वायु प्रदूषण(Air pollution) रोकने की दिशा में की जा रहीं कोशिशें सिर्फ दिखावा साबित हो रही हैं। नतीजा, दिल्ली ही नहीं; देश के कई शहर प्रदूषण से परेशान हैं। प्रदूषण को नियंत्रण में करने 2019 में शुरू किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का रिजल्ट भी कुछ नहीं निकला है। इस बीच दिल्ली के अलावा मुंबई और बनारस जैसे शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ा है।
नई दिल्ली. वायु प्रदूषण(Air pollution) रोकने की दिशा में की जा रहीं कोशिशें सिर्फ दिखावा साबित हो रही हैं। नतीजा, दिल्ली ही नहीं; देश के कई शहर प्रदूषण से परेशान हैं। प्रदूषण को नियंत्रण में करने 2019 में शुरू किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का रिजल्ट भी कुछ नहीं निकला है। इस बीच दिल्ली के अलावा मुंबई और बनारस जैसे शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ा है। Delhi-NCR को तो दिवाली से अब तक वायु प्रदूषण(Air Pollution) से मुक्ति नहीं मिल पाई है। SAFAR के मुताबिक दिल्ली में 2 फरवरी को भी वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ओवरऑल 343 दर्ज किया गया, जबकि एक दिन पहले यह 321 था। नोएडा (यूपी) में AQI358, गुरुग्राम (हरियाणा) में AQI 313 दर्ज किया गया।
हालांकि जनवरी में थोड़ी राहत मिली
आमतौर पर नवंबर के बाद जनवरी दिल्ली में सबसे अधिक प्रदूषण होता है। हालांकि इस बार भी तेज हवाओं और वीकेंड कर्फ्यू जनवरी में थोड़ी राहत दी। AQI सिस्टम आने के बाद पहली बार जनवरी के 11 दिन प्रदूषण के मामले में राहतभरे रहे थे। फरवरी में मौसम के बदलाव से प्रदूषण से और राहत मिल सकती है। मौसम विभाग के अनुसार 3 और 4 फरवरी को बारिश की संभावना है। हवाएं भी 30-40 किमी प्रति घंटा की स्पीड से चलेंगी। इससे प्रदूषण कम होगा।
यह एक चिंता का विषय
वायु प्रदूषण रोकने 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)शुरू किया था। लेकिन इसके आंकड़े चिंताजनक हैं। एनसीएपी को 2024 तक प्रदूषण को 20-30% तक कम करने के उद्देश्य से 132 शहरों में लॉन्च किया गया था। रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रदूषण रोकने की दिशा में सिर्फ दिखावे के चलते इसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ है। मुंबई में प्रदूषण बढ़ रहा है। महाराष्ट्र ने अपने 51 करोड़ रुपये में से 8% से भी कम प्रदूषण रोकने की दिशा में खर्च किया। एनसीएपी के तहत साल 2018-19 से 2020-2021 तक 114 शहरों को 375.44 करोड़ रुपये और 2021-2022 के लिए 82 शहरों को 290 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, लेकिन ज्यादातर शहरों ने इसका सदुपयोग नहीं किया। 2021-2026 के लिए कुल 700 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। एनसीएपी की नेशनल एपेक्स कमेटी के आंकड़ों से मालूम चलता है कि सिर्फ बिहार और चंडीगढ़ ने एनसीएपी के राशि का 76% और 81% उपयोग किया है। उत्तर प्रदेश सहित तमाम शहरों ने 60 करोड़ रुपये में से 16% का ही उपयोग किया है। एनसीएपी ट्रैकर के रिपोर्ट के अनुसार वाराणसी सबसे प्रदूषित शहरों में से एक हो गया है। हालांकि यहां पहले की अपेक्षा वायु प्रदूषण कम हुआ है।
क्या है एयर क्वालिटी इंडेक्स
वायु प्रदूषण का मतलब हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य गैसों व धूलकणों के विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए मापदंड से अधिक होना है। वायु प्रदूषण के सूचकांक को संख्या में बदलकर एयर क्वालिटी इंडेक्स बनाया जाता है। इससे पता चलता है कि हवा कितनी शुद्ध या खराब है। एयर क्वालिटी इंडेक्स के छह कैटेगरी हैं।
अच्छा (0–50)- इसका मतलब है कि हवा साफ है। इससे सेहत पर खराब असर नहीं पड़ेगा।
संतोषजनक (51–100)- संवेदनशील लोगों को सांस लेने में मामूली दिक्कत हो सकती है।
मध्यम प्रदूषित (101–200)- अस्थमा जैसे फेफड़े की बीमारी वाले लोगों को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। हृदय रोग वाले लोगों, बच्चों और बुजुर्गों को परेशानी हो सकती है।
खराब (201–300)- लंबे समय तक संपर्क में रहने वाले लोगों को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। हृदय रोग वाले लोगों को परेशानी हो सकती है।
बहुत खराब (301–400)- लंबे समय तक संपर्क में रहने वाले लोगों में सांस की बीमारी हो सकती है। फेफड़े और हृदय रोग वाले लोगों में प्रभाव अधिक स्पष्ट हो सकता है।
गंभीर रूप से खराब (401-500) - स्वस्थ लोगों में भी श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
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