सुप्रीम कोर्ट का सोमवार को बेहद टाइट शेड्यूल: CAA की वैधानिकता सहित 220 याचिकाओं की करेगा सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट जिन 220 याचिकाओं की सुनवाई के लिए सोमवार को लिस्टिंग किया है, उनमें से कई ऐसी याचिकाओं का नंबर सुनवाई के लिए सालों बाद आया है। शीर्ष अदालत में यह जनहित याचिकाएं कई वर्षों से लंबित थीं। 220 याचिकाओं में सबसे प्रमुख सीएए के खिलाफ इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग की याचिका है। 

Dheerendra Gopal | Published : Sep 11, 2022 4:50 PM IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए सोमवार बेहद व्यस्ततम दिनों में एक होगा। सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार को 200 से अधिक जनहित याचिकाओं पर सुनवाई होने वाली है। इन पीआईएल में विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक यानी सीएए पर भी सुनवाई होगी। सीएए की वैधता को चुनौती देने वाले पीआईएल पर सुनवाई चीफ जस्टिस यूयू ललित की बेंच करेगी। एपेक्स कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई लिस्ट के अनुसार 220 याचिकाओं की सुनवाई सोमवार को होगी। 

220 याचिकाओं में कई याचिकाओं की सुनवाई सालों बाद 

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सुप्रीम कोर्ट जिन 220 याचिकाओं की सुनवाई के लिए सोमवार को लिस्टिंग किया है, उनमें से कई ऐसी याचिकाओं का नंबर सुनवाई के लिए सालों बाद आया है। शीर्ष अदालत में यह जनहित याचिकाएं कई वर्षों से लंबित थीं। 220 याचिकाओं में सबसे प्रमुख सीएए के खिलाफ इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग की याचिका है। 18 दिसंबर 2019 को याचिकाओं के बैच पर सुनवाई करते हुए, Supreme Court ने CAA के संचालन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन केंद्र को नोटिस जारी किया था।

संशोधित कानून हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों से संबंधित गैर-मुस्लिम अप्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान करता है, जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से देश में आए थे। इस याचिका की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी कर जनवरी 2020 तक जवाब मांगा था। हालांकि, कोविड की वजह से इस मामले में सुनवाई नहीं हो पाई थी। सीएए को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने कहा कि यह अधिनियम समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

इन जनहित याचिकाओं पर भी होगी सुनवाई

CJI की अगुवाई वाली पीठ, वी द वूमेन ऑफ इंडिया द्वारा दायर घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम पर भी सुनवाई करेगी। याचिका में कहा गया था कि 15 साल से अधिक समय पहले कानून बनाए जाने के बावजूद घरेलू हिंसा भारत में महिलाओं के खिलाफ सबसे आम अपराध है। 

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