलाव होते हैं और लैंडिंग के दौरान खतरा  बढ़ जाता है।  वहीं लैंडर और रोवर भी इस परिस्थिती में काम करना बंद कर देते हैं। 

लंबी गणना के बाद तय होता लॉन्चिंग का समय

इससे पहले 15 जुलाई को चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग रात 2.51 मिनट पर होनी थी लेकिन तकनीकी खामियों की वजह से 22 जुलाई दोपहर 2.43 पर लॉन्च किया गया। स्पेस की लॉन्चिंग में एक लॉन्च विंडो होती, जिससे यान के लॉन्चिंग का समय निर्धारित होता है। कई गणनओं के बाद लॉन्चिंग का समय तय किया जाता है। इसमें पृथ्वी की मूवमेंट को भी ध्यान में रखा जाता है। चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग में भी इसी तरह की गणना की गई है। 

चार मुख्य उपकरण जो जुटाएंगे जानकारी 

ऑर्बिटर

चंद्रयान का पहला मॉड्यूल ऑर्बिटर है। ये चांद की सतह की जानकारी जुटाएगा। ये पृथ्वी और लैंडर (जिसका नाम विक्रम रखा गया है) के बीच कम्युनिकेशन बनाने का काम करेगा। करीबन एक साल तक ये चांद की कक्षा में काम करेगा। इसमें करीबन 8 पेलोड भेजे जा रहे हैं। इसका कुल 2,379 किलो है। 

लैंडर

इसरो का ये पहला मिशन होगा जब इसमें लैंडर भेजा जाएगा। इसका नाम विक्रम रखा गया है। यह नाम वैज्ञानिक विक्रम साराभाई पर रखा गया है। विक्रम चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा।  लैंडर के साथ 3 पेलोड भेजे जा रहे हैं। यह चांद की सतह पर इलेक्ट्रॉन डेंसिटी, तापमान और सतह के नीचे होने वाली हलचल गति और तीव्रता की जानकारी जुटाएगा। इसका वजन 1,471 किलो है।  

रोवर

रोवर लैंडर के अंदर ही होगा। इसका नाम प्रज्ञान रखा गया है। यह हर एक सेकेंड में 1 सेंटीमीटर बाहर निकलेगा। इसे बाहर निकलने में करीबन 4 घंटे लगेंगे। चांद की सतह पर उतरने के बाद ये 500 मीटर तक चलेगा। ये 14 दिन तक काम करेगा। इसके साथ दो पेलोड भेजे जा रहे हैं। इसका उद्देश्य चांद की मिट्टी और चट्टानों की जानकारी जुटाना है। इसका वजन 27 किलो है।  

 2009 से चांद पर पानी की खोज में लगा है इसरो

दरअसल, जब 2009 में चंद्रयान-1 मिशन भेजा गया था, तो भारत को पानी के अणुओं की मौजूदगी की अहम जानकारी मिली थी। जिसके बाद से भारत ने चंद्रमा पर पानी की खोज जारी रखी है। इसरो के मुताबिक, चांद पर पानी की मौजूदगी से यहां मनुष्य के अस्तित्व की संभावना बन सकती है।


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