पंजाब में हार के बाद भी नहीं बदले गुरु: अकेले ही राजनीति चमकाने में जुटे, कहीं रिवर्स स्विंग का इरादा तो नहीं

सिद्धू लगातार अपनी ही पार्टी पर हमलावर है। कुछ दिन पहले ही उन्होंने कहा था कि चुनाव में कांग्रेस इसलिए हार गई क्योंकि उसके पांच साल के शासन में स्वार्थी लोगों ने राज्य के हितों पर काबू पा लिया और माफियाओं ने शासन किया। 

चंडीगढ़ : पंजाब चुनाव में करारी शिकस्त के बावजूद भी कांग्रेस (Congress) के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के तेवर नहीं बदले हैं। पार्टी के खिलाफ उनके बागी तेवर वैसे के वैसे ही हैं। आलम यह है कि अब सिद्धू संगठन से अलग अकेले ही काम करने में जुटे हैं। सिद्धू आज राजपुरा में थर्मल प्लांट के बाहर प्रदर्शन करेंगे। इस दौरान उनके साथ सिर्फ वही साथी होंगे जो कांग्रेस से नाराज हैं। इस प्रदर्शन में न तो पार्टी का कोई खास चेहरा होगा और ना ही प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग (Amrinder Singh Raja Warring)। ऐसे में सियासी गलियारों में कई सवाल खड़े होने लगे हैं।

एकला चलो की रणनीति पर काम
यह पहला मौका नहीं है जब सिद्धू पार्टी की गाइडलाइन या फिर पार्टी से अलग अपनी राह बना रहे हो। इससे पहले भी वह राज्यपाल से मिलने अकेले ही चले गए थे। उस वक्त भी उन्होंने पीसीसी चीफ और विपक्षी दल नेता प्रताप सिंह बाजवा तक को नहीं बुलाया था। तब सिद्धू बिजली संकट को लेकर राज्यपाल से मुलाकात की थी। सिद्धू का यही रवैया था कि पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा समेत कांग्रेस के तमाम दिग्गजों ने उनके इस रवैये पर सवाल उठाया था। हालांकि सिद्धू का इस नाराजगी पर कोई असर नहीं दिखाई दिया।

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न पद बचा, न बची सरकार फिर भी तेवर बरकरार
बता दें कि चुनाव से पहले नवजोत सिंह सिद्धू ने कई तरह की रणनीति पर काम किया। सबसे पहले उनके ही नेतृत्व में कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। सियासी गलियारों में चर्चा हुई कि सिद्धू को सीएम बनाया जा सकता है लेकिन यहां पार्टी ने एक और सियासी चाल चलते हुए चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को कुर्सी पर बैठा दिया। इसके बाद सिद्धू की महत्वाकांक्षा थी कि चुनाव में कांग्रेस का चेहरा वही बने लेकिन यहां भी हाईकमान ने उन्हें झटका दिया। जब पार्टी की करारी हार हुई तो हार का ठीकरा भी सिद्धू के सिर की मढ़ा गया और उनके इस्तीफा ले लिया गया। दोबारा पद पाने सिद्धू ने कई जुगत भी लगाए लेकिन पार्टी ने राजा वडिंग को प्रधान बना दिया। ऐसे में कहा जा रहा है कि सिद्धू एकला चलो की रणनीति पर काम कर कहीं रिवर्स स्विंग यानी पुरानी पार्टी में जाने के संकेत तो नहीं दे रहे हैं।

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