IAF Top Guns: जानें USAF से ट्रेंड भारतीय फाइटर पायलट्स की अनटोल्ड स्टोरी

यह स्टोरी इंडियन एयरफोर्स (Indian Airforce) के उन जांबाज पायलट्स की है, जिन्होंने एफ-86 साबर्स (F-86 Sabre) लड़ाकू विमान उड़ाए। यूनाइटेड स्टेट्स एयरफोर्स के साथ मिलकर उन्होंने यह लड़ाकू विमान उड़ाने का प्रशिक्षण लिया था। 

IAF Top Guns. भारतीय वायुसेना के खजाने में कई ऐसी कहानियां हैं, जो बहादुरी और हिम्मत कि मिसाल हैं। इंडियन एयरफोर्स के जांबाज पायलटों ने 1965 और 1971 के युद्ध में एफ-86 लड़ाकू विमान उड़ाए थे। हम आपको ऐसे ही 80 एयरफोर्स पायलट्स की कहानी बता रहे हैं। जिन्होंने 1963 से 1966 के बीच यूएस एयरफोर्स के साथ प्रशिक्षण लिया और बाद में 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी एयरफोर्स के 5 साबर्स को मार गिराया था। 

कब महसूस की गई जरूरत
1962 के चीन-भारत युद्ध ने दो प्रमुख बदलावों को जन्म दिया था। पहला यह कि इंडियन एयरफोर्स फाइटर स्क्वाड्रन का विस्तार किया जाए और पायलटों की संख्या बढ़ाई जाए। दूसरा, यह कि अमेरिकन व ब्रिटिश एयरफोर्स के साथ असिस्टेंस बढ़ाई जाए ताकि चीन के साथ शक्ति संतुलन स्थापित किया जा सके। उस वक्त यह महसूस किया गया कि भारत में स्क्वाड्रन ट्रेनिंग इस योग्य नहीं है कि जरूरत के हिसाब से पूरी तरह से ऑपरेशन के लिए तैयार पायलट्स रेडी कर सके। इसलिए यूनाइटेड स्टेट और यूनाइटेड किंगडम दोनों से मदद मांगी गई। तब दोनों ने रिस्पांड किया और यूएसएएफ से प्रशिक्षित आईएएफ पायलट्स टी-33 और एफ-86 जैसे लड़ाकू विमान उड़ाने में महारत हासिल कर सके। 

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अमेरिकी एयरबेस पर मिली ट्रेनिंग
तब यूएस एयरफोर्स ने अपना कॉम्बैट क्रू ट्रेनिंग स्क्वाड्रन ओपन कर दिया और भारतीय पायलट्स के लिए एडवांस फाइटर कोर्स तैयार किया। उस वक्त लैटिन अमेरिका, फॉर इस्टर्न, नाटो कंट्रीज, ईरान और पाकिस्तानी क्रू के साथ भारतीय पायलट्स भी प्रशिक्षित हुए। यह कोर्स 6 महीने का था, जिसकी ट्रेनिंग लैकलैंड, राडोल्फ और नेलिस एयरफोर्स बेस पर दी गई। यूएस एयरफोर्स का मानना था कि इन पायलट्स को कम से कम 200 जेट घंटे की उड़ान का अनुभव जरूर होना चाहिए। साथ ही अच्छी रेटिंग भी रहे। इसलिए एयर हेडक्वार्टर ने यह तय किया कि वैंपायर और तूफानी स्क्वाड्रन के पायलट्स ही भेजे जाएंगे। यह भी तय किया गया कि पहले बैच के बाद 300 घंटों की उड़ान से कम अनुभव वालों को ट्रेनिंग के लिए नहीं भेजा जाएगा। तब उन 3 वर्षों में कुल 82 पायलट्स की ट्रेनिंग पूरी हुई। 

ट्रेनिंग के दौरान क्या-क्या सीखा
ट्रेनिंग के दौरान लैकलैंड एयरफोर्स पर पहला महीना सिर्फ इंग्लिश की ट्रेनिंग के लिए होता था। उसके बाद राडोल्फ एयरफोर्स बेस पर कंवर्सेशन की ट्रेनिंग दी जाती थी। साथ ही ट्रेनर के साथ टी-33 उड़ाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। अंतिम कुछ महीनों के दौरान नेलिस एयरफोर्स बेस पर इन पायलट्स को टी-33 के साथ ही एफ-86 लड़ाकू विमान उड़ाने की ट्रेनिंग दी गई। साथ ही एयर टू ग्राउंड और एयर टू एयर लाइव आर्नामेंट ट्रेनिंग दी गई। राडोल्फ बेस पर उन्हें 14 घंटे टी-33 पर कंवर्सेशन की ट्रेनिंग दी जाती थी। 90 मिनट में सर्किट्स, लैंडिंग और सिमुलेटेड फ्लेम-आउट पैटर्न की जानकारी दी जाती थी। इस ट्रेनिंग के दौरान एयरोबेटिक्स, इंस्ट्रूमेंट फ्लाइंग, जीसीए रडार एप्रोच के साथ ही दो या चार एयरक्राफ्ट के कोर्डिनेशन का प्रशिक्षण शामिल था। तब नेलिस को फाइटर पायलट्स का घर कहा जाता था। क्योंकि तब तक नेवी का टॉप गन स्कूल अस्तित्व में नहीं आया था और नेलिस स्थित सीसीटीएस को ही उस जमाने का टॉप गन स्कूल कहा जाता था।  

