18 मई 1974 को भारत ने राजस्थान के पोखरण में पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया था। इस ऑपरेशन को स्मालिंग बुद्धा नाम दिया गया था।
नई दिल्ली। आज ही के दिन 50 साल पहले 1974 में भारत ने राजस्थान के पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया था। इसे पोखरण वन के रूप में जाना जाता है। उस समय अमेरिका जैसे देश इस बात के खिलाफ थे कि दूसरे देश भी परमाणु हथियार बना लें।
1974 में भारत द्वारा किए गए पहले परमाणु परीक्षण को स्मालिंग बुद्धा ऑपरेशन नाम दिया गया था। इस ऑपरेशन को बेहद गोपनीय तरीके से अंजाम दिया गया था। उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने इस घटना को "शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट" कहा था।
दूसरे देशों को परमाणु हथियार बनाने से रोक रहे थे ताकतवर देश
1945 में द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हुआ था। इसमें लाखों लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद दुनिया में नए गठबंधन और एलाइनमेंट उभरे। अमेरिका और सोवियत रूस बड़ी ताकत के रूप में सामने आए। इसके बीच अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए छद्म युद्ध हुआ, जिसे कोल्ड वार के रूप में जाना जाता है। अगस्त 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर दो परमाणु बम गिराए थे। इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हुआ। 1949 में सोवियत संघ ने परमाणु परीक्षण किया था। इसके बाद दुनिया की बड़ी ताकतों ने फैसला लिया कि बड़े पैमाने पर तबाही रोकने के लिए परमाणु हथियारों के फैलाव को रोकने के लिए कुछ नियमों की जरूरत है। इस तरह अमेरिका, रूस और अन्य शक्तिशाली देश यह कोशिश कर रहे थे कि दूसरे देश परमाणु हथियार नहीं बना सकें।
1968 में परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) नाम की संधि पर कई देशों ने साइन किए थे। एनपीटी के तहत 1 जनवरी 1967 से पहले तक परमाणु हथियार टेस्ट करने वाले देशों को परमाणु-हथियार वाले देश कहा गया। एनपीटी पर साइन करने वाले परमाणु हथियार रहने वाले देशों ने कहा कि वे परमाणु हथियार या परमाणु हथियार की टेक्नोलॉजी किसी अन्य देश को नहीं देंगे। साइन करने वाले जिन देशों के पास परमाणु हथियार नहीं थे वे इस बात पर सहमत हुए थे कि वे परमाणु हथियार प्राप्त नहीं करेंगे। वे इसे विकसित भी नहीं करेंगे।
भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट करने का फैसला क्यों किया?
भारत ने एनपीटी संधि पर इस आधार पर आपत्ति जताई कि यह पी-5 (परमाणु हथियार रखने वाले पांच देश) को छोड़कर अन्य देशों के लिए भेदभावपूर्ण है। भारत सरकार ने संधि की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया था। संधि के अनुसार जिन देशों के पास परमाणु हथियार नहीं थे उन्हें इसे विकसित नहीं करने की प्रतिज्ञा लेनी थी, लेकिन जिन देशों के पास पहले से परमाणु हथियार थे उन्हें इसे रखने से नहीं रोका गया था।
भारतीय वैज्ञानिक होमी जे भाभा और विक्रम साराभाई ने भारत में परमाणु ऊर्जा के टेस्ट के लिए पहले ही आधार तैयार कर लिया था। 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) की स्थापना की गई थी। भाभा इसके निदेशक थे। उनका मानना था कि बिजली बनाने के लिए परमाणु ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू परमाणु हथियार विकसित करने से बच रहे थे।
1960 के दशक में नेतृत्व परिवर्तन के साथ ही परमाणु हथियार विकसित करने को लेकर सोच बदली। 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध हुआ, जिसमें भारत की हार हुई। इसके बाद 1965 और 1971 में भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ना पड़ा। दोनों जंगों में भारत की जीत हुई। इस बीच 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण किया, जिसके बाद भारत के लिए भी परमाणु हथियार विकसित करना जरूरी हो गया।
कैसे हुआ पोखरण-I?
पीएम इंदिरा गांधी न्यूक्लियर टेस्ट के बारे में निगेटिव व्यू नहीं रखती थीं। पी-5 देशों के साथ संधियों को देखते हुए भारत ने दुनिया को पहले से बताए बिना परमाणु परीक्षण करने का निर्णय लिया। 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण में 12-13 किलोटन TNT के परमाणु उपकरण में विस्फोट किया गया। इस ऑपरेशन में 75 वैज्ञानिकों की टीम लगी थी। भारत ने इस टेस्ट के साथ ही अपनी क्षमता दुनिया को दिखा दी। इसके साथ ही यह भी बताया कि परमाणु उपकरण का इस्तेमाल अभी हथियार बनाने में नहीं होगा। इसके बाद 1998 के पोखरण-II टेस्ट में परमाणु हथियार का टेस्ट किया गया।
परमाणु परीक्षण करने के लिए भारत को कई देशों से कड़ी आलोचना का सामना पड़ा था। 1978 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने परमाणु अप्रसार अधिनियम पर साइन किए। इसके बाद अमेरिका ने भारत को परमाणु सहायता निर्यात करना बंद कर दिया। 18 जुलाई 2005 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने परमाणु समझौते पर साइन किया। इसके बाद न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी को लेकर भारत के प्रति अमेरिका का दृष्टिकोण बदला।