Explainer: आखिर क्यों 9 लोगों की टीम को सौंपा गया DRDO की ओवरहॉलिंग का काम?

रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में व्यापक बदलाव लाने का फैसला किया है। इसके तहत  9 सदस्यीय एक समिति का गठन किया गया है। ये समिति DRDO में तकनीकी विकास के साथ कई अहम चीजों में बदलाव के लिए काम करेगी। 

DRDO: रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में व्यापक बदलाव लाने का फैसला किया है। प्रोजेक्ट्स में देरी और भारी लागत वृद्धि की वजह से इसके मिसाइल प्रोग्राम की कामयाबी के बावजूद DRDO फिलहाल एक बड़े बदलाव की कगार पर है। इस बदलाव का उद्देश्य अपने मिसाइल प्रोग्राम के अलावा तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देना भी है। DRDO में होने वाले इस बड़े बदलाव पर नजर डाल रहे हैं गिरीश लिंगन्ना।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और DRDO के साथ हुई बैठक में तीनों सेनाओं ने संगठन द्वारा महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स में देरी के खिलाफ अपनी शिकायतों की लंबी लिस्ट सामने रखी थी। इनमें न केवल लड़ाकू विमान, टैंक, ड्रोन, कम्युनिकेशन सिस्टम, नौसेना के लिए एडवांस्ड बैटरी सिस्टम से संबंधित शिकायते बताई गईं, बल्कि बुनियादी असॉल्ट राइफल्स से जुड़ी शिकायतें भी शामिल हैं।

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9 सदस्यों की एक समिति को सौंपा गया काम 
बता दें कि DRDO में होने वाले बड़े बदलाव का नेतृत्व सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे के विजय राघवन की अध्यक्षता में गठित 9 सदस्यों वाली एक समिति कर रही है। ये समिति रक्षा मंत्रालय के अलावा उद्योग और शिक्षा मंत्रालय से विशेषज्ञता हासिल कर रही है। समिति को DRDO की भूमिका को रिस्ट्रक्चर (पुनर्गठन) करने के साथ ही री-डिफाइन करने का काम सौंपा गया है। इसके अलावा समिति को अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सुविधाजनक बनाने, उच्च क्षमताओं वाली प्रतिभा को आकर्षित करने और अपने अनुसंधान प्रयासों को अनुकूलित करने पर सिफारिशें देने के लिए 3 महीने का समय दिया गया है।

इस समिति में देश के कई बड़े नाम शामिल 
DRDO में बदलाव के लिए गठित इस समिति में पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा शामिल हैं, जो इंडियन डिफेंस इंडस्ट्री तक सेना की पहुंच के प्रमुख प्रेरक हैं। समिति के अन्य सदस्यों में वाइस एडमिरल एसएन घोरमडे (रिटायर्ड), इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (IDS) के पूर्व प्रमुख एयर मार्शल बीआर कृष्णा (रिटायर्ड), L&T के जेडी पाटिल और महिंद्रा ग्रुप के एसपी शुक्ला, एमपी-IDSA थिंक टैंक के प्रमुख सुजान आर चिनॉय और IIT-कानपुर के मणींद्र अग्रवाल, ISRO वैज्ञानिक एस उन्नीकृष्णन नायर और रक्षा मंत्रालय की वित्तीय सलाहकार रसिका चौबे भी पैनल में शामिल हैं।

रक्षा मंत्रालय के तहत काम करत है DRDO
बता दें कि रक्षा विज्ञान संगठन और कई टेक्निकल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूशन को मिलाकर 1958 में स्थापित डीआरडीओ, रक्षा मंत्रालय के तहत काम करता है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। डीआरडीओ भारत की प्राइमरी रिसर्च एजेंसी भी है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोनॉटिक्स, लैंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग, हथियार, मिसाइल और नौसेना प्रणाली जैसे क्षेत्रों में एडवांस्ड डिफेंस टेक्नोलॉजी के लिए डेडिकेटेड लैबोरेटरीज शामिल हैं। 1958 में केवल 10 लैबोरेटरी के साथ अपनी शुरुआत करने वाला DRDO की अब देशभर में 52 लैब्स हैं।

सिर्फ कर्नाटक में DRDO की 14 LAB

सिर्फ कर्नाटक में ही रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की 14 लैबोरेटरी हैं।

1- वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान, बेंगलुरू (Aeronautical Development Establishment)

