संसद का शीतकालीन सत्र स्थगित, वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने कहा संसद के सत्र से क्यों डरें ?

वरिष्ठ पत्रकार  डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने लिखा कि  संसद का शीतकालीन सत्र स्थगित हो गया। अब बजट सत्र ही होगा। वैसे सरकार ने यह फैसला लगभग सभी विरोधी दलों के नेताओं की सहमति के बाद किया है। संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद पटेल का यह तर्क कुछ वजनदार जरुर है कि संसद के पिछले सत्र में सांसदों की उपस्थिति काफी कम रही और कुछ सांसद और मंत्री कोरोना के कारण स्वर्गवासी भी हो गए। अब अगला सत्र, बजट सत्र होगा, जो जनवरी 2021 याने कुछ ही दिन में शुरु होनेवाला है। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 17, 2020 11:22 AM IST / Updated: Dec 17 2020, 05:34 PM IST

डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने लिखा कि  संसद का शीतकालीन सत्र स्थगित हो गया। अब बजट सत्र ही होगा। वैसे सरकार ने यह फैसला लगभग सभी विरोधी दलों के नेताओं की सहमति के बाद किया है। संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद पटेल का यह तर्क कुछ वजनदार जरुर है कि संसद के पिछले सत्र में सांसदों की उपस्थिति काफी कम रही और कुछ सांसद और मंत्री कोरोना के कारण स्वर्गवासी भी हो गए। अब अगला सत्र, बजट सत्र होगा, जो जनवरी 2021 याने कुछ ही दिन में शुरु होनेवाला है। पटेल ने कुछ कांग्रेसी और तृणमूल सांसदों की आपत्ति पर यह भी कहा है कि भाजपा पर लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना का आरोप लगाने वाले नेता जरा अपनी पार्टियों में से पारिवारिक तानाशाही को तो कम करके दिखाएं। इन तर्कों के बावजूद यदि सरकार चाहती तो वह सभी दलीय नेताओं को शीतकालीन सत्र के लिए राजी कर सकती थी। यदि वे उस सत्र का बहिष्कार करते तो उनकी ही नाक कट जाती। 

अगर संसद का यह सत्र होता जमकर होता हंगामा 
यदि संसद का यह सत्र आहूत होता तो सरकार और सारे देश को झंकृत करने वाले कुछ मुद्दों पर जमकर बहस होती। यह ठीक है कि उस बहस में विपक्षी सांसद, सही या गलत, सरकार की टांग खींचे बिना नहीं रहते लेकिन उस बहस में से कुछ रचनात्मक सुझाव, प्रामाणिक शिकायतें और उपयोगी रास्ते भी निकलते। इस समय कोरोना के टीके का देशव्यापी वितरण, आर्थिक शैथिल्य, बेरोजगारी, किसान आंदोलन, भारत-चीन विवाद आदि ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं, जिन पर खुलकर संवाद होता। यह संवाद इसलिए भी जरुरी है कि भाजपा के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा अन्य नेतागण पत्रकार-परिषद करने से घबराते हैं। आम जनता-दरबार लगाने की तो वे कल्पना भी नहीं कर सकते। 

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सरकार पर भारी पड़ सकती है संवाद की कमी  
संवाद की यह कमी किसी भी सरकार के लिए बहुत भारी पड़ सकती है। संवाद की इसी कमी के कारण हिटलर, मुसोलिनी और स्तालिन जैसे बड़े नेता मिट्टी के पुतलों की तरह धराशायी हो गए। इसमें तो विपक्षियों को जितना लाभ है, उतना किसी को नहीं है। जिन लोगों को भारत राष्ट्र और इसके लोकतंत्र की चिंता है, वे चाहेंगे कि अगले माह होनेवाला बजट सत्र थोड़ा लंबा चले और उसमें स्वस्थ बहस खुलकर हो ताकि देश की समस्याओं का समयोचित समाधान हो सके।

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