अडानी-अंबानी के कर्मचारी अब एक-दूसरे की कंपनियों में नहीं कर पाएंगे नौकरी, जानें क्या है नो-पोचिंग एग्रीमेंट?

देश में सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले दो बड़े बिजनेस ग्रुप रिलायंस और अडाणी के बीच कुछ महीनों पहले ही एक समझौता हुआ है। इसके तहत इन दोनों ही ग्रुपों के कर्मचारी एक-दूसरे की कंपनियों में नौकरी नहीं कर पाएंगे। आखिर क्या है ये समझौता और कर्मचारियों के लिए कितना होगा फायदेमंद? जानते हैं। 

Non-Poaching Agreement: देश में सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले दो बड़े बिजनेस ग्रुप रिलायंस और अडाणी के बीच कुछ महीनों पहले ही एक समझौता हुआ है। इसके तहत इन दोनों ही ग्रुपों के कर्मचारी एक-दूसरे की कंपनियों में नौकरी नहीं कर पाएंगे। दरअसल, दोनों ही कंपनियों के बीच नॉन पोचिंग एग्रीमेंट हुआ है। इसके जरिए दोनों ग्रुप की कंपनियों के टैलेंट को एक-दूसरे में हायर नहीं किया जा सकेगा। आखिर क्या है ये एग्रीमेंट और क्यों लिया गया ये फैसला? आइए जानते हैं।

क्या है नॉन-पोचिंग एग्रीमेंट?
‘नॉन-पोचिंग एग्रीमेंट’ दो या उससे ज्यादा कंपनियों के बीच किया गया एक ऐसा एग्रीमेंट है, जिसके तहत एक कंपनी में काम करने वाले को दूसरी कंपनी में नौकरी नहीं दी जाती है। कुछ शर्तों के तहत अगर नौकरी दी जाती है तो उनकी पोस्ट, पैसा और सुविधाओं में कोई इजाफा नहीं किया जाता है।  

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कैसे आया नॉन-पोचिंग एग्रीमेंट?
1890 में अमेरिकी संसद में एक बिल पास हुआ था, जिसे शरमन एक्ट कहा जाता है। इस एक्ट में राज्यों के व्यापार को किसी भी तरह से प्रभावित होने से बचाने की बात कही गई है। धीरे-धीरे समय के साथ इस कानून में कई तरह के बदलाव हुए। अमेरिका में 2010 में  नो-पोचिंग एग्रीमेंट से जुड़ा कानून तब सुर्खियों में आया, जब अमेरिका के कानून विभाग ने सिलिकॉन वैली की गूगल, एडोब, इंटेल और एपल जैसी कंपनियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की, जिसमें कहा गया कि ये कंपनियां आपस में एक-दूसरे के कर्मचारियों को नौकरी नहीं दे रहीं। हालांकि, कानूनी तौर पर इसमें नियमों को तोड़ने जैसा कुछ नहीं था। 

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टैलेंट वॉर को रोकने के लिए बना एग्रीमेंट : 
1990 में वैश्विक क्रांति के दौर में दुनियाभर की कंपनियों में स्किल्ड लेबर की कमी महसूस की गई। प्रतिभाशाली कर्मचारी अच्छा पैसा और सुविधाएं देख एक कंपनी से दूसरी कंपनी में स्विच कर जाते थे। इसकी वजह से टैलेंट वॉर बढ़ने लगा। इस टैलेंट वॉर को रोकने और कर्मचारियों को लंबे समय तक अपने साथ रखने के लिए कंपनियों- नो-पोचिंग एग्रीमेंट करने लगीं। 

अडानी-अंबानी में क्या है नॉन-पोचिंग एग्रीमेंट की वजह :
- बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक, ये एग्रीमेंट इस साल मई में हुआ है। दोनों ग्रुपों में धीरे-धीरे कॉम्पटीशन बढ़ता जा रहा है। 
- अडानी ग्रुप धीरे-धीरे उन बिजनेस की ओर भी बढ़ रहा है, जहां पहले से ही रिलायंस का एक छत्र राज था। 
- पिछले साल ही 'अडाणी पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड' के साथ अडानी समूह ने पेट्रोकेमिकल्स सेक्टर में एंट्री कर ली है। जबकि इससे पहले रिलायंस इंडस्ट्रीज इस फील्ड में देश की सबसे बड़ी कंपनी के तौर पर काम कर रही थी।
- इसके अलावा हाल ही में अडानी ग्रुप ने 5G स्पेक्ट्रम के लिए बोली लगाई थी। इस फील्ड में रिलायंस जियो इंफोकॉम अब तक देश की सबसे बड़ी कंपनी के रूप में काम कर रही है। ऐसे में दोनों ग्रुप ने टैलेंट वॉर को रोकने के लिए इस एग्रीमेंट को साइन किया है।

बढ़ेंगी कर्मचारियों की मुश्किलें :
रिपोर्ट के मुताबिक, इस एग्रीमेंट के बाद मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस की कंपनियों में काम करने वाले 3.80 लाख से ज्यादा कर्मचारी अडानी ग्रुप की कंपनियों में काम नहीं कर पाएंगे। दूसरी ओर, अडानी समूह की कंपनियों के 23 हजार से ज्यादा कर्मचारी मुकेश अंबानी की किसी कंपनी में नौकरी नहीं कर पाएंगे।

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