कोरोना वायरस से बचने के लिए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की गाइडलाइन काफी सरल है। इसमें लोगों को बार बार साबुन से हाथ धोने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने, किसी प्रभावित क्षेत्र में होने या किसी भी तरह से वायरस के संपर्क में आने पर घर में रहने की सलाह दी गई है।
नई दिल्ली. कोरोना वायरस से बचने के लिए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की गाइडलाइन काफी सरल है। इसमें लोगों को बार बार साबुन से हाथ धोने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने, किसी प्रभावित क्षेत्र में होने या किसी भी तरह से वायरस के संपर्क में आने पर घर में रहने की सलाह दी गई है। इसके अलावा अगर आप कोरोना प्रभावित इलाके से आए हैं तो 14 दिन क्वारंटाइन रहने के लिए कहा गया है।
अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (यूके) और इटली जैसे विकसित देशों में जहां स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हैं, वे भी कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने को नहीं रोक सके। WHO की गाइडलाइन का पालन करना कोरोना को फैलने से रोकने के लिए काफी अहम है। खासकर कम और मध्यम आय वाले देशों में जहां स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर नहीं हैं। यहां तक की विकासशील देशों में भी। लेकिन भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में, इन गाइडलाइनों का पालन करना कितना व्यावहारिक है?
छोटी जगह पर एक साथ रहना
भारत में घरों के बुनियादी ढांचे को देखें तो पता चलता है कि देश में लगभग एक तिहाई आबादी ऐसे घरों में रहती हैं, जहां प्रति व्यक्ति उपलब्ध जगह एक कमरे से भी कम है। इसका मतलब साफ है कि संक्रमण के खतरे वाले व्यक्ति को अलग रखना काफी कठिन है। यानी भारत में 60% लोगों के लिए होम क्वारंटाइन संभव नहीं है।
कमरों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता
जगह | ग्रामीण | शहरी | कुल |
एक कमरे से कम | 66% | 45.16% | 59.6% |
एक कमरा | 14.71% | 17.1% | 15.45% |
एक कमरे से अधिक | 19.21% | 37.4% | 24.9% |
पानी की कमी
साबुन से बार-बार हाथ धोने के लिए घरों में पानी की उपलब्धता की आवश्यकता है। एनएसएसओ के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 40% शहरी घरों और 75% ग्रामीण परिवारों के घर में नल से पानी नहीं आता। इसका मतलब है कि घरों में सार्वजनिक नल, कुओं या अन्य जल स्रोतों से पानी लाया जाता है। इससे साफ होता है कि इन परिस्थितियों में हाथ को बार बार धोना कितना मुश्किल है, वहीं महामारी के दौरान पानी के दूषित होने और संक्रमण फैलने का खतरा अधिक है।
पीने का पानी | घरेलू जरूरत के लिए | |||||
सोर्स | ग्रामीण | शहरी | कुल | ग्रामीण | शहरी | कुल |
बोतलबंद पानी | 3.4 | 10.3 | 5.5 | 0.1 | 0.4 | 0.2 |
घरों में पानी की सप्लाई | 11.5 | 43.7 | 21.4 | 13.9 | 49.6 | 24.8 |
प्लॉट में पानी की सप्लाई | 9.8 | 14.1 | 11.1 | 9.8 | 10.8 | 10.1 |
पड़ोसी से पानी की सप्लाई | 0.8 | 1 | 0.8 | 0.8 | 0.9 | 0.8 |
सार्वजनिक नल | 9.1 | 7.1 | 8.5 | 7.4 | 5.4 | 6.8 |
ट्यूब बेल | 10.8 | 10.3 | 10.7 | 11.5 | 17.2 | 13.2 |
हेंडपंप | 45.3 | 8 | 33.9 | 41.4 | 7.9 | 31.2 |
कुआं (संरक्षित) | 2.9 | 1.6 | 2.5 | 2.7 | 2.4 | 2.6 |
कुआं | 4.3 | 2.5 | 3.7 | 4.5 | 2.8 | 4 |
टैंकर (सार्वजनिक) | 0.1 | 0.8 | 0.3 | 0.1 | 0.5 | 0.5 |
टैंकर (प्राइवेट) | 0.4 | 0.5 | 0.4 | 0.5 | 0.5 | 0.5 |
झरने (सरंक्षित) | 0.3 | 0.1 | 0.2 | 0.2 | 0 | 0.2 |
झरने | 0.3 | 0 | 0.2 | 0.4 | 0 | 0.3 |
बारिश से संरक्षित जल | 0.3 | 0.1 | 0.2 | 0.1 | 0 | 0.1 |
