चुनाव के दौरान डेरा सच्चा सौदा सिरसा के पंजाब के अनुयायियों की बैठक में जुटी भीड़ के राजनीति मायने क्या हैं?

पंजाब के बठिंडा जिला के रामपुरफुल विधानसभा क्षेत्र के सलाबतपुरा डेरा में, डेरा सच्चा सौदा सिरसा की सभा की बैठक में जुटी भीड़ ने हलचल मचा दी है। चुनाव के मौके पर डेरा अनुयायियों की भीड़ को अपने अपने पक्ष में करने के लिए राजनीति दल पूरी ताकत लगाए हुए हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 12, 2022 11:32 PM IST / Updated: Jan 13 2022, 10:18 AM IST

मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। 9 जनवरी को पंजाब के बठिंडा जिला के रामपुरफुल विधानसभा क्षेत्र के सलाबतपुरा डेरा में, डेरा सच्चा सौदा सिरसा की सभा की बैठक में जुटी भीड़ ने हलचल मचा दी है। चुनाव के मौके पर डेरा अनुयायियों की भीड़ को अपने अपने पक्ष में करने के लिए राजनीति दल पूरी ताकत लगाए हुए हैं। माना जा रहा है कि डेरा ने यह आयोजन कर अपनी ताकत का अहसास कराया है। 

भीड़ को लेकर पंजाब का सीआईडी विभाग भी सक्रिय हो गया है। डेरा के प्रमुख सेवादारों से संपर्क कर आयोजन की वजह पता करने की कोशिश हो रही है। 
डेरा सच्चा सौदा पंजाब की राजनीति में खासा असरकारक रहता है। खासतौर पर मालवा में तो डेरा किसी भी दल को जीताने और हराने की कुव्वत रखता है। यही वजह है कि इस आयोजन में भाजपा के शीर्ष नेता हरजीत ग्रेवाल, सुरजीत जयानी, मंत्री विजयिंदर सिंगला, पूर्व मंत्री साधु सिंह धर्मसूत, कांग्रेस नेता जस्सी और कई अन्य राजनीतिक नेताओं ने भाग लिया।

डेरा ने समारोह के बारे में अब खुलासा किया कि शाह सतनाम सिंह का जन्मदिन मनाने के लिए नौ जनवरी को 24 लाख 75 हजार श्रद्धालु सलाबतपुरा पहुंचे थे। यह भी कहा गया कि शिविरार्थियों की देखभाल और लंगर आदि उपलब्ध कराने के लिए 50,000 श्रद्धालु ड्यूटी पर रहे। डेरा के समर्थकों का पंजाब की 70 विधानसभा क्षेत्रों वाले मालवा जिलों में डेरा सिरसा की मजबूत उपस्थिति है। 

राजनीतिक दलों को मिलता रहा है डेरा से समर्थन 
पंजाब में राजनीतिक दलों को पहले भी डेरा सिरसा से समर्थन मिलता रहा है। 2007 के चुनावों के दौरान, डेरा समर्थकों ने रैली की और कांग्रेस उम्मीदवारों को वोट दिया, जिससे अकाली दल के सिकंदर सिंह मलूका और बलविंदर सिंह भुंडर जैसे बड़े स्तंभों की हार हुई। तब माझा और दोआबा के कारण अकाली दल की सरकार बनी थी। इसके बाद अकाली दल डेरा समर्थकों के खिलाफ रहे। पंजाब में बेअदबी के मामले में हमेशा ही डेरा को संदेह की नजर से देखा जाता है। इतना ही नहीं पंजाब में सिख भी डेरा के खिलाफ हैं। कई मौकों पर डेरा समर्थकों और सिखों के बीच विवाद भी होता रहा है। 

हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में डेरा के राजनीति विंग ने समर्थन को लेकर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया था। ध्यान रहे डेरा के प्रमुख गुरमीत रामरहीम इस वक्त साध्वियों के रेप के आरोप में रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है। कांग्रेस सरकार में भी बेअदबी के मामले में गुरमीत को पंजाब लाकर पूछताछ करने की कई बार कोशिश की गई, लेकिन कोर्ट ने इसकी इजाजत नहीं दी। बेअदबी का मामला कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू जोर सोर से उठाते रहे हैं। उन्होंने पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस मामले में कई बार घेरा भी है। 

