ये कौन से आदिवासी हैं, जो गुस्सा आने पर कपड़े फेंककर पत्ते लपेट लेते हैं, मामला विचित्र है

Published : Aug 09, 2022, 02:34 PM ISTUpdated : Aug 09, 2022, 02:37 PM IST
ये कौन से आदिवासी हैं, जो गुस्सा आने पर कपड़े फेंककर पत्ते लपेट लेते हैं, मामला विचित्र है

सार

विरोध करने के सबके अपने-अपने तौर-तरीके होते हैं। यह तस्वीर आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू डिस्ट्रिक्ट के राम्पोचोडावरम ब्लॉक की है। यहां बिजली-पानी-सड़क और अन्य बेसिक सुविधाएं नहीं मिलने पर आदिवासी अर्धनग्न होकर विरोध करने निकल पड़े।

आंध्र प्रदेश. जब सरकार ने इन आदिवासियों की समस्या पर ध्यान नहीं दिया, तो वे कपड़े उतारकर और पत्ते लपेटकर विरोध करने निकल पड़े। विरोध करने के सबके अपने-अपने तौर-तरीके होते हैं। लेकिन यह मामला विचित्र है। यह तस्वीर आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू डिस्ट्रिक्ट के राम्पोचोडावरम (Rampachodavaram) ब्लॉक की है। यहां बिजली-पानी-सड़क और अन्य बेसिक सुविधाएं नहीं मिलने पर आदिवासी अर्धनग्न होकर विरोध करने निकल पड़े। ब्लॉक के कई गांवों के आदिवासियों ने आंगनवाड़ी केंद्र, स्कूल और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर अर्धनग्न और पत्तेदार टोपी पहनकर 4 किलोमीटर तक विरोध मार्च निकाला। यह विरोध मार्च अरला गांव से गांव जाजुला बंधा पहुंचा। बता दें कि रोलुगुंटा और कोय्यूरु मंडल के गांव अल्लूरी सीतारामाराजू और अनाकापल्ली जिलों की सीमा पर हैं।

यह है इन गांवों की समस्या
इन मंडलों के पेड्डा गरुवु, पितृ गेड्डा, अरला और जाजुला बंधा गांवों में रहने वाले आदिवासियों को लंबे समय से मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीना पड़ रहा है। प्रदर्शन के बाद आदिवासियों ने जाजुला बंधा गांव में धरना दिया। यह प्रदर्शन 9 अगस्त को आदिवासी दिवस की पूर्व संध्या पर यानी 8 अगस्त को किया। पहाड़ी की चोटी पर बसे चार गांवों के आदिवासी आंगनवाड़ी केंद्र, प्राइमरी स्कूल और पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। जाजुला बांदा के ग्राम प्रधान मर्री वेंकट राव ने कहा कि उनके गांव एक ऊंची पहाड़ी पर हैं। वहां करीब 400 परिवार रहते हैं। आंदोलन का नेतृत्व आंध्र प्रदेश जनजातीय संघ की 5वीं अनुसूची साधना समिति के जिला मानद अध्यक्ष के गोविंद राव कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इन गांवों में 0-14 वर्ष आयु वर्ग के 85 बच्चे हैं और उन्हें आंगनवाड़ी केंद्र या स्कूल के लिए 4 किमी चलना पड़ता है।

विकास जैसा यहां कुछ भी नहीं है
आदिवासियों को राशन का सामान लेने के लिए 20 किमी दूर बोनकुला पालेम गांव तक जाना पड़ता है। इसमें 8 किमी लंबी पहाड़ी सड़क भी है।  अगर कोई बीमार पड़ जाए या गर्भवती महिला हो, तो डोली पर लिटाकर अरला गांव के अस्पताल ले जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। पितृगड्डा और पेड्डा गुरु गांवों के कोर्रा सुब्बाराव और किलो नरसैय्या ने कहा कि इस आंदोलन का मकसद सरकार और अधिकारियों को उन्हें इंसान के रूप में पहचा दिलाने के लिए जगाना है। बताया जाता है कि गांवों में हर घर से 2,000 रुपये जुटाकर छह किलोमीटर लंबी सड़क बनाई थी, लेकिन वह बारिश से बह गई। 

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