1947 में भारत विभाजन के समय फैली साम्प्रदायिक हिंसा(India Partition Riots 1947) में अपने परिवार से बिछुड़ी यह महिला करतारपुर में 75 साल बाद अपने भाइयों से मिलकर फूट-फूटकर रो पड़ी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस महिला को एक मुस्लिम परिवार ने अपनी बेटी की तरह पाला। कुछ समय पहले उसे सच्चाई बताई गई।
नारोवाल, पाकिस्तान(NAROWAL). इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। 1947 में भारत विभाजन के समय फैली साम्प्रदायिक हिंसा(India Partition Riots 1947) में अपने परिवार से बिछुड़ी यह महिला करतारपुर में 75 साल बाद अपने भाइयों से मिलकर फूट-फूटकर रो पड़ी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस महिला को एक मुस्लिम परिवार ने अपनी बेटी की तरह पाला। कुछ समय पहले उसे सच्चाई बताई गई। बता दें कि करतारपुर पाकिस्तान के पंजाब में नरोवाल जिले के शकरगढ़ तहसील शहर में है। इस शहर में सिखों का ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। इसे करतारपुर साहिब गुरुद्वारा या मूल रूप से गुरुद्वारा दरबार साहिब के नाम से जाना जाता है।
मां को दंगाइयों ने मार डाला, तो इकबाल ने अपनाया
भारत के विभाजन के समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा में हजारों लोग मारे गए थे। उस समय यह महिला अबोध बच्ची थी। मां को दंगाइयों ने मार डाला था और ये उसके शव से लिपटकर लेटी थी। मुहम्मद इकबाल और उनकी बीवी अल्लाह राखी ने बच्ची को गोद लिया और उसे अपनी बेटी के रूप में पाला। उन्होंने इसका नाम मुमताज बीबी रखा। विभाजन के बाद इकबाल पाकिस्तान के शेखुपुरा जिले के वरिका तियान गांव में आकर बस गए।
इकबाल ने अपनी मौत से पहले खोला राज़
इकबाल और उनकी बीवी ने मुमताज को कभी यह नहीं बताया कि वह उनकी बेटी नहीं है, क्योंकि वे उसे कोई तकलीफ देना नहीं चाहते थे। दो साल पहले इकबाल की तबीयत अचानक बिगड़ गई, तब उन्होंने मुमताज से कहा कि वह उनकी असली बेटी नहीं है। यही नहीं, उनका परिवार सिख था। इकबाल की मौत के बाद मुमताज और उनके बेटे शाहबाज ने सोशल मीडिया के जरिए परिवार की तलाश शुरू कर दी। वे मुमताज़ के असली पिता का नाम और भारतीय पंजाब के पटियाला जिले के गाव (सिदराना) के बारे में जानते थे, जहां से वे अपने पैतृक घर को छोड़ने के लिए मजबूर होने के बाद पाकिस्तान आकर बस गए थे। आखिरकार सोशल मीडिया के जरिए दोनों परिवार जुड़ गए।
गुरुद्वारा बना दो परिवारों को मिलाने की जगह
मुमताज के भाई सरदार गुरुमीत सिंह, सरदार नरेंद्र सिंह और सरदार अमरिंदर सिंह परिवार के सदस्यों के साथ करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब पहुंचे। मुमताज अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ वहां पहुंचीं और 75 साल बाद अपने खोए हुए भाइयों से मिलीं।
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