इस तरह का मिला प्रशिक्षण
नेलिस बेस पर पहला महीने अकेले ही टी-33 विमान उड़ाने में बीतता था। साथ ही एयर टू ग्राउंड की पूरी जानकारी और बांबिग एक्सरसाइज कराई जाती थी। तब ट्रेनी आईएएफ पायलट्स को चार एयरक्राफ्ट के कोर्डिनेशन के साथ अटैक की ट्रेनिंग दी जाती थी। साथ ही पाकिस्तानी पालयट्स, ईरान, लैटिन अमेरिका और नाटो देशों के पायलटों की भी इंफार्मेशन दी जाती थी। इसके बाद वे एफ-86 उड़ाने के साथ ही कंवर्जन और बंदूल संचालन का प्रशिक्षण पाते थे। यह पहला एयरक्राफ्ट था जो कि हाइड्रोकली पॉवर्ड फ्लाइट कंट्रोल के साथ था। इसमें एयर टू ग्राउंड फेज के दौरान स्ट्राफिंग, रॉकेट प्रोजक्टाइल फायरिंग, डाइव बांबिंग और लो लेवल बांबिंग का प्रशिक्षण दिया जाता था।

पायलटों को मिला यह लाभ
तब प्रशिक्षण प्राप्त सभी पायलट्स को एक सामान्य सर्टिफिकेट दिए जाते थे, जो कि सफलतापूर्वक यह प्रशिक्षण पूरा कर लेते थे। इसके साथ ही अलग-अलग 
श्रेणियों में बेहतर प्रदर्शन करने वालों को सर्टिफिकेट ऑफ एचीवमेंट दिया जाता था। इसके अलावा तीन ट्राफियां प्रदान दी जाती थीं। जिसमें ट्रेनिंग के साथ जमीनी विषयों में सर्वेश्रेष्ठ, लाइव बांबिंग और फ्लाइंग में टॉप गन का पुरस्कार शामिल था। तब तीन इंडियन एयरफोर्स अधिकारियों वीके भाटिया, दादू सुबैया और वी विद्याधर को टॉप गन ट्रॉफी दी गई थी। इससे पायलटों को बड़ा लाभ हुआ और उन्होंने दो अलग-अलग विमानों को उड़ाना सीखा। साथ ही यूएसएएफ की रणनीति और उड़ान भरना, विभिन्न देशों के पायलटों के साथ रहने का अनुभव भी इसमें शामिल था। सबसे महत्वपूर्ण यह था कि भारतीय वायुसेना के पायलट्स ने एफ-86 को बेहतर तरीके से उड़ाना समझ लिया था। 

कौन थे सुकरुत राज
सुकरूत राज ने मार्च-अक्टूबर 1965 तक पाठ्यक्रम में भाग लिया। वे 1971 के युद्ध में 4 स्क्वाड्रन के साथ उड़ान भर रहे थे। एक मिशन के दौरान पाकिस्तान वायु सेना के सेब्रेस द्वारा बाउंस किए गए तो उन्होंने दुश्मन के विमान को मार गिराया। उन्हें हवा से हवा में मार करने के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

दिनेश चंदर डैनी का पराक्रम
1966 में पाठ्यक्रम पूरा करने वाले अंतिम पायलटों में से एक थे दिनेश चंदर डैनी नय्यर। वे 1971 के युद्ध के दौरान ढाका हवाई क्षेत्र पर अपने पहले काउंटर-एयर मिशन पर थे। उसी दौरान उन्हें विमान-विरोधी गोलियों का सामना करना पड़ा। लेकिन डैनी ने बहादुरी दिखाई औ दुश्मन को धूल चटा दी। बाद में दिनेश चंदर डैनी को वीर चक्र से सम्मानित किया गया। 

कौन थे जिमी भाटिया
1971 के युद्ध में 32 स्क्वाड्रन के साथ Su-7 को जिमी भाटिया उड़ा रहे थे। तब PAF एयरबेस पर गहरी पैठ के हमले में जमीन पर उन्होंने तीन सबर्स को नष्ट करने में सफलता पाई थी। इसके लिए उन्हें दूसरी बार भी वीर चक्र से पुरस्कृत किया गया। वे भारतीय वायुसेना में 'बार टू वीआरसी' प्राप्त करने वाले पहले पांच लोगों में से एक थे। 

(इसके लेखक फाइनांस प्रोफेशनल अंचित गुप्ता हैं। वर्तमान में वे प्राइवेट इक्विटी फर्म में मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर हैं। वे मिलिट्री परिवार से संबंध रखते हैं। वे भारतीय एविएशन के इतिहास में गहरी रूचि रखते हैं और लगातार इंडियन एयरफोर्स के इतिहास पर विभिन्न प्लेटफॉर्म पर कंट्रीब्यूट करते हैं। उनसे Twitter:@AnchitGupta9 पर भी जुड़ सकते हैं।)

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