आखिर ये कैसे किसान और कैसा आंदोजन, जो कह रहे हैं- 'इंदिरा को ठोका, मोदी को भी...'

कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं, लेकिन इस बीच कुछ तस्वीरें ऐसी भी आई हैं जो इस आंदोलन पर सवाल खड़े करती हैं। पहली तस्वीर बरनाला रेलवे स्टेशन की है। यहां उस वक्त माहौल तनावपूर्ण हो गया, जब अकाली दल के कुछ नेता शहर में मार्च निकालने के दौरान खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 27, 2020 6:12 AM IST / Updated: Nov 27 2020, 03:27 PM IST

नई दिल्ली. कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं, लेकिन इस बीच कुछ तस्वीरें ऐसी भी आई हैं जो इस आंदोलन पर सवाल खड़े करती हैं। पहली तस्वीर बरनाला रेलवे स्टेशन की है। यहां उस वक्त माहौल तनावपूर्ण हो गया, जब अकाली दल के कुछ नेता शहर में मार्च निकालने के दौरान खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने लगे।

 

किसान आंदोलन के दौरान का एक वीडियो वायरल हो रहा है। जिसमें एक व्यक्ति कह रहा है, अगर उस मीटिंग में कुछ हल नहीं निकला तो बैरिकेड तो क्या हम तो इनको (शासन प्रशासन) ऐसे ही मिटा देंगे। हमारे शहीद उधम सिंह कनाडा की धरती पर जाकर उन्हें (अंग्रेजो को) ठोक सकते हैं तो दिल्ली कुछ भी नहीं है हमारे लिए। जब इंदिरा ठोक दी तो मोदी को..

हाथों में जनरैल सिंह भिंडरावाले की तस्वीर थी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके हाथों में जनरैल सिंह भिंडरांवाला की तस्वीर थी। खबर मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और रेलवे ट्रैक को खाली करवाया। 

कौन था भिंडरावाले और उसके फोटो से क्या आपत्ति है?
भिंडरावाले का जन्म जरनैल सिंह बराड़ के रूप में 1947 में मालवा क्षेत्र में स्थित मोगा जिले में एक जाट सिख परिवार में हुआ। उसके पिता जोगिंदर सिंह बराड़ एक किसान और एक स्थानीय सिख नेता थे। मां का नाम निहाल कौर था।

भिंडरावाले सिखों के धार्मिक समूह दमदमी टकसाल का प्रमुख लीडर था। उसे सिख एक्सट्रेमिस्ट भी कहा जा सकता है। वो सिक्खों को शुद्ध होने के लिए कहता था। 

जब पंजाब में अलग सिख राज्य की मांग उग्र हुई तब सरकार और अलगवादियों के बीच संघर्ष चल रहा था। इसी के चलते 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपरेशन ब्लू स्टार की मंजूरी दी थी। उस वक्त जनरैल सिंह भिंडरावाले अपने हथियारबंद साथियों के साथ अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छिपा हुआ था। उसे काबू करने के लिए सेना ने वहां 3 से 6 जून 1984 तक ऑपरेशन किया। ऑपरेशन ब्लूस्टार में 83 सेनाकर्मी और 492 नागरिक मारे गए थे।

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