कोरोना से त्राहिमाम: देशवासियों की मदद क्यों नहीं कर रहे एनजीओ?

देश के बड़े एनजीओ को छोड़ दे तो छोटे-छोटे एनजीओ का संजाल हर गांव-कस्बे में फैला हुआ है। इनमें से तमाम एनजीओ किसी भी आपदा पर लोगों की मदद के लिए आगे रहते हैं। कुछ सरकार की मदद से तो कुछ लोगों की मदद से संचालित होते हैं। तमाम ऐसे एनजीओ हैं जो विदेशों से मदद लेकर भी किसी भी आपदा में मदद को हाथ बढ़ाते हैं। 

नई दिल्ली। कोविड-19 ने भारत में कोहराम मचा रखा है। भारतीयों की मदद के लिए दुनिया के तमाम देश सामने आ रहे हैं लेकिन इस महामारी में भी एनजीओ की कोई खास भूमिका नहीं दिख रही है। छोटे से छोटे मौकों पर मदद को आगे आने वाले एनजीओ आखिर क्यों बहुत कुछ नहीं कर पा रहे हैं ? यह सवाल जेहन में सबके है...आइए जानते हैं कि आखिरकार एनजीओ इस महामारी में कहां गायब हो गए हैं, क्यों उनकी कोई खास भूमिका नहीं दिख रही। 

एनजीओ की भूमिका पहले क्या रहती थी

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देश के बड़े एनजीओ को छोड़ दे तो छोटे-छोटे एनजीओ का संजाल हर गांव-कस्बे में फैला हुआ है। इनमें से तमाम एनजीओ किसी भी आपदा पर लोगों की मदद के लिए आगे रहते हैं। कुछ सरकार की मदद से तो कुछ लोगों की मदद से संचालित होते हैं। तमाम ऐसे एनजीओ हैं जो विदेशों से मदद लेकर भी किसी भी आपदा में मदद को हाथ बढ़ाते हैं। 

लेकिन कोविड काल में हो गए हैं असहाय

एक एनजीओ संचालक का कहना है कि कोविड की पहली लहर आई थी उसी वक्त केंद्रीय कानूनों में एक संशोधन कर दिया गया। इसके तहत अब कोई भी विदेशी मदद लेगा तो उसके लिए दिल्ली में फंड मंगाना जरूरी होगा। अब दूरदराज के इलाकों में रहने वाले दिल्ली में कैसे जाकर खाता खोलें। इसके अलावा कोई भी विदेशी मदद अगर आएगी तो उसके लिए सरकार की अनुमति लेनी होगी। ऐसे में कोई भी विदेशी दानदाता इन कागजी कार्रवाई में समय गंवाना नहीं चाह रहा है। एक एनजीओ चलाने वाले कहते हैं कि कई लोग विदेश से कांसेन्ट्रेटर भेजने को तैयार हैं लेकिन इसके लिए कागजी कार्रवाई इतनी बढ़ गई है और उसके लिए दिल्ली जाना पड़ेगा। 

क्यों नहीं हो पा रही है लोगों की मदद

दरअसल, पिछले साल भारत सरकार के फाॅरेन कंट्रिब्यूशन रजिस्ट्रेशन एक्ट एफसीआरए में संशोधन कर दिया गया। संशोधन के अनुसार भारत में चलने वाले कोई भी एनजीओ किसी तरह की विदेशी मदद नहीं ले सकेंगे। यही नहीं अगर विदेशों से कोई फंड एनजीओ को मिलता है तो वह सभी फंड सबसे पहले दिल्ली के बैंक खाते में जमा होना चाहिए। कानून में संशोधन के बाद एनजीओ के पास एक बड़ी समस्या सामने आ गई कि वह दिल्ली में जाकर बैंक में नया अकाउंट खोलें। 

कागजी कार्रवाई भी बहुत अधिक कर दिया 

एक एनजीओ संचालक का कहना है कि नया कानून कुछ सक्षम एनजीओ के लिए तो ठीक है जो दिल्ली से संचालित होते हैं लेकिन छोटे शहरों या कस्बों में काम करने वालों के लिए यह मुश्किलें खड़ी कर दिया है। हम चाहकर भी कोविड में किसी की मदद नहीं कर पा रहे हैं। अगर कोई फंड लेना चाहता है तो उसको कागजी कार्रवाई और नौकरशाही में अधिक समय गंवाना पड़ रहा है। दूसरा कोई भी कागजी खानापूर्ति नहीं हुई तो उसे अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा।

क्या है एफसीआरए?

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