गर्भ में पल रहे बच्चे की हो गई थी मौत, देवसहायम के "चमत्कार" से लौटी सांस, वेटिकन ने घोषित किया संत

देवसहायम (Devasahayam) पहले भारतीय आम आदमी हैं जिसे वेटिकन (Vatican) द्वारा "बढ़ती कठिनाइयों को सहन करने" के लिए संत की उपाधि दी गई है। एक गर्भवती महिला ने उनके चमत्कार की गवाही दी थी।

Asianet News Hindi | Published : May 16, 2022 10:26 AM IST / Updated: May 16 2022, 03:59 PM IST

चेन्नई। तत्कालीन त्रावणकोर राज्य में 18वीं शताब्दी में ईसाई धर्म अपनाने वाले देवसहायम (Devasahayam) को आज वेटिकन में पोप फ्रांसिस ने संत घोषित किया। देवसहायम को Lazarus के नाम से भी जाना जाता है। देवसहायम पहले भारतीय आम आदमी हैं जिन्हें वेटिकन द्वारा "बढ़ती कठिनाइयों को सहन करने" के लिए संत की उपाधि दी गई है। 

नीलकंदन पिल्लई का जन्म वर्तमान कन्याकुमारी के हिंदू उच्च जाति के परिवार में हुआ था। उन्होंने त्रावणकोर महल में काम किया था। 1745 में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया और देवसहायम नाम लिया। उन्होंने जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसके चलते उन्हें सताया गया और फिर मार दिया गया। 2012 में वेटिकन ने सख्त प्रक्रिया के बाद उनकी शहादत को मान्यता दी।

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गर्भवती महिला ने दी थी चमत्कार की गवाही 
गर्भावस्था के सातवें महीने में एक महिला द्वारा 2013 में प्रार्थना करने के बाद एक "चमत्कार" की गवाही देने के बाद देवसहायम को संत की उपाधि के लिए चुना गया। महिला ने कहा कि उसके भ्रूण को "चिकित्सकीय रूप से मृत" घोषित कर दिया गया था। कोई हलचल नहीं थी। उसने शहीद देवसहायम से प्रार्थना की। इसके बाद बच्चे में जीवन लौट आया। उसने हलचल शुरू कर दी। वेटिकन ने इसे स्वीकार कर लिया और देवसहाय को संत का दर्जा दे दिया।

फादर जॉन कुलंदई ने कहा कि यह संतत्व हमारे लिए भेदभाव से मुक्त जीवन जीने का निमंत्रण है। फादर जॉन कुलंदई ने कन्याकुमारी में इस मामले पर काम करने वाली टीम के एक प्रमुख सदस्य के रूप में वेटिकन में विमोचन में भाग लिया था। वेटिकन के मूल निमंत्रण में देवसहायम की पूर्व जाति "पिल्लई" का उल्लेख था। इस बात का विरोध किया गया था। कहा गया था कि जाति का नाम जोड़ने से देवसहायम का उद्देश्य विफल हो जाता है। इसके बाद वेटिकन ने इसे हटा दिया।

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देवसहायम ने सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ी
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी देवसहायम ने वेटिकन को पत्र लिखकर देवसहायम की जाति का नाम हटाने की मांग करते हुए कहा कि संत देवसहायम समानता के लिए खड़े हुए और जातिवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका संतत्व ऐसे समय में आया है जब भारत सांप्रदायिकता में वृद्धि का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा, "यह संतीकरण चर्च के लिए प्रचलित सांप्रदायिक जहर के खिलाफ खड़े होने का एक बड़ा अवसर है। चर्च को इसे एक जन आंदोलन बनाना चाहिए था, लेकिन वे विफल रहे और इसे पादरी-केंद्रित कार्यक्रम बना दिया।"

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