केरल में राज्यपाल V/s पिनाराई विजय: खान ने मीडिया को दिखाया 2019 में उनके साथ हुई मारपीट का वीडियो

केरल में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और LDF सरकार के बीच तनातनी चरम पर पहुंच गई है। राज्यपाल ने राजभवन में मीडिया को कन्नू यूनिवर्सिटी में वर्ष, 2019 में एक प्रोग्राम के दौरान का एक वीडियो शेयर करते हुए आरोप लगाया कि उनके साथ तब मारपीट हुई थी।
 

Amitabh Budholiya | Published : Sep 19, 2022 7:25 AM IST / Updated: Sep 19 2022, 01:23 PM IST

तिरुवनंतपुरम. केरल के राज्यपाल और एलडीएफ सरकार के बीच विवाद तीव्र होता जा रहा है। एक अभूतपूर्व कदम(unprecedented move) उठाते हुए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान(government, Arif Mohammed Khan) ने सोमवार को मीडिया के साथ 2019 में कन्नूर यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में उनके साथ कथित तौर पर मारपीट की वीडियो क्लिपिंग शेयर की है। खान ने राजभवन ऑडोरियम में लगीं दो वाइडस्क्रीन पर घटना के वीडियो शेयर करते हुए कहा कि केके रागेश मंच से नीचे आए और उन्हें पुलिस को अपनी ड्यूटी निभाने से रोकते देखा जा सकता है। यह अब मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) में हैं। केके रागेश 2019 में राज्यसभा के सदस्य थे, जब राज्यपाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ था। बाद में केके रागेश को केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के निजी सचिव के रूप में नियुक्त किया गया।बता दें कि विवाद के बीच राज्यपाल आरएसएस चीफ मोहन भागवत से भी मुलाकात कर चुके हैं। इससे पहले राज्यपाल ने रविवार को कहा कि केरल पुलिस ने उन पर हुए हमले के तीन साल पुराने मामले में केस नहीं दर्ज किया, क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन शामिल थे।  (File Photo)

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काली शर्ट पहनने पर अरेस्ट कर लिया जाता है
राज्यपाल ने आरोप लगाया कि ऐसे राज्य में जहां लोगों को काली शर्ट पहनने पर गिरफ्तार किया जाता है, वहां ऐसी चीजें(राज्यपाल से मारपीट) होती हैं। पुलिस कर्मियों ने स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की और लोगों को मुझ तक पहुंचने से रोक दिया। 

इस बीच केरल सरकार ने सोमवार को कहा कि एक राज्यपाल राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों(Bills) को रोक सकता है, लेकिन यह अनिश्चित काल के लिए नहीं हो सकता और न ही वह उन्हें खारिज कर सकता है। राज्य के कानून मंत्री पी राजीव ने यहां पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि संविधान के तहत राज्यपाल के पास विधेयकों को मंजूरी देने, उन्हें वापस लेने या उन्हें भारत के राष्ट्रपति को भेजने का अधिकार है। राज्यपाल के पास विधेयकों को खारिज करने का अधिकार नहीं है।

उनकी टिप्पणी केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के पिछले हफ्ते यह कहने के बाद आई है कि राज्य विधानसभा द्वारा हाल ही में पारित विश्वविद्यालय कानून संशोधन विधेयक( University Laws Amendment Bill) को अनुमति नहीं दी जाएगी, क्योंकि यह कथित तौर पर अवैधता को वैध बनाने और मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों के कर्मचारी, अयोग्य रिश्तेदारों की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। 

ऐसा शुरू हुआ विवाद 
बता दें कि  हाल ही में कन्नूर विश्वविद्यालय में मलयालम विभाग में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के निजी सचिव की पत्नी को नियुक्त करने के प्रयास पर एक विवाद छिड़ गया था। इंटरव्यू के दौर में उनका सबसे कम रिसर्च स्कोर होने के बावजूद उन्हें सिलेक्शन प्रॉसेस में फर्स्ट घोषित किया गया था। राज्यपाल ने जोर देकर कहा कि उन्हें रबर स्टैंप के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। खान ने यह भी संकेत दिया कि वह लोकायुक्त संशोधन विधेयक(Lok Ayukta Amendment Bill) के भी खिलाफ थे, जिसे हाल ही में विधानसभा द्वारा पारित किया गया था। अब राज्य के कानून मंत्री ने कहा कि संविधान और विभिन्न न्यायिक आदेशों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्यपाल को जितनी जल्दी हो सके, विधायिका द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेना है और अनुमोदन के लिए उनके सामने रखना है। संविधान में प्रावधान है कि वह विधेयक को वापस करके कानून में किसी भी विसंगति को राज्य विधानसभा के ध्यान में ला सकता है।

राजीव ने कहा, "इसके बाद यह राज्य विधानसभा पर निर्भर करता है कि वह उनकी सिफारिशों को स्वीकार करता है या नहीं। इसके बाद जब इसे दूसरी बार उनके सामने रखा जाता है, तो उन्हें इसे मंजूरी देनी होती है। उन्होंने कहा कि इसलिए राज्यपाल को संविधान के अनुसार कार्य करना होता है। मंत्री ने यह भी कहा कि जनता देख रही है कि राज्य में क्या हो रहा है और वे मूल्यांकन करेंगे और तय करेंगे कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अपनी स्थिति के अनुसार काम कर रहे हैं या नहीं।  बता दें कि यूडीएफ सदस्यों के कड़े विरोध और उनके बहिष्कार के बावजूद केरल विधानसभा ने 30 अगस्त और 1 सितंबर को क्रमशः विवादास्पद लोकायुक्त (संशोधन) और विश्वविद्यालय कानून संशोधन विधेयक पारित किए।

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