देश में हर साल निकलते हैं 15 लाख इंजीनियर्स, 60% रह जाते हैं बेरोजगार; इसलिए घट रहा छात्रों का रुझान

महान इंजीनियर मोक्षागुंडम विश्वेश्वराया के जन्मदिवस पर 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे मनाया जाता है। विश्वेश्वराया को 1995 में भारत रत्न से नवाजा गया था। देश में बने कई बड़े नदियों के डेम, ब्रिज और पीने के पानी की स्कीम को कामयाब बनाने के पीछे विश्वेश्वराया का अहम योगदान माना जाता है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 15, 2020 1:54 AM IST / Updated: Sep 15 2020, 12:55 PM IST

नई दिल्ली. महान इंजीनियर मोक्षागुंडम विश्वेश्वराया के जन्मदिवस पर 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे मनाया जाता है। विश्वेश्वराया को 1995 में भारत रत्न से नवाजा गया था। देश में बने कई बड़े नदियों के डेम, ब्रिज और पीने के पानी की स्कीम को कामयाब बनाने के पीछे विश्वेश्वराया का अहम योगदान माना जाता है। इंजीनियर्स डे के मौके पर हम आपको कुछ इंटरेस्टिंग फैक्ट्स बता रहे हैं। 

तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में हर साल 15 लाख इंजीनियर्स तैयार होते हैं। इनमें साइंस, इलेक्ट्रानिक्स, सिविल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग समेत तमाम ब्रांच शामिल हैं। भारत आईटी क्षेत्र में अग्रणी देशों में है, इसलिए यहां बड़ी संख्या में आईटी इंजीनियर्स भी हर साल निकलते हैं। 

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60% रह जाते हैं बेरोजगार
खास बात ये है कि भारत में हर साल करीब 60% इंजीनियर्स बेरोजगार रह जाते हैं। इतना ही नहीं 2016-17 में 66% आईआईटी स्नातकों को कैंपस प्लेसमेंट नहीं मिला। 2015 में यह आंकड़ा 79% था। 

भारत में इंजीनियरिंग की 29 लाख सीटें
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक, भारत में इंजीनियरिंग के 6,214 संस्थान हैं। इनमें 29 लाख बच्चों का एडमिशन होता है। 15 लाख बच्चे नौकरी के लिए मार्केट में आते हैं। इनमें से ज्यादातर बेरोजगार ही रह जाते हैं। 

क्यों बड़ी संख्या में बेरोजगार रह जाते हैं इंजीनियर
आस्पाइरिंग माइन्ड्स कंपनी में 2013 में  1,50,000 इंजीनियरों पर एक सर्वे किया था। इसमें पाया गया था कि 97 प्रतिशत लोग सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग या कोर इंजीनियरिंग में जॉब करना चाहते हैं। लेकिन सर्वे में पाया गया कि इनमें से सिर्फ 3% ही  काम करने के लिए उपयुक्त पाए गए। जबकि 7% इंजीनियरिंग का काम हैंडल कर पाने के काबिल मिले। 

इंजीनियरिंग में कम हो रहा झुकाव
कुछ सालों पहले तक युवाओं का बड़ी संख्या में झुकाव इंजीनियरिंग की तरफ था। लेकिन पिछले कुछ सालों से ट्रेंड बदला हुआ नजर आ रहा है। 2019-20 में 50 फीसदी इंजिनियरिंग की सीटें खाली रह गईं। इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की 14 लाख, डिप्लोमा की 11 लाख और पोस्ट ग्रेजुएट की 1.8 लाख सीटें हैं। यानी सब मिलाकर 27 लाख सीटें तय हैं। लेकिन सिर्फ 13 लाख छात्रों ने प्रवेश लिया। 

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