पहले एपिसोड में हमने बताया कि कैसे अर्जुन युद्ध के विषय में सोचकर द्वंद और दु:ख में डूब जाता गया था। यहां तक कि वह रणभूमि से भागने की सोच लेता है, लेकिन दूसरे अध्याय की शुरुआत में ही हम उसमें बदलाव देखते हैं।
अर्जुन युद्ध के कारणों पर मंथन करता है और एक निर्णय पर पहुंचता है। पहले युद्ध में अपने प्रतिद्वंदी परिवारजनों से उसका स्नेह उसकी मूलभूत समस्या था जिसे सतही समाधान से हल करना संभव नहीं था, फिर उसने अपने गुरू कृष्ण के चरणों में खुद को समर्पित कर दिया। इस मूलभूत समस्या का हल खोजने में सक्षम होने के लिए उसको निडर होना चाहिए।
इस प्रकार, अब से अर्जुन कृष्ण के लिए एक शिष्य बन जाता है और कृष्ण उसके गुरु, यहां से कृष्ण के उपदेश शुरू होंगे-
कृष्ण अर्जुन के युद्ध से भाग खड़े होने के विचार पर चोट करते हैं, वह अर्जुन की समस्या समझ जाते हैं कि अर्जुन जैसे बुद्धिमान व्यक्ति युद्ध को टालते हैं। फिर कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि क्षत्रिय होने के नाते उसका कर्तव्य है कि वह युद्ध लड़े। हम सभी भौतिक दुनिया में रह रहे हैं और इसके लिए सांसारिक ज्ञान की आवश्यकता है लेकिन कृष्ण चाहते हैं कि अर्जुन इन सबसे ऊपर उठे।
वह चाहते हैं कि अर्जुन भगवान और सत्य दोनों में विश्वास करे। अर्जुन जाने कि आत्मा अजर-अमर है बस शरीर साथ छोड़ देता है। वह अर्जुन को स्वंय के धर्म और उसके प्रति कर्तव्य के विषय में बताते हैं।
वह अपना प्रकंड अविश्वनीय रूप दिखाकर अर्जुन को उपदेश देते हैं। भगवान कृष्ण बताते हैं कि, हमारा शरीर क्षणिक हैं लेकिन यह हमारी आत्मा है जो मृत्युहीन और एक है। हम आत्मा को चाहकर भी नष्ट नहीं कर सकते। आत्मा न जन्म लेती है न मरती है। यह अजन्मी, नित्य और अविनाशी रहती है। हमारी आत्मा उसी तरह शरीर बदलती है जैसे हम अपने शरीर के लिए कपड़े बदलते हैं।
इसलिए, सभी मनुष्य को आत्मा का ज्ञान और चिंतन अवश्य होना चाहिए। हम उन्ही कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं जो हमें दिए गए है। जो व्यक्ति ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करता है और बदले की भावना नहीं रखता है, जो निस्वार्थ सेवा करता है वह एक सर्वश्रेष्ठ आत्मा होती है। वह एक मुक्त व्यक्ति है जो जन्म और मृत्यु के इस चक्र में नहीं फंसता है। वह दुनिया की सच्चाई को महसूस करने में सक्षम होता है।
गीता श्लोक-
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:
भौतिक वस्तुएं आत्मा से मिलने का रास्ता नहीं हैं, भौतिकवाद हमें केवल हमारी चेतना तक पहुंचा सकती है, आत्मा परमात्मा है और किसी भी प्रकार के भौतिकवाद से परे है। न कोई श्स्त्र इसे भेद सकता है, न कोई हवा इसे रोक सकती है, न पानी इसे गला सकता है और न आग इसे जला सकती है।
इस दूसरे अध्याय का सार शरीर और आत्मा के बीच अंतर करना है। यदि हम इस अंतर को समझ जाते हैं तो हम अपने आध्यात्मिक भावना को पाएंगे। इस अध्याय के बारे में एक दिलचस्प बात यह भी है कि बिल्कुल ऐसी ही बात बाइबल में भी कही गई है। अगर हम पूरी दुनिया को पा लें लेकिन हमें अपने भीतर चिंतन का ज्ञान न हो हमारी अपनी आत्मा से कोई मिलन न हो तो फायदा होगा? या मनुष्य अपनी आत्मा के बदले में क्या दे सकता है?
कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विथ अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के सौ से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सक्सेजफुल डेली शो कर चुके हैं।
अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA)भी किया है।