तालाब | 0.4 | 0.1 | 0.3 | 4.9 | 1 | 3.7 |
नदी, डैम, अन्य श्रोत | 0.2 | 0.1 | 0.2 | 0.3 | 0.1 | 0.2 |
छोटे ड्रम | 0.2 | 0.1 | 0.2 | 0.3 | 0.1 | 0.2 |
कुल | 100 | 100 | 100 | 100 | 100 | 100 |
इसके अतिरिक्त, यह भी पाया गया है कि सामुदायिक जल केंद्रों जैसे हैंडपंप, कुआं से पानी भरने में औसत करीब एक घंटा लगता है। इसका मतलब साफ है कि बड़े पैमाने पर परिवारों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना मुश्किल है। विकासशील देशों में यह प्रथा है कि पानी भरने का भार मुख्य रूप से महिलाओं (73%) पर है। इसलिए महिलाओं के स्वास्थ्य पर खतरा अधिक है।
ग्रामीण | शहरी | कुल | |
पीने के पानी तक पहुंच | |||
आवास के अंदर | 30 | 59 | 39 |
आवास के बाहर लेकिन परिसर के भीतर | 31 | 22 | 28 |
परिसर से बाहर | |||
0.2 किमी से कम | 28.6 | 13.7 | 24 |
0.2 से 0.5 किमी तक | 8 | 3.2 | 6.5 |
0.5 से 1 किमी | 2.1 | 1.2 | 1.8 |
1 किमी से 1.5 किमी | 0.4 | 0.4 | 0.4 |
1.5 किमी से ज्यादा | 0.5 | 0.5 | 0.5 |
कुल | 100 | 100 | 100 |
बाहरी परिसर से एक दिन में पानी लाने के लिए औसत समय (मिनट में) | 48.5 | 40 | 47 |
कौन कितना पानी लाता है? | |||
पुरुष | 20.8 | 33.8 | 23 |
महिला | 77.5 | 56.6 | 73.9 |
मजदूर | 0.6 | 4.7 | 1.3 |
अन्य | 1.1 | 4.9 | 1.8 |
कुल | 100 | 100 | 100 |
सफाई की व्यवस्था का ना होना
संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में ना आने, स्वच्छता बनाए रखने के लिए वॉशरूम और शौचालय की आवश्यकता होती है। ग्रामीण क्षेत्रों के 45% घरों में वॉशरूम और 39% में शौचालय की सुविधा नहीं है। शहरी क्षेत्रों में जहां 9% लोगों के पास वॉशरूम और 4% लोगों के पास शौचालय नहीं है। वहीं, इन क्षेत्रों में 11% लोग सार्वजनिक वॉशरूम और 13.5% लोग सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं।
62% आबादी खाने से पहले सिर्फ पानी से हाथ धोती है
अंत में हम देखते हैं कि कितने भारतीय साबुन या हैंडवॉश करते हैं। भारत में 75% आबादी शौच के बाद साबुन और पानी का इस्तेमाल करके हाथ धोती है। वहीं खाना खाने से पहले सिर्फ 34% लोग ऐसा करते हैं। अधिकांश आबादी (62%) भोजन से पहले हाथ धोने के लिए केवल पानी का इस्तेमाल करती है। इससे पता चलता है कि इससे पता चलता है कि कोरोना को फैलने से रोकने के लिए सबसे अहम आदत बार बार साबुन से हाथ धोना अभी भी भारतीयों में आना बाकी है।
ग्रामीण | शहरी | कुल | |
खाने से पहले हाथ धोना | |||
पानी और साबुन से हाथ धोना | 25 | 55.3 | 34.3 |
रेत या मिट्टी से हाथ धोना | 3.6 | 1.4 | 2.9 |
सिर्फ पानी से हाथ धोने वाले | 70.1 | 42.7 | 61.7 |
हाथ ना धोने वाले | 1.3 | 0.6 | 1.1 |
कुल | 100 | 100 | 100 |
शौच के बाद हाथ धोना | |||
पानी और साबुन से हाथ धोना | 68.4 | 89.2 | 74.7 |
रेत या मिट्टी से हाथ धोना | 18.1 | 2.1 | 13.2 |
सिर्फ पानी से हाथ धोने वाले | 13.5 | 8.7 | 12 |
हाथ नहीं धोने वाले | 0.1 | 0 | 0.1 |
कुल | 100 | 100 | 100 |
मौजूदा आवास और स्वच्छता सुविधाओं के कारण अधिकांश आबादी के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना और साफ सफाई रखना काफी कठिन है। यहां तक की रोकथाम के उपायों के बारे में पूरी आबादी को जानकारी भी हो जाए, इसके बावजूद मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते भारतीय समाज के लिए ये काफी कठिन है।
सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करने में आने वाले आर्थिक संकट
हालांकि, सोशल डिस्टेंसिंग कोरोनवायरस के प्रसार को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के असंगठित क्षेत्रों में लाखों लोगों के पास सोशल डिस्टेंसिंग का विकल्प नहीं है। अन्य देशों में उठाए जा रहे कदम यहां संभव नहीं हैं।
