अमृतसर की विधवा कॉलोनी की रुला देने वाली कहानीः नशे में डूबा इंसान, दर्द और सिसकियों में जिंदगी जी रही महिलाएं

विधवा कॉलोनी। कभी अमृतसर शहर के साथ लगता एक गांव था- मकबुलपुर। शहर बड़ा होते-होते इस गांव को अपने अंदर समेट ले गया। गांव से शहर में तब्दील होने के चक्कर में यहां नशा तस्करों ने अपना जाल बिछाया। इनके चंगुल में फंसे युवा और कमाने वाले।

मनोज ठाकुर, अमृतसर। नशा मेरे पति को मार रहा है। शनै: शनै: मौत का क्रूर पंजा उसे पकड़ रहा है। मेरे घर का दरवाजा मौत खटखटा रही है। मैं अब मौत को ज्यादा दिन अपनी दहलीज पर रोक नहीं सकती। किसी दिन वह मेरे आंगन में आ धमकेगी। ले जाएगी मेरे पति को। बेटे की तरह। वह भी मर ही गया। और हां, मेरा पति जिंदा, है भी कहां? एक लाश ही तो है। बस, बिस्तर पर पड़ा है। नशे में। उठेगा तो नशा मांगेगा। ना दो तो मुझे मारेगा। यह कहते उसे उसने अपनी कमर मेरी ओर कर दी। कुलविंदर (38 साल) की बातों ने मुझे भीतर तक हिला दिया। मैं उसकी कमर की ओर आंख उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। देर तक आंख बंद कर खड़ा रहा। हिम्मत नहीं थी, उसकी कमर की ओर देखने की। पति की पिटाई के गहरे जख्म काली लकीरों में तब्दील हो रहे थे। गीली आंखों ने मैंने उसके चेहरे की ओर देखा। वह शांत थी। दर्द और तकलीफ पीड़ा... जैसे उसकी जिंदगी के हिस्से से हो गए थे। मानो उसके दोनों थाम साथ-साथ चल रहे हैं। यह महिला अमृतसर की विधवा कॉलोनी में मकबुलपुर की निवासी थी। पढ़ें Asianet News Hindi की ये रिपोर्ट...

विधवा कॉलोनी। कभी अमृतसर शहर के साथ लगता एक गांव था- मकबुलपुर। शहर बड़ा होते-होते इस गांव को अपने अंदर समेट ले गया। गांव से शहर में तब्दील होने के चक्कर में यहां नशा तस्करों ने अपना जाल बिछाया। इनके चंगुल में फंसे युवा और कमाने वाले। 25 सालों में यहां नशे ने ऐसा आतंक मचाया कि पांच हजार की इस कॉलोनी में ज्यादातर घरों में किसी ने किसी ने अपनों को खोया है। किसी ने पति, किसी ने भाई, किसी ने बेटा। नाम पड़ गया विधवा कॉलोनी। क्योंकि हर मरने वाला अपने पीछे छोड़ गया, चीखती, सिसकती बेवा को। 

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नशे ने किसी का पति छीना, किसी का भाई और बेटा
यहां 70 से लेकर 35 साल की 389 ऐसी विधवाएं हैं, जिन्होंने नशे की वजह अपने पति को खोया है। नशे ने इलाके के चेहरे पर  ऐसी कालिख पोत गया, जिसके दाग धूलने का नाम नहीं ले रहे हैं। मकबुलपुर उर्फ विधवा कॉलोनी का इलाका अमृतसर ईस्ट विधानसभा क्षेत्र में आता है। यह वही विधानसभा क्षेत्र है, जहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने पंजाब के नशे के मुद्​दे पर अकाली दल को खूब घेरा है। उनका मुकाबला अकाली दल के बिक्रमजीत सिंह मजीठिया से है। जिन पर नशा तस्करी के आरोप में दिसंबर में केस दर्ज हुआ था। दोनों ही उम्मीदवार इस इलाके में चुनाव प्रचार के लिए आ रहे हैं। 

कुलविंदर बोली- अब खोने की कुछ नहीं बचा, बीमार बेटे का इलाज तक नहीं करा पाई
कुलविंदर कौर ने बताया कि उसका पति मैकेनिक था। फोरमैन के पद काम करता था। पता नहीं कैसे उसे नशे की लत लग गई। पहले तो उसे पता ही नहीं चला हो क्या रहा है? जब पता चला तो पति का इलाज कराया। लेकिन वह नशा नहीं छोड़ पाया। काम छूट गया। घर में जो था, सब बेच कर नशा कर गया। एक 15 साल का बेटा था। वह बीमार हुआ तो इलाज के पैसे ही नहीं थे। देखते ही देखते बेटा भी मर गया। अब वह खुद लोगों के घरों में काम कर गुजारा कर रही है। कुलविंदर ने बताया कि यहां तस्करों का आतंक है। लोग उनकी शिकायत करने से डरते हैं। क्योंकि नशा तस्कर यहां के नशेड़ियों से हमला करा देते हैं। यहां कई बार इस बात को लेकर विवाद हो गया है। वह इसलिए बोल रही है, क्योंकि अब उसके पास खोने को कुछ बचा ही नहीं है। मर भी गई तो क्या फर्क पड़ेगा। इसलिए वह खुल कर बोल रही है। 

