विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सीमा विवाद को लेकर चीन को कड़ी फटकार लगाई है। एस जयशंकर ने कहा, चीन के साथ रिश्ते अब बहुत खराब दौर में हैं। इन्हें काफी नुकसान पहुंचा है। विदेश मंत्री ने कहा, चीन एलएसी पर शांति के लिए किए गए समझौतों को ही मान नहीं रहा है।
नई दिल्ली. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सीमा विवाद को लेकर चीन को कड़ी फटकार लगाई है। एस जयशंकर ने कहा, चीन के साथ रिश्ते अब बहुत खराब दौर में हैं। इन्हें काफी नुकसान पहुंचा है। विदेश मंत्री ने कहा, चीन एलएसी पर शांति के लिए किए गए समझौतों को ही मान नहीं रहा है। यही वजह है कि एलएसी पर संकट को सुलझाने के लिए दोनों देशों के लिए यह बड़ा विषय बन गया है। जयशंकर लोवी इंस्टीट्यूट की तरफ से आयोजित कार्यक्रम में अपनी बात रख रहे थे।
विदेश मंत्री ने कहा, एलएसी पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए किए गए समझौतों के बाद भी चीन ने अपनी तरफ से हजारों जवानों को तैनात किया। यह समझौतों का उल्लंघन था। एस जयशंकर ने कहा, चीन हर बार इशके पीछे कोई नई वजह बता देता था। लेकिन अब रिश्ते काफी खराब दौर में हैं। अब इन्हें पटरी पर लाना एक बड़ा मुद्दा होगा।
कुछ दिनों में बर्बाद हो गए 30-40 सालों के रिश्ते
जयशंकर ने गलवान हिंसा का जिक्र करते हुए कहा, हमारे 20 जवान शहीद हुए थे। हम चीन के साथ आज रिश्तों के सबसे कठिन दौर में हैं। कम से कम 30-40 साल के वक्त में तो जरूर या उससे भी ज्यादा। उन्होंने कहा, चीन के साथ पिछले 30 साल में जो संबंधों में गुडविल बनी थी, वह कुछ दिन में बर्बाद हो गई। चीन हमारा दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा था। दोनों देश सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए सहमत हुए थे।
चीन ने 5 बार दी सफाई
जयशंकर ने कहा, पता नहीं क्या वजह है, जिसकी वजह से चीन ने पांच बार अलग अलग सफाइयां दीं। उन्होंने समझौते का उल्लंघन क्यों किया। चीन के सैनिक पूरी तैयारी के साथ लद्दाख में एलएसी पर आ गए थे। जाहिर है, इससे रिश्तों पर गहरा असर पड़ेगा। बहस और झड़पें पहले भी होती रही थीं, लेकिन समझौते का उल्लंघन इससे पहले कभी नहीं हुआ था।
'बातचीत में कोई दिक्कत नहीं'
जयशंकर ने कहा, भारत और चीन के रिश्तों को पटरी पर लाना एक बड़ा मुद्दा है। उन्होंने कहा, बातचीत में कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने बताया, उन्होंने इसे लेकर चीन के विदेश मंत्री वांग यी से भी बात की। जयशंकर ने कहा, बातचीत मुद्दा नहीं है, समस्या ये है कि हमारे कुछ समझौते हैं और उन समझौतों का पालन नहीं हो रहा है।