
देहरादून। केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) यानी भगवान शिव की पावन स्थली। देश के प्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिंगों (dvaadash jyotirling) में से एक केदारनाथ धाम में भगवान शिव लिंग रूप में विराजमान हैं। इसका उल्लेख स्कंद पुराण (Skanda Purana) के केदार खंड में भी किया गया है। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु कण-कण में भगवान शिव की उपस्थिति की अनुभूति करते हैं। कहा जाता है कि पांडवों के वंशज जन्मेजय ने इस मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है। बाद में आदि शंकराचार्य (Aadi Guru Shankaracharya) ने इसका जीर्णोद्धार कराया। साल 2013 में आई आपदा (2013 disaster) में मंदिर को छोड़कर शेष परिसर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। हाल में केंद्र सरकार ने यहां पुनर्निर्माण कार्य कराए हैं।
केदारनाथ धाम में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। इस धाम के कपाट हर साल अप्रैल या मई में खोले जाते हैं और भैयादूज पर्व पर बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल में बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली को पंचगद्दी स्थल ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर लाया जाता है। यहां बाबा 6 माह के लिए विराजमान रहते हैं। केदारनाथ धाम के संबंध में एक लोक अवधारणा के अनुसार, महाभारत के बाद पांडव अपने गोत्र के बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे। उन्हें बताया गया कि भागवान शिव की शरण ही उन्हें पाप से मुक्ति दिला सकती है। इसी कामना के साथ उन्होंने भगवान शिव की खोज के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान किया। इस दौरान भगवान शंकर ने उनकी परीक्षा लेनी चाही और वे अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे।
शिव को पाने के लिए जब भीम ने रखा विशाल रूप...
पांडवों को जब पता चला तो वह उनके पीछे-पीछे केदार पर्वत पहुंच गए। भगवान शिव ने पांडवों को आता देख भैंसे का रूप धारण किया और पशुओं के बीच जा छिपे। भगवान के दर्शन पाने के लिए पांडवों ने एक योजना बनाई और भीम ने विशाल रूप धारण किया और दोनों पैर केदार पर्वत के की ओर फैला दिए। कहा जाता है कि सभी पशु भीम के पैरों के बीच से होकर गुजर गए लेकिन भैंस के रूप में भगवान शिव भीम के पैर के नीचे से निकलने को तैयार नहीं हुए।
पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए भोलेनाथ, पाप से मुक्त किया...
भगवान शिव को पहचान कर भीम ने भैंस को पकड़ना चाहा तो वह धरती में समाने लगे। इसी बीच, भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। पांडवों के इन प्रयासों से भगवान शिव प्रसन्न हुए और पांडवों को दर्शन दिए। पांडवों ने भगवान शिव से हाथ जोड़कर विनती की। शिवजी ने पांडवों को पाप मुक्त कर दिया, तभी से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति को केदारनाथ में पूजा जाता है। माना जाता है कि इस भैंसे का मुख नेपाल में निकला, जहां इनकी पूजा पशुपतिनाथ के रूप में की जाती है।
सच्चे मन से स्मरण करने से मनोकामनाएं होती हैं पूरी
केदारनाथ धाम को 12 ज्योतिर्लिंगों में विशेष माना गया है। केदारनाथ धाम अति प्राचीन है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण पांडवों ने महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद कराया था। पुराणों के अनुसार केदारनाथ धाम को महिष यानी भैंसे का पिछला भाग है। मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी केदारनाथ का स्मरण करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सावन के महीने में केदारनाथ के दर्शन करना बहुत ही शुभ माना जाता है। 'स्कंद पुराण' में बताया गया है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से प्रश्न किया, जिसके उत्तर में भोलेनाथ बताया कि यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। भगवान शिवजी विस्तार से बताते हैं कि इस स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया था, तभी से यह स्थान उनके लिए आवास के समान है।
नारायण ऋषि ने की थी कठोर तपस्या
केदारनाथ की भूमि को स्वर्ग के समान माना गया है। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने कठोर तपस्या की थी। इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर सदैव के लिए इस स्थान पर निवास करने लगे।
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