खाने-पीने के शौकीन थे कार्टूनिस्ट मारियो मिरांडा, लोगों को ऑब्जर्व करने रेस्टोरेंट्स-बार में बिताते थे वक्त

अपने अंतिम समय में मिरांडा अपनी वाइफ हबीबा के साथ गोवा के सालसेटे के एक गांव लुटोलिम में रहे। यहीं उनका पैतृक मकान भी था। मिरांडा को 1988 में भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से नावाजा गया। इसके बाद 2002 में उन्हें पद्म भूषण का सम्मान मिला।

Asianet News Hindi | Published : Aug 8, 2022 10:55 AM IST

Best of Bharat : भारत की आजादी का पर्व इस बार खास होने जा रहा है। 15 अगस्त, 2022 को आजादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं। देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) चल रहा है। हर देशवासी देशभक्ति में सराबोर है। इस अवसर पर हम आपको बता रहे हैं देश के उन मशहूर कार्टूनिस्ट के बारें में, जिनकी कागजों पर खींची लकीरें आज भी हिंदुस्तान को नई राह दिखा रही हैं। उनके बनाए कार्टून आज भी लोगों के दिलों में जीवंत हैं। 'Best of Bharat'सीरीज में बात अनगिनत कार्टूनों और क्रिएटिव चित्रों में जान डालने वाले मारियो मिरांडा (Mario Miranda) की... 

मारियो मिरांडा ने दिलाई गोवा की संस्कृति को पहचान
जाने माने कार्टूनिस्ट मारियो मिरांडा का जन्म 2 मई, 1926 को गोवा (Goa) में हुआ था। उन्होंने अपनी अद्भुत रचनाओं के दम पर गोवा की संस्कृति और गोवावासियों के जीवन को पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। उनकी लेखनी को अंग्रेजी वर्णमाला में समेटा नहीं जा सकता। मारियो को विशेष तौर पर इलेस्ट्रेटेड वीकली के लिए बनाए कार्टून्स के लिए जाना जाता है। उन्होंने कई प्रतिष्ठित अखबारों में काम किया और एक पहचान बनाई।  

छोटी उम्र में ही दीवारों पर बनाते थे स्केच
मारियो बचपन में जब 10 साल के थे, तब से ही अपनी घर की दीवारों पर स्केच और कैरिकेचर बनाया करते थे। ऐसा वे तब तक करते थे, जब तक उनकी मां उनके लिए कोई ड्रॉइंग कॉपी नहीं ला देती थीं। 1930 और 1940 के दौर की बात है, जब मारियो अपने दोस्तों के लिए पोस्टकार्ड बनाने लगे। दोस्तों से वे एक टोकन का पैसा लेते थे। अपने शुरुआती कार्टूनों में उन्होंने गोवा के ग्रामीण जीवन को उकेरा। इसको लेकर वह आज भी सबसे ज्यादा पहचाने जाते हैं।

IAS बनना चाहते थे मारियो मिरांडा
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मारियो मिरांडा IAS ऑफिसर बनना चाहते थे। उन्होंने सेंट जोसेफ बॉयज हाईस्कूल, बैंगलोर से पढ़ाई की थी। भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) पर फोकस करते हुए उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से इतिहास में बीए की पढ़ाई की लेकिन बाद में माता-पिता के कहने पर वास्तुकला की ओर चले गए। कहा जाता है कि ज्यादा दिन तक वे इसका इंट्रेस्ट नहीं रख सके। बाद में उन्होंने अपनी पर्सनल डायरी में लोगों  की जिंदगी को कैद की।

रेस्टोरेंट्स-बार में बिताते थे ज्यादातर वक्त
गोवा में मारियो के दोस्त और मारियो गैलरी के फाउंडर गेरार्ड चुन्हां ने एक बार एक मीडिया हाउस से बातचीत में बताया था कि मारियो खाने-पीने के काफी शौकीन थे। वह अपना ज्यादातर वक्त रेस्टोरेंट्स और बार में रहकर लोगों को ऑब्जर्व करने में गुजारते थे। इसका जिक्र उन्होंने मारियो की लाइफ पर लिखी किताब 'द लाइफ ऑफ मारियो-1949' में भी किया है।

मारियो मिरांडा को मिली पहचान
मिरांडा ने एक विज्ञापन स्टूडियो से अपने करियर की शुरुआत की। एक कार्टूनिस्ट के तौर पर द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया में उन्हें पहला काम मिला। इसके बाद उन्होंने कई प्रतिष्ठित न्यूजपेपर में काम किया। यहां उन्होंने कई रचनाएं लिखी। कुछ साल बाद मारियो को कैलौस्ट गुलबेंकियन फाउंडेशन की तरफ से अनुदान मिला और वे पुत्रगाल चले गए। इसके बाद लंदन और फिर अखबार और टीवी में एनिमेशन का काम करते रहे। 1980 में वे इंडिया वापस आ गए और प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण के साथ काम किया। मिरांडा को पहचान 1974 में मिली। तब यूनाइटेड स्टेट्स इंफॉर्मेशन सर्विसेज ने उन्हें इनवाइट किया। इसके बाद उन्होंने जापान, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, फ्रांस, यूगोस्लाविया और पुर्तगाल समेत 22 से ज्यादा देशों में एग्जीबिशन लगाए। 11 दिसंबर 2011 को मिरांडा ने अंतिम सांस ली।

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