भारत में ऐसे मजदूर हैं जिन्हें अपने परिवारों को पेट पालने के लिए दैनिक मजदूरी की जरूरत होती है। वे भीड़ भरे बाजारों में काम करते हैं और सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करते हैं। उनके लिए सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाना बेहद कठिन है।
अनौपचारिक क्षेत्र अर्थव्यवस्था की रीढ़
भारत का अनौपचारिक क्षेत्र अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, देश में कुल काम करने वालों में 93% करीब 43.7 करोड़ लोग अनौपचारिक हैं। इसमें किसान, मजदूर, घरों-दुकानों में काम करने वाले नौकर और सफाईकर्मी भी शामिल हैं। इसके बावजूद इन क्षेत्रों का देश की जीडीपी में लगभग आधे हिस्से का योगदान होता है।
लेकिन ऐसे मजदूर खराब परिस्थितियों में बिना किसी कानूनी सुरक्षा उपाय के रहते हैं। भारत में दुनिया की दो सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजनाएं हैं इसके बावजूद अधिकांश मजदूर बिना सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे बुनियादी सुरक्षा के बिना रहते हैं।
कोरोना महामारी के डर और दहशत के बावजूद, मुंबई नागरिक प्राधिकरण के स्वच्छता विभाग में लगभग 6,500 ठेका मजदूरों को मास्क, ग्लव्स, जूते और यूनिफॉर्म नहीं दी गई है। ये मजदूर प्रतिदिन 250 रुपए पर सफाई का काम करते हैं। इन लोगों के लिए कोरोना के मुसीबत बनकर सामने आ रहा है।
भारत में 54.2% कर्मचारी छुट्टी के पात्र नहीं
2017-18 के सरकारी सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत के गैर-कृषि क्षेत्र में 54.2% कर्मचारी छुट्टी नहीं ले सकते। वहीं, 71.1% के पास नौकरी का कोई लिखित कॉन्ट्रैक्ट नहीं था, और 49.6 प्रतिशत कर्मचारियों के पास सामाजिक सुरक्षा लाभ जैसी कोई स्कीम नहीं है।
भारतीय शहरों में भी इतनी जगह नहीं कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो सके। 2018 के विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में प्रति वर्ग किलोमीटर 455 लोगों का जनसंख्या घनत्व है, जबकि चीन में 148, यूके में 275 और संयुक्त राज्य अमेरिका में यह 36 है। भारत जनसंख्या घनत्व के मामले में दुनिया में 29 वें स्थान पर है, और इसके शहरों, जहां कुल आबादी 130 अरब आबादी में 31% लोग रहते है, यहां घनत्व बहुत कम है। मुंबई में जहां 2 करोड़ की आबादी रहती है, यहां जनसंख्या घनत्व 32000 प्रति वर्ग किलोमीटर है। यह दुनिया का सबसे भीड़ वाला शहरी क्षेत्र है।
मानसिक स्वास्थ्य की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग के फेल होने की वजह
मानसिक स्वास्थ्य के बारे में इस स्थिति में बात करना क्यों आवश्यक है। यह समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि लॉकडाउन में कई लोग घरों में कैद रहे। कुछ को परिवारों से दूर रहना पड़ा। कुछ लोगों के पास खाना, पैसे की भी व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में एक जानलेवा बीमारी के बारे में सोचना, लोगों में तनाव की वजह बन सकती है।
इसके अलावा, रोजगार और वित्तीय तनाव भी बड़ी आबादी के लिए परेशानी बन रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर मानसिक और भावनात्मक परेशानी लोगों को प्रभावित करेगी तो यह एक बड़ी समस्या बन जाएगी।
भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में, लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना अजीब और कठिन लगता है। किराने की दुकानों पर भारी भीड़ इस डर से कि स्टॉक से बाहर सप्लाई एक और उदाहरण है। बढ़ती भीड़ को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना असंभव दिखता है।!