श्रीकृष्ण विराजमान केस में लागू नहीं होता वरशिप एक्ट, वकील रंजना अग्निहोत्री ने बताया, आज कोर्ट में क्या हुआ?

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में सोमवार को मथुरा की जिला जज कोर्ट में अपील दाखिल की गई। करीब 2 घंटे की सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर को अगली तारीख दी गई। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से वकील हरि शंकर जैन, विष्णु जैन और पंकज वर्मा ने पक्ष रखा। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान के वाद मित्र ( Next Friend) के रूप में हाईकोर्ट की वकील रंजना अग्निहोत्री भी कोर्ट में मौजूद थी।

नई दिल्ली/लखनऊ. श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में सोमवार को मथुरा की जिला जज कोर्ट में अपील दाखिल की गई। करीब 2 घंटे की सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर को अगली तारीख दी गई। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से वकील हरि शंकर जैन, विष्णु जैन और पंकज वर्मा ने पक्ष रखा। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान के वाद मित्र ( Next Friend) के रूप में हाईकोर्ट की वकील रंजना अग्निहोत्री भी कोर्ट में मौजूद थी। पहले दिन की सुनवाई के बाद वकील रंजना अग्निहोत्री ने Asianet News Hindi से बात की और बताया कि आखिर इससे पहले सिविल कोर्ट में यह केस खारिज क्यों हुआ? इस बार कोर्ट में क्या तर्क रखे गए?

सवाल: रंजना जी, आज कितने घंटे की सुनवाई हुई? कोर्ट ने क्या कहा?
जवाब:
 सोमवार को दोपहर 3 बजे सुनवाई शुरू हुई और 5 बजे तक चली। वकीलों ने अपनी तरफ से पक्ष रखे, जिसके बाद कोर्ट ने लोवर कोर्ट का रिकॉर्ड समन कर लिया है। 

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सवाल: 'भगवान श्रीकृष्ण विराजमान' के इस केस का आधार क्या है?
जवाब:
इस केस का आधार राम जन्मभूमि के फैसले को ही बनाया गया है। राम जन्मभूमि के फैसले के आधार पर ही बताया गया कि भक्त के क्या अधिकार हैं। 

सवाल: इस केस को लेकर 30 सितंबर को भी एक अपील की गई थी, जो खारिज कर दी गई? क्या प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट की वजह से ऐसा हुआ था? 
जवाब:
वरशिप एक्ट की बात नहीं थी। वर्सिप एक्ट हम पर (इस केस में) अप्लाई नहीं होता है। उस दिन कोर्ट ने यह बात नहीं कही थी। कोर्ट ने सिर्फ यह कहा था कि भक्त का राइट और इंट्रेस्ट कैसे है? अगर मैं आज इसे स्वीकार कर लूं तो कल सभी भक्त आ जाएंगे कोर्ट की न्यायिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। 

सवाल: पहली याचिका किन दो बिंदुओं की वजह से खारिज हुई थी?
जवाब:
पहली याचिका को कोर्ट ने ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि सिर्फ आप अपने आप को भक्त कह रहे हैं। यह भक्त का अधिकार कैसे है? दूसरी बात अगर हम एक भक्त को कहते हैं कि उसका वाद स्वीकार किया जाता है तो हजारों भक्तों की लाइन लग जाएगी। इससे न्यायिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। ऐसे में हमारा तर्क था कि न्यायिक व्यवस्था ध्वस्त नहीं होती। हजारो केस ही क्यों न आ जाए।

सवाल: आज कोर्ट में क्या-क्या सवाल जवाब हुए?
जवाब:
कोर्ट ने पूछा कि भक्त का अधिकार कैसे है? तब भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से राम जन्मभूमि के फैसले को कोर्ट के सामने रखा। जजमेंट की एक कॉपी भी दी। इसी प्वॉइंटर पर अपील की गई है। 

सवाल: क्या भविष्य में भी इस केस में प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट नहीं आएगा?
जवाब:
नहीं। वरशिप एक्ट का प्वॉइंट नहीं आएगा। अप्लाई नहीं करता है। वो सिर्फ प्रेस में वरसिप एक्ट चल रहा है। जिसे लेकर हम बात कर रहे हैं उसपर 1968 के बाद अतिक्रमण करके बनाया गया है। वरसिप एक्ट की कटऑफ डेट 1945 की या उससे पहले की है।  दरअसल, प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज और भविष्य में भी उसी का रहेगा। इसका मतलब है कि अगर आजादी के दिन एक जगह पर मन्दिर था तो उसपर मुस्लिम दावा नहीं कर सकता। चाहे आजादी से पहले वहां मस्जिद ही क्यूं न रहा हो। ठीक ऐसे ही 15 अगस्त 1947 को एक जगह पर मस्जिद था तो वहां पर आज भी मस्जिद की ही दावेदारी मानी जाएगी। इस कानून से अयोध्या विवाद को अलग रखा गया था।

मथुरा में शाही मस्जिद ईदगाह और कृष्ण जन्मभूमि मंदिर बिल्कुल अगल-बगल है। यहां पूजा अर्चना और पांच वक्त की नमाज नियमित रूप से चलती है।  इतिहासकारों का दावा है कि 17वीं सदी में बादशाह औरंगजेब ने एक मंदिर तुड़वाया था और उसी पर मस्जिद बनी। हिंदू संगठनों को कहना है कि मस्जिद के स्थान पर ही भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।


इस विवाद को लेकर 12 अक्टूबर 1968 को एक समझौता हुआ। शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के बीच समझौते में मस्जिद की कुछ जमीन मंदिर के लिए खाली की गई, जिसके बाद यह मान लिया गया कि अब विवाद खत्म हो गया है। लेकिन श्री कृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल शर्मा और न्यास के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी इस समझौते को ही गलत मानते हैं।

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