2- वैमानिकी परीक्षण रेंज (एटीआर) चित्रदुर्ग (Aeronautical Test Range)

3- सेंटर फॉर एयरबोर्न सिस्टम्स (CABS), बेंगलुरु (Centre for Airborne Systems)

4- सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स (CAIR), बेंगलुरु (Centre for Artificial Intelligence and Robotics)

5- डिफेंस एवियोनिक्स रिसर्च एस्टेबलिशमेंट, बेंगलुरु (Defence Avionics Research Establishment)

6- डिफेंस बायोइंजीनियरिंग एंड इलेक्ट्रोमेडिकल लेबोरेटरी (DEBEL) बेंगलुरु

7- रक्षा खाद्य अनुसंधान प्रयोगशाला, मैसूर (Defence Food Research Laboratory)

8- गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टेबलिशमेंट (GTRE) बेंगलुरु (Gas Turbine Research Establishment)

9- इलेक्ट्रॉनिक्स और रडार विकास संस्थान (LRDE) बेंगलुरु (Electronics and Radar Development Establishment)

10- माइक्रोवेव ट्यूब रिसर्च एवं डेवलपमेंट सेंटर (MTRDC) बेंगलुरु (Microwave Tube Research & Development Centre)

11- सोसाइटी फॉर इंटीग्रेटेड सर्किट टेक्नोलॉजी एंड एप्लाइड रिसर्च, बेंगलुरू (Society for Integrated Circuit Technology & Applied Research)

12- डीआरडीओ यंग साइंटिस्ट लेबोरेटरीज (DYSL), बेंगलुरु

13- सेंटर फॉर मिलिट्री एयरवर्थीनेस एंड सर्टिफिकेशन, बेंगलुरु (Centre for Military Airworthiness & Certification)

14- एडवांस्ड सेंटर फॉर एक्सीलेंस ऑन कम्पोजिट मटेरियल्स, बेंगलुरु (Advanced Centre for Excellence on Composite Materials)


कई सेक्टर्स में हैं DRDO की उपलब्धियां 
डीआरडीओ ने सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (SAM) पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रोजेक्ट इंडिगो के साथ सशस्त्र बलों के लिए अपना प्रारंभिक वेंचर शुरू किया। हालांकि, दुर्भाग्य से इस प्रोजेक्ट से कुछ खास हासिल नहीं हुआ और बाद में इसे बंद कर दिया गया। फिर भी अपनी स्थापना के बाद से DRDO ने जरूरी प्रणालियां और महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी बनाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। DRDO की ये उपलब्धियां अलग-अलग सेक्टर्स में हैं। इनमें एयरक्रॉफ्ट एवियोनिक्स, मानव रहित हवाई वाहन (UAV), छोटे हथियार, आर्टिलरी सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) सिस्टम, टैंक और बख्तरबंद गाड़ियां, सोनार सिस्टम, कमांड और कंट्रोल सेट-अप के साथ ही मिसाइल सिस्टम भी शामिल है।

मार्च, 2019 में DRDO ने बनाया भारत का पहला एंटी-सैटेलाइट सिस्टम
मार्च 2019 में DRDO ने भारत का पहला एंटी-सैटेलाइट सिस्टम बनाकर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। इससे देश की स्थिति एक अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में बढ़ी। 2016 में DRDO ने अपने शुरुआती डोमेस्टिकली प्रोड्यूस्ड हेवी-ड्यूटी ड्रोन 'रुस्तम 2' का सफल परीक्षण पूरा किया। ये अमेरिकी प्रीडेटर ड्रोन की तरह ही डिजाइन किया गया एक मानव रहित सशस्त्र लड़ाकू व्हीकल था।

DRDO के नेतृत्व में बनीं भारत की कई अहम मिसाइलें
डीआरडीओ ने भारत की पहली न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन INS अरिहंत के विकास में योगदान दिया, जो 2018 में ऑरेशनल हुआ। इसके अलावा DRDO का एक और उल्लेखनीय आविष्कार BSAT है, जो विमान में ऑटोमैटिकली बाहर निकलने वाला ब्लैक बॉक्स है। इसे विमान क्रैशन होने पर मलबे के बीच बचावकर्ताओं की सहायता के लिए डिजाइन किया गया है। इसके अलावा, DRDO ने अपने इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम के माध्यम से कई बैलिस्टिक मिसाइलों को बनाया है। इनमें पृथ्वी, त्रिशूल, अग्नि, आकाश और नाग जैसी मिसाइलें शामिल हैं।

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