दिल्ली में बिरसा मुंडा चौक: सराय काले खां का नाम बदला

Published : Nov 15, 2024, 02:42 PM ISTUpdated : Nov 15, 2024, 03:08 PM IST
Birsa Munda

सार

सराय काले खां चौक अब बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा। दिल्ली में बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण भी किया गया। केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने यह घोषणा की।

Sarai Kale Khan Chowk renamed: आदिवासियों में भगवान के रूप में पूजे जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर दिल्ली में बड़ी श्रद्धांजलि दी गई है। अब दिल्ली में बिरसा मुंडा के नाम पर एक चौक होगा। केंद्र सरकार ने सराय काले खां चौक को बिरसा मुंडा चौक के रूप में नामकरण किया है। आईएसबीटी बस स्टैंड के पास एक समारोह में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सराय काले खां चौक का नाम बदले जाने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि इस चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा करने का उद्देश्य विरासत का सम्मान करना है। आने वाली पीढ़ियां उनको याद कर उनके योगदान और बलिदान से प्रेरित होगी।

बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण

आईएसबीटी बस स्टैंड के बाहर स्थित चौक पर बिसा मुंडा की प्रतिमा का भी अनावरण किया गया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर, दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना सहित तमाम गणमान्य मौजूद रहे। कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री खट्टर ने कहा: मैं आज घोषणा कर रहा हूं कि यहां आईएसबीटी बस स्टैंड के बाहर बड़ा चौक भगवान बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा। इस प्रतिमा और उस चौक का नाम देखकर न केवल दिल्ली के नागरिक बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बस स्टैंड पर आने वाले लोग भी निश्चित रूप से उनके जीवन से प्रेरित होंगे।

कौन थे भगवान बिरसा मुंडा?

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक आदिवासी नेता बिरसा मुंडा ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश शोषण के खिलाफ छोटानागपुर क्षेत्र में बिगुल फूंका था। भगवान बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज ‘धरती आबा’ या ‘पृथ्वी के पिता’ के रूप में मानता है। उनके आंदोलन को “उलगुलान” या “विद्रोह” के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने आदिवासियों को औपनिवेशिक भूमि-हड़पने की नीतियों के खिलाफ़ एकजुट किया। मुंडा ने लड़ाई में लोगों से ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ उठने का आग्रह किया। मुंडा बिहार और झारखंड के सर्वमान्य हैं। उनका निधन सिर्फ़ 25 साल की उम्र में हो गया लेकिन उनकी विरासत कायम है। 15 नवंबर को केंद्र सरकार ने उनके योगदान के सम्मान में 2021 में ‘जनजातीय गौरव दिवस’ घोषित किया।

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