अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया व योगेंद्र यादव को राहत, मानहानि के केस से हुए बरी

आप नेताओं के खिलाफ डिफेमेशन केस की सुनवाई अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में चल रही थी। शिकायतकर्ता सुरेंद्र शर्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं। मृतक की ओर से यह केस उनके भतीजे द्वारा लड़ा जा रहा था।

नई दिल्ली। आप नेताओं (AAP) के खिलाफ एक अधिवक्ता द्वारा किए गए मानहानि के केस (Defamation Case) में शनिवार को फैसला आया है। मानहानि के इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal), डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) व आप के तत्कालीन फाउंडर मेंबर योगेंद्र यादव (Yogendra Yadav) को बरी कर दिया गया है। यह डिफेमेशन केस 2013 में दायर किया गया था। केस दायर करने वाले अधिवक्ता की मृत्यु दो साल पूर्व हो जाने के बाद उनके भतीजे इस केस को देख रहे थे। 

बरी करते हुए क्या कहा मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने?

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आप नेताओं के खिलाफ डिफेमेशन केस की सुनवाई अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में चल रही थी। शनिवार को फैसला सुनाते हुए अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट विधि गुप्ता आनंद (Vidhi Gupta Anand) ने कहा कि शिकायतकर्ता व अधिवक्ता सुरेंद्र कुमार शर्मा (Surendra Kumar Sharma) यह साबित करने में विफल रहे कि आरोपियों ने कई प्रयासों के बावजूद कथित अपराध किया है। इसलिए उनको बरी किया जाता है। बता दें कि शिकायतकर्ता सुरेंद्र शर्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं। मृतक की ओर से यह केस उनके भतीजे द्वारा लड़ा जा रहा था।

प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना मृत्यु से भी बदतर

आदेश में न्यायाधीश ने यह भी कहा कि प्रतिष्ठा समाज में शायद उस समय से जानी जाती थी जब से सभ्यता स्वयं स्थापित हुई थी। उन्होंने भागवत गीता के एक पाठ को उद्धृत किया कि लोग आपकी अंतहीन बदनामी के बारे में भी बात करेंगे। और एक सम्मानित व्यक्ति के लिए बदनामी मृत्यु से भी बदतर है। आज भी आधुनिक भारत में अपने संविधान द्वारा शासित, प्रतिष्ठा के अधिकार को जीवन के अधिकार की व्यापक अवधारणा के तहत शामिल मौलिक अधिकारों में से एक के रूप में शामिल किया गया है। इसलिए, निस्संदेह ही प्राचीन काल से भारतीय समाज एक व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठा की पहचान करता है। यह उन लोगों के लिए और भी अधिक महत्व रखता है जो सार्वजनिक व्यवहार के पेशे में हैं; जैसे, अधिवक्ता और राजनेता।

81 पन्नों का आदेश, लेकिन सबूत नहीं होने पर बरी

81 पन्नों के आदेश में जस्टिस विधि गुप्ता आनंद ने कहा कि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी व्यक्तियों ने 14 अक्टूबर, 2013 को कथित समाचार लेख प्रकाशित करके उसे बदनाम किया है। लेकिन वह रिकॉर्ड पर यह साबित करने में असमर्थ रहे हैं। आरोपी व्यक्तियों के कहने पर प्रेस विज्ञप्ति जारी करने को साबित करने के लिए न तो आरोपी व्यक्तियों के किसी भी मीडिया प्रतिनिधि को गवाह बॉक्स में लाया गया था और न ही कथित मानहानिकारक लेखों के संबंध में किसी भी आरोपी व्यक्ति का कोई प्रत्यक्ष बयान लाया गया था। उन्होंने कहा कि जब शिकायतकर्ता यह साबित करने में असमर्थ रहा है कि कथित मानहानिकारक प्रेस विज्ञप्ति या बयान देने वाले आरोपी व्यक्ति थे, तो चर्चा में जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता कि क्या वे बयान मानहानिकारक थे या नहीं।

क्या था मामला?

मानहानि केस के अनुसार, 2013 में आप के स्वयंसेवकों ने एडवोकेट सुरेंद्र कुमार शर्मा से संपर्क किया था। आप कार्यकर्ताटों ने शर्मा से कथित तौर पर दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा था। सुरेंद्र शर्मा ने याचिका में दावा किया था कि कार्यकर्ताओं ने उनको बताया था कि अरविंद केजरीवाल उनकी समाजसेवा से खुश हैं। उन्होंने बताया था कि सिसोदिया और यादव के कहने के बाद चुनाव लड़ने के लिए आवेदन पत्र भरा था। उनका दावा था कि पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति ने उन्हें टिकट देने का फैसला किया है। हालांकि, बाद में उनको टिकट नहीं मिला था। 14 अक्टूबर 2013 को, शिकायतकर्ता ने दावा किया कि प्रमुख समाचार पत्रों में उनके खिलाफ लेख प्रकाशित हुए थे जिससे बार और समाज में उनकी प्रतिष्ठा कम हुई थी। बता दें कि एडवोकेट सुरेंद्र कुमार शर्मा की मृत्यु 1 नवम्बर 2020 को हो गई थी। इस केस को उनके बाद उनके भतीजा व एडवोकेट योगेश कुमार गौड़ लड़ रहे थे।

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