सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सीजेआई (Chief Justice of India) एनवी रमना (NV Ramana) 26 अगस्त को रिटायर हो गए। उनका कार्यकाल एक साल चार महीने का रहा। इस दौरान उन्होंने देशद्रोह कानून खत्म करने से लेकर कई ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सीजेआई (Chief Justice of India) एनवी रमना (NV Ramana) शुक्रवार को रिटायर हो गए। सीजेआई के रूप में उनका कार्यकाल एक साल चार महीने का रहा। इस दौरान उन्होंने जजों के खाली पदों को भरने पर बल दिया। उन्हें कोर्ट में बड़ी संख्या में लंबित मामलों को कम करने के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए भी जाना जाता है।
एनवी रमना अपने पीछे देशद्रोह कानून खत्म करने से लेकर जज-जनसंख्या अनुपात में सुधार तक कई स्थायी विरासत छोड़कर गए। उन्होंने जिला अदालतों और हाई कोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या बढ़ाने पर जोर डाला था। उन्होंने जनसंख्या के अनुपात में जजों की संख्या में सुधार पर प्रकाश डाला और कोर्ट में लंबित मामलों को कम करने की दिशा में काम किया।
हाईकोर्ट के 225 जज किये नियुक्त
सीजेआई के रूप में अपने 16 महीने के कार्यकाल में उन्होंने 225 न्यायीक अधिकारियों और वकीलों के हाईकोर्ट के जज के रूप में नियुक्ति की सिफारिश की। रमना ने सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों की नियुक्ति की। उनके कार्यकाल के दौरान विभिन्न हाई कोर्ट में 15 चीफ जस्टिस नियुक्त किए गए थे।
नागरिक अधिकारों और कर्तव्यों पर की बात
सार्वजनिक मंचों पर बोलते हुए CJI रमना ने संविधान के तहत लोगों के अधिकारों की रक्षा की बातें की। छत्तीसगढ़ में हाल ही में एक दीक्षांत समारोह में उन्होंने लोगों से "जीवंतता और आदर्शवाद" से भरे लोकतंत्र का निर्माण करने का आग्रह किया था। उन्होंने ऐसा देश बनाने की बात की जहां पहचान और विचारों के अंतर का सम्मान किया जाता है। रमना ने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। एक संवैधानिक गणतंत्र तभी पनपेगा जब उसके नागरिक इस बात से अवगत होंगे कि उनके संविधान की परिकल्पना क्या है।
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राजद्रोह कानून पर लगाया था रोक
एनवी रमना ने कई अप्रचलित कानूनों की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया। ये कानून आजादी मिलने से पहले से चले आ रहे हैं। पिछले साल 15 जुलाई को रमना ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने गुलामी के दिनों के राजद्रोह कानून पर रोक लगा दिया था और केंद्र सरकार व राज्यों से भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के तहत कोई भी मामला दर्ज नहीं करने को कहा था।
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