Jamiat Ulama-i-Hind ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका, कहा- मुस्लिम विरोध भाषण और धर्म संसद पर लगे बैन

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर मुस्लिम विरोधी भाषणों और दिल्ली व हरिद्वार में हुए धर्म संसद जैसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने की मांग की है। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 10, 2022 8:16 PM IST / Updated: Jan 11 2022, 01:52 AM IST

नई दिल्ली। जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-i-Hind) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई है। याचिका में मुस्लिम विरोधी भाषणों और दिल्ली व हरिद्वार में हुए धर्म संसद जैसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने की मांग की गई है। 

याचिका में कहा गया है कि देश में हाल के दिनों में मुस्लिमों के खिलाफ नफरत भरे बयान बढ़ गए हैं। हाल ही में हरिद्वार और दिल्ली में हुए कार्यक्रमों ने जानबूझकर बहुसंख्यकों को 'हिंदू राष्ट्र' की स्थापना के लिए मुसलमानों का नरसंहार करने के लिए उकसाने की साजिश रची है। दुर्भाग्य से इन दोनों मामलों में अब तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई है।

मौलाना मदनी ने अपनी याचिका में कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार की कानून लागू करने वाली एजेंसियां अपना कर्तव्य नहीं निभा रही हैं, जिसने पूरे देश में बेहद निराशाजनक स्थिति पैदा कर दी है। धर्म संसद और अन्य जगहों पर विवादास्पद भाषणों पर केंद्र और राज्य सरकारों की चुप्पी ने स्थिति की गंभीरता को बढ़ा दिया है। सरकार और राजनीतिक लोगों की चुप्पी से पता चलता है कि वे अपराध में शामिल हैं और चरमपंथियों को राजनीतिक समर्थन प्राप्त है। शायद यही वजह है कि पुलिस प्राथमिकी के बाद भी उन्हें गिरफ्तार करने से डरती है।

6 घंटे में तय हो गिरफ्तारी
याचिका में सुझाव दिया गया है कि अभद्र भाषा वाले किसी भी कार्यक्रम की पहचान करने और कार्यक्रम के आयोजकों और उकसाने वालों के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई करने के लिए प्रत्येक जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाना चाहिए। इसके साथ ही यह मांग भी की गई है कि सुप्रीम कोर्ट को पुलिस महानिदेशक, कानून व्यवस्था और सभी राज्यों के अन्य अधिकारियों को नफरत भरे भाषणों की शिकायत मिलने के छह घंटे के भीतर मामला दर्ज करने और आरोपियों की गिरफ्तारी सुनिश्चित करने का निर्देश देना चाहिए।

याचिका में अनुरोध किया गया है कि अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र समय पर न्यायालय में दाखिल किया जाए, पुलिस को मामले की त्वरित सुनवाई के लिए न्यायपालिका का सहयोग करना चाहिए, साथ ही त्वरित सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें भी स्थापित की जानी चाहिए। ऐसे लोगों को जमानत से इनकार करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाने चाहिए जो लगातार ऐसे बयान देते हैं जिससे देश में कानून और व्यवस्था बाधित होती है और एक विशेष संप्रदाय के खिलाफ बहुमत को उकसाने की साजिश भी करते हैं।

 

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