इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपने नए रॉकेट एसएसएलवी का पहला प्रक्षेपण किया है। यह रॉकेट 10-500 किलो के सैटेलाइट को अंतरिक्ष में पहुंचा सकता है। इससे कम समय और लागत से छोटे सैटेलाइट को अंतरिक्ष में पहुंचाना संभव हुआ है।
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपने नए रॉकेट एसएसएलवी (स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) का पहला प्रक्षेपण किया है। इसका उद्देश्य मांग पर छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने में इसरो की क्षमता का प्रदर्शन करना है।
इसरो ने एसएसएलवी के साथ दो पेलोड अंतरिक्ष में भेजा है। इनमें एक अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट ईओएस-02 और दूसरा आजादीसैट है। ईओएस-02 ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपग्रह है। यह भू-पर्यावरण अध्ययन, वानिकी, जल विज्ञान, कृषि, मिट्टी और तटीय अध्ययन के क्षेत्र में जानकारी देगा। 142 किलोग्राम का यह सैटेलाइट 10 महीने तक काम करेगा। इसमें मिड और लॉन्ग वेवलेंथ का इंफ्रारेड कैमरा लगा है। दिन हो या रात यह हर वक्त काम करेगा।
दूसरा पेलोड आजादीसैट है। इसे भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए लॉन्च किया गया है। यह अंतरिक्ष में छह महीने रहेगा। इसे 750 छात्राओं ने बनाया है। यह अंतरिक्ष में तिरंगा फहराएगा। लॉन्चिंग सफल रही, रॉकेट ने दोनों उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में पहुंचा दिया। इस बीच सैटेलाइट से संपर्क टूट गया है। इसरो के वैज्ञानिक सैटेलाइट से संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
क्यों खास है एसएसएलवी?
एसएसएलवी छोटे आकार का रॉकेट है। इसे छोटे आकार के उपग्रह को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए बनाया गया है। अभी तक छोटे उपग्रह को भी अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए बड़े रॉकेट का इस्तेमाल करना पड़ता था। इसके चलते सैटेलाइट लॉन्च करने में देर होती थी और खर्च भी अधिक लगता है। एसएसएलवी की मदद से इसरो अब कम समय और कम लागत में छोटे आकार के उपग्रह को अंतरिक्ष में पहुंचा सकेगी। इसकी मदद से सिर्फ 72 घंटे में उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है, जबकी पीएसएलवी जैसे बड़े रॉकेट को लॉन्च के लिए तैयार करने में दो महीने लगते हैं।
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SSLV से इसरो मिनी, माइक्रो और नैनो सैटेलाइट (10-500kg वजन तक) को अंतरिक्ष में पहुंचाएगा। SSLV तीन स्टेज वाला रॉकेट है। इसके सभी स्टेज में ठोस इंधन का इस्तेमाल किया गया है। एसएसएलवी का वजन 120 टन है। यह सैटेलाइट को 500 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा सकता है।
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