कांग्रेस-एनसीपी सीटों के बंटवारे में आगे, भाजपा-शिवसेना में पेंच फंसा; बागी नेता ही खड़ी कर रहे मुसीबत

चुनाव आयोग ने शनिवार को महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव का ऐलान कर दिया। दोनों राज्यों में 21 अक्टूबर को मतदान होगा, वहीं 24 को नतीजे आएंगे। चुनाव आयोग ने भले ही तारीखों का ऐलान कर दिया हो, लेकिन भाजपा-शिवसेना में सीटों को लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई है। 

Asianet News Hindi | Published : Sep 21, 2019 8:04 AM IST / Updated: Sep 21 2019, 06:30 PM IST

मुंबई. चुनाव आयोग ने शनिवार को महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव का ऐलान कर दिया। दोनों राज्यों में 21 अक्टूबर को मतदान होगा, वहीं 24 को नतीजे आएंगे। चुनाव आयोग ने भले ही तारीखों का ऐलान कर दिया हो, लेकिन भाजपा-शिवसेना में सीटों को लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई है। उधर, शरद पवार की पार्टी राकांपा और कांग्रेस में सीटों को लेकर बंटवारा हो गया है।

कांग्रेस और राकांपा 125-125 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे
राकांपा प्रमुख शरद पवार ने दो दिन पहले ही कांग्रेस के साथ गठबंधन की स्थिति को साफ कर दिया। उन्होंने बताया था कि 288 सीटों वाले महाराष्ट्र में कांग्रेस और राकांपा 125-125 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। 38 सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ी गई हैं।

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भाजपा-शिवसेना में फंसा पेंच
लोकसभा चुनाव के पहले भी भाजपा-शिवसेना के बीच अनबन की खबरें आई थीं। हालांकि, बाद में दोनों पार्टियां साथ चुनाव लड़ी थीं। बराबर सीटें मांग रही शिवसेना 23 और भाजपा 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार शिवसेना फिर बराबर सीटें मांग रही है। शिवसेना 135-135 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रही है। वहीं, 18 सहयोगी दलों को देने के राजी है। जबकि भाजपा शिवसेना को 105-120 सीटें देने के पक्ष में है।

दलबदलू नेता भाजपा-शिवसेना के लिए बने मुसीबत
लोकसभा चुनाव के बात से ही कांग्रेस और राकांपा नेताओं में भाजपा-शिवसेना में शामिल होने की होड़ मची है। इसके चलते भी सीटों के बंटवारे में समस्या हो रही है। हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता राधाकृष्णन विखे पाटिल और पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह भाजपा में शामिल हुए थे। इनके अलावा कई एनसीपी नेता भी शिवेसना और भाजपा में शामिल हुए।

2014 में भी अलग लड़ा था चुनाव
शिवसेना और भाजपा के बीच 2014 विधानसभा चुनाव से पहले भी अनबन हुई थी। इसके बाद भाजपा और शिवसेना ने अलग चुनाव लड़ा था। उस वक्त भाजपा बराबर सीटों की मांग कर रही थी। लेकिन शिवसेना भाजपा को कम सीटें देने के पक्ष में थी। दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। भाजपा को 123 सीटों पर और शिवसेना को 63 सीटों पर जीत मिली थी। चुनाव के बाद दोनों पार्टियां साथ आ गई थीं।

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