Kashmir Sufi Circuit: 8 PHOTOS में देखें कैसा भव्य बन चुका है जम्मू कश्मीर का 'सूफी सर्किट'
Kashmir Sufi Circuit. जम्मू कश्मीर ने पर्यटकों के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए क्योंकि यहां सभी सीजन से ज्यादा टूरिस्ट पहुंच रहे हैं। आप आध्यात्मिक शांति के लिए भी कश्मीर का दौरा कर सकते हैं। धार्मिक पर्यटन के लिए 'सूफी सर्किट' को संवारा जा रहा है।
जम्मू कश्मीर में सरकार ने सूफी सर्किट को प्रमोट करने की योजना बनाई है और इस पर तेजी से काम भी चल रहा है। सभी महत्वपूर्ण मस्जिदों, दरगाहों को सजाया-संवारा जा रहा है, ताकि धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सके। श्रीनगर से सोनमर्ग के रास्ते पर पड़ने वाला हजरत बल दरगाह बहुत प्रसिद्ध जगह है। माना जाता है कि यहां पर पैगंबर मोहम्मद का अवशेष रखा हुआ है। सरकार इसे डेवलप कर रही है और जल्द ही यह पर्यटकों के लिए पूरी तरह से तैयार होगा।
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तंगमार्ग स्थित बाबा रिषी की मजार
बाबा रिषी का पूरा नाम बाबा पयामुद्दीन रिषी था और उनकी मजार तंगमार्ग पर स्थित है। यहां से 13 किलोमीटर की दूरी पर बारामूला के गुलमर्ग में टूरिस्ट रिजॉर्ट मौजूद है। इनका इंतकाल 1480 में हुआ था और यह दरगाह मेडिटेशन के लिए जाना जाता है। यहां सभी धर्मों को मानने वाले और पूरे कश्मीर से लोग आते हैं। मान्यता है कि यहां पर मांगी गई हर दुआ पूरी होती है और लोग दुआ पूरी होने के बाद यहां धन्यवाद के लिए भी आते हैं।
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पथरपोरा में सैयद बालखी की दरगाह
बडगाम जिले के टूरिस्ट रिजॉर्ट के पास ही सैयद बालखी की प्रसिद्ध दरगाह स्थित है। 15वीं सदी के सूफी संत सैयद बालखी अफगानिस्तान से यहां पहुंचे थे। वे शेख नूरूद्दीन नूरानी के शिष्य थे। नूरानी से ही उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था। यह दरगाह हेरिटेज साइट के तौर पर जानी जाती है और इसका आर्कियोलॉजिकल महत्व भी है।
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झेलम नदी के किनारे खानकाह-ए-मोल्ला
श्रीनगर के निचल हिस्से में झेलम नदी के किनार खानकाह-ए-मोल्ला दरगाह स्थित है। 1395 में इसका निर्माण सुल्तान सिकंदर ने कराया था। यह दरगाह 14वीं सदी में यहां पहुंचे सूफी संत मीर सैयद अली हमदानी की याद में बनाया गया है। पर्सिया के हमदान से कश्मीर में इस्लाम का प्रचार करने पहुंचे सूफी संत की याद में कश्मीर की यह पहली मस्जिद बनी थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में तीन बार कश्मीर का दौरा किया था।
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उत्तरी कश्मीर का बाबा शकूरीद्दीन की मजार
15वीं सदी में जन्मे सूफी संत बाबा शकूरीद्दीन की मजार शारीकोट घाटी में स्थित है। यह उत्तरी कश्मीर के सोपोर-बांदीपुर रोड पर स्थित है। यही पास में ही एशिया की सबसे बड़े ताजे पानी की मशहूर झील वुलर झील भी मौजूद है। बाबा शकूरीद्दीन ने चरार-ए-शरीफ के निर्देशन में काम किया था। उन्होंने दूसरे सूफी संतों से आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण की। यह मजार प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही आध्यात्म बोध के लिए भी जाना जाता है।
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16वीं सदी के सूफी संत मखदूम साहिब की मजार
16वीं सदी के प्रसिद्ध सूफी संत शेख हमजा मखदूम जिन्हें मखदूम साहिब के नाम से भी जाना जाता है, उनकी मजार भी आध्यात्म का केंद्र है। इनकी जन्म उत्तरी कश्मीर के तुजार गांव में 1494 में हुआ था। उन्होंने कुरान का अध्ययन किया और बाद में मदरसा ज्वाइन कर लिया। 1576 में श्रीनगर में इनका इंतकाल हो गया। इनकी मजार पर हर साल हजारों लोग पहुंचते हैं और दुआएं करते हैं। इनकी मृत्यु के 14 साल तब के शहंशाह अकबर दरगाह का निर्माण कराया था। यह दरगाह श्रीनगर के हरि पर्वत पर स्थित है।
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दक्षिण कश्मीर का फेमस जूल फेस्टिवल कहां मनाएं
दक्षिण कश्मीर के एशमोकाम दरगाह में यहां का प्रसिद्ध जूल फेस्टिवल मनाया जाता है। फिलहाल स्थानीय लोग ही ज्यादातर इस जगह पर जाते हैं लेकिन सरकार इसे और प्रमोट कर रही है ताकि देश के बाकी हिस्सों से भी लोग यहां पहुंचे। इसके लिए केंद्र सरकार ने भी बजट जारी किया है और तेजी से काम चल रहा है।
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शेख जैन-उद-दीन की दरगाह एशमुकाम
इन आध्यात्मिक स्थानों में सबसे लास्ट नंबर पर शेख जैन-उद-दीन की दरगाह है जिसे सामान्य तौर पर एशमुकाम के नाम से जाना जाता है। पहलगाम के टूरिस्ट स्पॉट से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर यह दरगाह है, जहां साल भर लोगों का आना-जाना लगा रहता है। यह दरगाह 15वीं सदी के सूफी संत की याद में बनाया गया है। यहीं पर उर्स यानि जूल महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है।