यह कहानी एक ऐसी महिला की है जिन्होंने अपने दम पर सिर्फ 3 हजार रुपए से बिजनेस स्टार्ट किया और अब उनके समूह से करीब 400 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। दिल्ली के नजदीक नोएडा हाट में लगे सरस आजीविका मेले में इस महिला अफसाना ने स्टाल लगाया है।
Who Is Afsana. दिल्ली के नजदीक नोएडा हाट में लगे सरस आजीविका मेले में एक ऐसी दंपति ने स्टाल लगाया है। अफसाना और उनके पति अयूब अब साथ ही बिजनेस संचालित करते हैं। अफसाना ने बताया कि मोहम्मद अयूब से शादी के बाद वे अपना बिजनेस शुरू करना चाहती थी लेकिन ससुराल वाले इसके लिए राजी नहीं हुए। उस वक्त मेरे पति ने भी मेरा साथ छोड़ दिया और घर से निकाल दिया। इसके बावजूद मैं अपने फैसले पर अड़ी रही क्योंकि मेरे सामने आर्थिक समस्या थी जिसे मैं हर हाल में दूर करना चाहती थी।
ससुराल वालों ने मानी अपनी हार
अफसाना ने कहा उनके पति और ससुराल वालों को बिजनेस की बात बिल्कुल पसंद नहीं थी लेकिन मेरे फैसले के आगे एक दिन उनको झुकना पड़ा। फिर पति भी साथ देने लगे और मेरा हौसला बढ़ाया। अफसाना बताती हैं कि उन्होंने सिर्फ 3 हजार रुपए से बिजनेस स्टार्ट किया और हर सुबह सिर पर कपड़ा लेकर गांव-गांव जाया करती थीं। शाम को बिक्री करके घर वापस लौटती थी। अफसाना कहती हैं जिस तरह से उन्होंने अपनी जिंदगी जी, उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है।
कब आया बिजनेस आइडिया
अफसाना ने बताया कि 2003 में उन्हें यह विचार आया क्यों न खुद ही कपड़े बनाएं और बेचे जाएं। इसके लिए हमने स्वयं सहायता समूह का गठन किया दिल्ली के घर-घर पहुंचकर कारीगरों से कपड़े बनवाने लगीं। आज अल्लाह की मेहरबानी से लाखों रुपए सालाना कमा रही हूं और एक बार तो सरकार ने भी 5 हजार की मदद की थी। कहा कि में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, पटना, देहरादून जैसे शहरों में जाती हूं। अफसाना खातून अपने बीते दिनों को याद कर भावुक हो जाती हैं और कहती हैं कि एक जमाना था जब सोने के लिए छत नहीं हुआ करती थी। लेकिन आज मेरे तीन बच्चे हैं जो अपने जीवन में अच्छा कर रहे हैं।
समूह से जुड़ी हैं 400 महिलाएं
अफसाना बताती हैं कि इस वक्त उनके समूह से करीब 400 महिलाएं जुड़ी हैं और एक साथ काम कर रही हैं। एक ग्रुप में कई ग्रुप बन चुके हैं और उस ग्रुप से कई महिलाएं जुड़ती जा रही हैं। अफसाना के पति मोहम्मद अयूब ने बताया कि यहां हाथ से बने कपड़े ही मिलते हैं। रामपुर और आसपास के लोग अपने घरों में यह काम कर रहे हैं। कहा कि मेरी पत्नी जब घर से बाहर काम करना चाहती थी तो हमें कुछ समय के लिए बुरा लगता था कि एक महिला घर से बाहर कैसे काम करेगी लेकिन एक समय ऐसा आया जब हमने मिलकर इसे आगे बढ़ाया।
स्टूडेंट्स भी ग्रुप से जुड़े
कपल ने बताया कि यह काम घरों में किया जाता है और पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राएं भी ग्रुप से जुड़े हुए हैं। जो स्कूल से पढ़कर आने के बाद इस काम में कुछ घंटे देते हैं और पैसे कमा रहे हैं। हमारा सारा काम इन हाउस ही है। अफसाना कहती हैं कि सरकार ने जिस तरह से महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने का मौका दिया गया है, वह मुझ जैसी महिलाओं के लिए संजीवनी से कम नहीं है। सरकार हमें बाजार दे रही है जहां हम अपना माल बेच रहे हैं। महिलाओं को भी खुद को सशक्त बनाने की जरूरत है। बाधाएं तो आएंगी लेकिन हमें उनसे सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
-साभार- आवाज द वॉयस
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