एक गांव; 120 घर, पहले 80% लोग करते थे नशा, महिलाओं को बोलने की नहीं थी आजादी, लेकिन अब बदल गया सबकुछ

अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले(Tirap district of Arunachal Pradesh) का ओल्ड तुपी गांव अपने आप में एक अनूठी कहानी रखता है। नोक्टे जनजातियों(Nocte Tribes) द्वारा बसाया हुआ है और इसमें 120 घर हैं। यह गांव खोंसा और लोंगडिंग जिलों को जोड़ने वाले राजमार्ग पर स्थित है। पहले इस गांव में पारंपरिक मान्यता के चलते महिलाओं को सावर्जनिक जगहों पर बोलने की आजादी नहीं थी। 80 प्रतिशत लोग नशा करते थे, लेकिन अब सबकुछ बदल गया है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 25, 2022 2:32 AM IST

ईटानगर(Itanagar).ओल्ड तुपी नाम का एक गांव अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले में नोक्टे जनजातियों((Nocte Tribes) द्वारा बसाया हुआ है और इसमें 120 घर हैं। यह गांव खोंसा और लोंगडिंग जिलों को जोड़ने वाले राजमार्ग पर स्थित है। पहले, इस गांव में पारंपरिक मान्यता के चलते महिलाओं को सार्वजनिक सभाओं में बोलने की भी अनुमति नहीं थी। इसके बाद राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए पंचायत सीटों के आरक्षण हेतु एक कानून पारित किया, जिसके बाद महिलाओं ने चुनाव में अपना प्रचार किया, लेकिन जीतने के बाद भी उन्हें काम करने के लिए अपने पतियों से नियमित सहायता की आवश्यकता होती है।

drug addiction: 80 प्रतिशत लोग करते थे नशा
वर्ष 2014 में पूर्वोत्तर क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबंधन सोसायटी (एनईआरसीआरएमएस) द्वारा गांव में हस्तक्षेप के बाद, यहां की महिलाओं को एनएआरएमजी बैठक में अपने विचार तथा राय व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। गांव में पांच स्वयं सहायता समूहों को संगठित किया गया और सभी सदस्यों से यह सोचने का आग्रह किया गया कि आने वाली पीढ़ियों के लिए गांव को कैसे बेहतर बनाया जाए।

पहले गांव में 80 प्रतिशत शराब और अफीम का नशा था। घरेलू हिंसा तथा पारिवारिक कलह हर घर में आम बात थी। एनईआरसीआरएमएस के हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है। महिलाओं की खास देखरेख में इन स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का गठन किया गया था। जिन पांच एसएचजी का गठन किया गया, वे हैं: मोसोम, रंगो, बियांग, खुहाते मोटे और काशिक। स्वयं सहायता समूहों ने संगठित रूप से बैठक की और शराब व अफीम की बिक्री पर रोक लगाने का फैसला किया। नतीजतन, उन्होंने ऐसा प्रावधान किया, जिसके अनुसार जो कोई भी शराब या अफीम खरीदता अथवा बेचता है, तो उसे 5000 रुपये का भारी शुल्क देना होगा। कई साल बाद गांव शराब व अफीम से मुक्त हो गया है। घरेलू हिंसा लगभग समाप्त हो चुकी है और पुरुष अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं।

बुजुर्ग भी मदद को आगे आए
गांव बूरा और सरकार के लिए काम करने वाले कुछ पढ़े-लिखे बुजुर्ग इस पहल में महिलाओं की मदद कर रहे हैं। शुरुआत में, यह पुरुष आबादी द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था और बहस तथा झगड़े होते थे, लेकिन उत्साही समर्थकों और उनके साथ ही सही दिशानिर्देशों की मदद से, इसने पूरे गांव में सामाजिक विकास का कार्य किया

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