कश्मीरी पंडित हैं आतंकवादियों का टारगेट, कत्लेआम से दहशत का माहौल, क्या घाटी में लौट रहा 1990 का दौर?

पिछले पांच हफ्ते में 14 सिविलियन मारे गए हैं। इनमें सात कश्मीरी मुस्लिम, चार गैर कश्मीरी मजदूर, दो कश्मीरी पंडित और एक सिख महिला शामिल है। कश्मीरी पंडितों को आतंकियों के टारगेट पर देख सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम तो कर दिए गए हैं लेकिन इन हालातों ने घाटी में एक बार फिर 90 के दशक की याद दिला दी है।

Asianet News Hindi | Published : Nov 11, 2021 10:00 AM IST

श्रीनगर : कश्मीर (kashmir) में अनुच्छेद 370 हटने के बाद हालात सुधरे थे, लेकिन अब फिर से बिगड़ रहे हैं। हिंदू, कश्मीरी पंडित और बाहर से आए लोग आतंकियों का सॉफ्ट टारगेट बन रहे हैं। हाल में घटी घटनाओं के बाद घाटी के लोगों में डर बैठ गया है। हालात ये हैं कि पिछले पांच हफ्ते में 14 सिविलियन मारे गए हैं। इनमें सात कश्मीरी मुस्लिम, चार गैर कश्मीरी मजदूर, दो कश्मीरी पंडित और एक सिख महिला शामिल है। कश्मीरी पंडितों को आतंकियों के टारगेट पर देख सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम तो कर दिए गए हैं लेकिन इन हालातों ने घाटी में एक बार फिर 90 के दशक की याद दिला दी है। तब गैर मुस्लिमों खासकर कश्मीरी पंडितों को रातों-रात घाटी से निकलना पड़ गया था।

क्या है ताजा मामला
दरअसर, सोमवार को बिजनेसमैन डॉक्टर संदीप मावा को आतंकी निशाना बनाना चाहते थे। लेकिन आतंकियों ने गलती से कश्मीरी मुस्लिम इब्राहिम खान को मार दिया जो संदीप का सेल्समैन था। डॉ. संदीप ने बताया कि पुलिस ने उन्हें पहले ही आगाह किया था कि उन पर हमला हो सकता है। उन्हें करीब डेढ़ महीने पहले ही दो पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर अलॉट किए गए थे। उस दिन वो खुद तीन बजे तक दुकान पर थे, इसके बाद अपनी  SUV वहीं छोड़कर दूसरी कार से घर पहुंचे थे। शाम को उन्हें खबर मिली उनके सेल्समैन को मार दिया गया है। संदीप की पुराने कश्मीर में ड्राय फ्रूट्स की बड़ी दुकान है।

उस दिन की आंखों देखी
घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने बताया कि इब्राहिम खान पर उस वक्त हमला किया गया, जब वह डॉक्टर संदीप की SUV में बैठ रहा था। चूंकि उस वक्त अंधेरा हो गया था तो आतंकियों ने सोचा कि यही संदीप मावा है, इसलिए वे शायद पहचान नहीं पाए और गलतफहमी में इब्राहिम को मार दिया। 45 साल का इब्राहिम श्रीनगर (Srinagar) के ईदगाह इलाके का रहने वाला था। उसके परिवार में 19 साल का बेटा और 16 साल की बेटी के अलावा पत्नी है। बेटे का मंगलवार को 12वीं का एग्जाम था। इसलिए वो पिता की अंतिम यात्रा में भी शामिल नहीं हुआ। हमले की जिम्मेदारी मुस्लिम जांबाज फोर्स ने ली है।

संदीप के पिता पर भी हुआ था हमला
संदीप एक बिजनेसमैन तो हैं ही लेकिन उन्होंने मेडिकल में पढ़ाई भी पूरी की है। साल 2019 में वो कश्मीर लौटे। उस वक्त जम्मू-कश्मीर से स्पेशल स्टेटस का दर्जा वापस लिया गया था। उनके पिता पर पहले आतंकी हमला हो चुका है। डॉ. संदीप मावा माखनलाल बिंद्रू के रिश्तेदार हैं, जिनकी 5 अक्टूबर को आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। बिंद्रू को उनके मेडिकल स्टोर में घुसकर गोली मारी गई थी। इस हमले के बाद संदीप ने कहा कि वे डरने वाले नहीं हैं और किसी हाल में कश्मीर नहीं छोड़ेंगे। 

एक साल में 27 हत्या
घाटी में एक साल के अंदर आतंकवादियों ने 27 बेगुनाहों की जान ली है। इनमें श्रीनगर में 12, पुलवामा में 4, अनंतनाग में 4, कुलगाम में 3, बारामूला में 2, बडगाम में एक और बांदीपोरा में एक की हत्या की। अक्टूबर का महीना इस साल का सबसे कातिल महीना साबित हुआ है। एक ही महीने में आतंकी मुठभेड़ों में कुल 44 मौतें हुई हैं। आतंकियों ने दुस्साहस करते हुए अक्टूबर में 12 सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाया। इसके अलावा 13 आम नागरिकों की जान भी आतंकियों ने ली है। हालांकि, सुरक्षा बलों ने 19 आतंकियों को एकाउंटर में ढेर भी किया है।

घाटी में कड़ी पहरेदारी
हालिया घटनाओं के बाद कश्मीर में सुरक्षा बेहद सख्त कर दी गई है। पैरामिलिट्री फोर्स के करीब पांच हजार अतिरिक्त जवान तैनात किए गए हैं। इनमें से तीन हजार तो अकेले श्रीनगर में तैनात किए गए हैं। नए बंकर्स बनाए गए हैं। कुछ साल पहले श्रीनगर को आतंकवाद से मुक्त माना जाने लगा था, लेकिन हालिया घटनाओं के बाद हालात बदले हैं। सुरक्षा बलों ने यहां स्थायी बंकर बनाए हैं। पुलिस और CRPF सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं।

घाटी में 1990 में क्या हुआ था
घाटी में 1989 से आतंकवाद पनपने लगा था। तब सितंबर 1989 में बीजेपी नेता और कश्मीरी पंडित तिलक लाल तप्लू की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। माना जाता है कि घाटी में ये किसी कश्मीरी पंडित की पहली हत्या थी। तिलक लाल तप्लू की हत्या के तीन हफ्ते बाद ही आतंकियों ने जस्टिस नीलकांत गंजू की भी सरेआम हत्या कर दी थी। उसके बाद 19 जनवरी 1990 वो दिन था, जब मस्जिदों से ऐलान किया गया कि या तो आजादी के लड़ाई में साथ दो या घाटी छोड़ो। इसके बाद गैर-मुस्लिमों खासकर कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाया जाने लगा। 

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