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नशे से आंख गंवाई, बेटे भी नशा करते मारे गए
विधवा कॉलोनी के आखिर में धूप सेंक रहे बुजुर्ग राजकुमार (70 साल) की एक आंख खराब है। दूसरी से बहुत कम दिखता है। अब देख कर करना भी क्या है? राजकुमार कहते हैं कि नशे ने तो मेरी जिंदगी को अंधकार में धकेल दिया है। दो बेटे नशा करते-करते मर गए। सोनू  (41) और बिट्‌टू  (30 ) की नशे की ओवरडोज की वजह से मौत हो गई है। इनके दो दो बच्चे हैं। बिट्टू की पत्नी की भी मौत हो गई। अब किसी तरह गुजारा चल रहा है। 

नशा करने के लिए पैसे कमा रहे युवा
कॉलोनी निवासी दलबीर (49 साल) पहुंचते हैं। उसने बताया कि उसका एक भाई नशे की लत से मर गया है। दूसरा भाई नशे का आदी है। समझाओ तो झगड़ता है। दलबीर ने बताया कि यहां 500 रुपए में एक दिन का नशा मिलता है। चिट्‌टा यहां सबसे ज्यादा चलन में है। तस्कर के गुर्गे सुबह ही यहां आ जाते हैं। नशा करने वाले आंख खोलते ही नशा करते हैं। इसके बाद वह काम पर जाते हैं। शाम को जब वह वापस आते हैं जो भी कमा कर लाते हैं, इसमें से सबसे पहले नशा उपलब्ध कराने वाले का भुगतान किया जाता है। उसने बताया कि एक तरह से नशा करने वाले तस्करों क लिए ही पैसे कमा रहे हैं। 

शरीर साथ नहीं देता तो करने लगते क्राइम
नशेड़ी ज्यादा दिन काम भी नहीं कर पाते। क्योंकि शरीर धीरे-धीरे कमजोर होना शुरू हो जाता है। फिर वह चोरी और छोटे मोटे अपराध करते हैं। बाद में जब इस लायक भी नहीं बचते तो बिस्तर पकड़ लेते हैं। नशे के बिना वह तड़प-तड़प कर जान दे देते हैं। उसके एक भाई ने इसी तरह से दम तोड़ा था। 

नशा मुक्ति केंद्रों को तस्कर करा देते बंद
ऐसा नहीं है यहां नशा छुड़ाने के प्रयास नहीं हुए। नशा मुक्ति केंद्र स्थापित किए गए, लेकिन तस्करों ने उन्हें बंद करा दिया। वह केंद्रों पर आकर अक्सर हो हल्ला करते थे। डराते थे। इसलिए केंद्र बंद हो गए। स्वयं सेवी संस्थाए भी यदि यहां आती है तो उनके स्वयं सेवकों को यहां से भगा दिया जाता है। 

तस्करों पर नहीं की गई ढंग से कार्रवाई, इसलिए हावी
कुलविंदर कौर की यह बात सही भी मालूम पड़ रही थी। जब हम लोग इस कॉलोनी में थे, तो आसपास कई असामाजिक तत्व जम हो गए। जब तक हम वहां रहे, वह हमारे आस पास ही मंडराते रहे। हालांकि उन्होंने हमें कुछ नहीं बोला, लेकिन वह यह देख रहे थे कि हम यहां कर क्या रहे हैं। दैनिक भास्कर के स्थानीय पत्रकार अनूज शर्मा ने बताया कि नशे पर बस बात होती है। इसे खत्म करने की दिशा में ज्यादा कुछ नहीं हुआ। क्या तस्कर इतने ताकतवर हैं कि पुलिस या प्रशासन उन पर रोक न लगा सके। सच है तो इस दिशा में ईमानदारी से प्रयास नहीं हुआ है। 

नशा खत्म करने की दिशा में काम नहीं होता
उन्होंने बताया कि नशे की रोकथाम के लिए जिले का पहला रीहेबिलिटेशन सेंटर का निर्माण बादल सरकार के समय हुआ था। 2017 में सत्ता बदली तो नशे की रोकथाम के लिए कांग्रेस ने 2018 में नशे के आदी लोगों को घरों से पकड़ नशा छुड़ाओ केंद्रों तक पहुंचाया। गिनती बढ़ती गई तो दवा केंद्र खोल दिए गए। मकबूलपुरा में भी सेंटर खोला गया। जहां पहले महीने में ही 225 युवा नशा छोड़ने के लिए रजिस्टर हो गए थे। लेकिन ये केंद्र कोरोनाकाल में बंद हो गया। जो नशा छोड़ने के लिए रजिस्टर हुए थे, वे दोबारा नशे की गिरफ्त में चले गए हैं। यह दुखद है कि नशे से लोग मर रहे हैं। महिलाएं, विधवा और बच्चे अनाथ हो रहे हैं। नशे पर बात तो खूब हो रही है, इसे खत्म करने की दिशा में होता कुछ नहीं।

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