क्रायोजेनिक इंजन ने दिया धोखा; इसरो का  EOS-03 सैटेलाइट लॉन्च मिशन फेल, पहले 3 बार टल चुकी थी लॉन्चिंग

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का उपग्रह(SatelliteEOS-03) लॉन्च मिशन क्रायोजेनिक इंजन में तकनीकी कारण ये फेल हो गया। इसे गुरुवार सुबह 5.45 बजे GSLV-F10 लॉन्च किया गया, लेकिन 10 सेकंड बाद ही फेल हो गया।
 

चेन्नई. आजादी के 75वें अमृत महोत्सव से पहले भारत की अंतरिक्ष में उड़ान भरने की एक नई कोशिश फेल हो गई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का उपग्रह(SatelliteEOS-03) लॉन्च मिशन क्रायोजेनिक इंजन में तकनीकी कारण सफल नहीं हो सका। इसे गुरुवार सुबह 5.45 बजे GSLV-F10 लॉन्च किया गया, लेकिन 10 सेकंड बाद ही इसकी नाकामी के सिग्नल मिल गए। इसकी लॉन्चिंग इसरो के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre-SDSC) से हुई। लेकिन 10 सेकंड बाद ही मिशन कंट्रोल सेंटर को रॉकेट के तीसरे स्टेज में लगे क्रायोजेनिक इंजन से सिग्नल मिलना बंद हो गए थे।

इसरो ने tweet करके दी इसकी जानकारी
ISRO ने tweet करके बताया कि GSLV-F10 की लॉन्चिंग आज निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 5.43 बजे हुई। फर्स्ट और सेकंड फेज सफल रहा। लेकिन क्रायोजेनिक अपर स्टेज इग्निशन तकनीकी(आग लगने) में गड़बड़ी के कारण मिशन पूरा नहीं किया जा सका है। इसके बाद इसरो ने लाइव टेलिकास्ट रोक दिया। अगर यह मिशन पूरी तरह सफल हो जाता, तो सैटेलाइट सुबह 10.30 बजे से तस्वीरें भेजना शुरू कर देता। इसरो ने पहली बार सुबह कोई सैटेलाइट लॉन्च किया था।

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तीन बार पहले टल चुकी थी लॉन्चिंग
इस अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट को GiSAT-1 कहते हैं। EOS-03 इसका कोड नेम है। इसे पहले 28 मार्च को लॉन्च किया जाना था, लेकिन तब भी तकनीकी गड़बड़ी आ गई थी। इसके बाद अप्रैल और मई में कोरोना के पीक पर होने से ऐसा संभव नहीं हो सका।

रियल इमेजिंग हो सकती थी
अगर यह सैटेलाइट सफलतापूर्वक लॉन्च हो जाता, तो भारतीय उपमहाद्वीप(Indian subcontinent) पर मौसम की सटीक जानकारी हासिल हो सकती थी। यानी प्राकृतिक आपदाओं की पहले से सही जानकारी मिल जाने से नुकसान की आशंका कम हो जाती। इसे अंतरिक्ष में उपग्रह और संयुक्त मिशनों को तैनात करने वाली 13 अन्य उड़ानें संचालित कर रही थीं। ईओएस-03 उपग्रह एक दिन में पूरे देश की चार-पांच बार तस्वीर लेता, जो मौसम और पर्यावरण परिवर्तन से संबंधित प्रमुख डेटा भेजती। इतना ही नहीं, यह ईओएस-03 उपग्रह भारतीय उपमहाद्वीप में बाढ़ और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं की लगभग रीयल टाइम निगरानी में भी सक्षम होता। 

साल के पहले मिशन में सफल रहा है इसरो
इससे पहले 28 फरवरी को इसरो ने साल के पहले मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। भारत का रॉकेट 28 फरवरी को श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से पहली बार ब्राजील का उपग्रह लेकर अंतरिक्ष रवाना हुआ था। ब्राजील के अमेजोनिया-1 और 18 अन्य उपग्रहों को लेकर भारत के पीएसएलवी (धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) सी-51 ने श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी थी। इस अंतरिक्ष यान के शीर्ष पैनल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर उकेरी गई थी।

यह भी जानें-अगले साल मार्च तक लॉन्च होगा चंद्रयान-3
बता दें कि देश अंतरिक्ष विज्ञान में लगातार काम कर रहा है। अगले साल भारत चांद पर फिर से छलांग लगाने जा रहा है। देश का महत्वाकांक्षी अभियान चंद्रयान-3 वर्ष, 2020 में मार्च तक लॉन्च होने की संभावना है। यह जानकारी केंद्रीय राज्य मंत्री  (स्वतंत्र प्रभार)  विज्ञान और प्रौद्योगिकी; परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह ने 28 जुलाई को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर दी थी। उन्होंने कहा, चंद्रयान-3 को साकार करने का कार्य प्रगति पर है। उन्होंने बताया कि कोविड 19 महामारी के चलते इसका काम प्रभावित हुआ था। हालांकि जो इससे जुड़े जो काम वर्क फ्रॉम संभव थे; उन पर काम चलता रहा। अब इस पर काम अंतिम चरण में है।

चंद्रयान-2 पूरी तरह सफल नहीं हो सका था
बता दें कि 22 जुलाई, 2019 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(ISRO) ने चंद्रयान-2 लॉन्च किया था। लेकिन 6 सितंबर को यह लैंडर में तकनीकी खामी के कारण अपने रास्ते से भटक गया था। इसके बाद इसकी चांद पर सुरक्षित लैंडिंग नहीं हो सकी थी। यह अपने साथ चांद की मिट्टी का विश्लेषण करने कुछ उपकरण लेकर गया था। चंद्रयान-2 जैसा ही कॉन्फ़िगरेशन है चंद्रयान 3। लेकिन इसमें ऑर्बिटर नहीं होगा। यानी चंद्रयान-2 के दौरान लॉन्च किए गए ऑर्बिटर का इस्तेमाल चंद्रयान-3 के लिए किया जाएगा। बता दें कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अभी भी चांद पर ठीक से काम कर रहा है। वो वहां से आंकड़े भेज रहा है। इससे पहले 22 अक्टूबर, 2008 को चंद्रयान-1 का सफल परीक्षण किया गया था।


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