नतीजा यह निकला कि जैसे ही पंजाब के कांग्रेस ने कैप्टन को हटा कर चन्नी को सीएम बनाया तो सिद्धू बेअदबी कांड को लेकर फिर मुखर हो गए थे। इसका परिणाम यह निकला कि पंजाब पुलिस ने डेरा प्रमुख को अपनी हिरासत में लेने की पूरजोर कोशिश की। पर जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई तो पुलिस भी डेरा प्रमुख के मामले में ढीली पड़ गई। पंजाब व हरियायााण हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस की डेरा प्रमुख को अपनी हिरासत में लेकर पूछताछ करने की अर्जी खारिज कर दी थी। तब सरकार की ओर से दावा किया गया था कि वह सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। लेकिन चुनाव की वजह से मामला लटक गया। 

इधर डेरा के अनुयायी इस तथ्य से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। यह भी एक कारण है कि डेरा का आयोजन कांग्रेस के लिए चिंता की वजह बना हुआ है। डेरा अनुयायियों के गुस्से को अपने पक्ष में करने के लिए कई दल सक्रिय हो रहे हैं। डेरा का समर्थन हासिल करने के चक्कर में ही कई नेता भी वहां पहुंचे। लेकिन डेरा की ओर से पंजाब के चुनाव को लेकर कार्यक्रम में कोई बातचीत नहीं की गई। डेरा का तरीका भी यह रहता है कि वह मतदान से एक दिन पहले ही बहुत ही गुपचुप तरीके से अपने अनुयायियों को बता दिया जाता है कि किसे डेरा ने समर्थन दिया है। यह संदेश इतना गोपनीय रखा जाता है कि बाहर के लोगों को इसका पता नहीं चलता। 

कांग्रेस से नाराज हैं डेरा अनुयायी
डेरा इसके लिए अपने ही प्रचार तंत्र का सहारा लेता है। पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले सीनियर पत्रकार सुखबीर सिंह ने बताया कि डेरा का समर्थन हासिल करने की कोशिश हर कोई करता है। इस बार ऐसा महसूस होता है कि सिद्धू की वजह से डेरा अनुयायी कांग्रेस से नाराज हैं। कांग्रेस की ओर से उन्हें मनाने की कोशिश भी नहीं हुई। दूसरी ओर यह भी सही है कि डेरा का रूझान पिछले कुछ सालों से खासतौर पर जब से नरेंद्र मोदी केंद्र की राजनीति में सक्रिय हुए हैं, तब से भाजपा की ओर रहा है। 

इसलिए इस बार भी पंजाब में ऐसा हो सकता है कि भाजपा को डेरा अपना समर्थन दें। लेकिन यहां भाजपा की स्थित बहुत अच्छी नहीं है। इसलिए यहां दूसरे नेताओं की भी कोशिश है कि वह डेरा का समर्थन हासिल कर लें। इस कोशिश में डेरे के आयोजन में राजनेता भी पहुंच रहे हैं। हालांकि जब जब से डेरा प्रमुख गुरमीत जेल गया है, तब से डेरा के प्रति राजनेताओं का रूझान कुछ कम सा हो गया था। लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि डेरा एक बड़ा आयोजन कर अपनी अहमित साबित करने की कोशिश कर रहा है। वह अपनी ताकत का अहसास कराकर पंजाब की राजनीति में अपना दबदबा बनाना चाहता है। 

फिर से सक्रिय हो रही है राजनीति विंग 
9 जनवरी की रैली भी उसी दिशा में उठाया गया एक रणनीतिक कदम माना जा सकता है। सुखबीर ने बताया कि डेरा के अनुयायियों में ज्यादा संख्या एससी एसटी और गैर सिख हैं। पंजाब में इस समुदाय की संख्या भी अच्छी खासी है। क्योंकि जट सिख इस समुदाय को बराबरी का दर्जा नहीं देते हैं। इसलिए सिख और इस समुदाय के बीच टकराव की स्थिति बनी रहती है। पंजाब खुफिया विभाग के एक कर्मचारी ने ऑफ द रिकॉर्ड कहा कि डेरा प्रमुख के जेल जाने के बाद खामोश रहे डेरा सिरसा के पंजाब के अनुयायियों की अचानक गतिविधि चौंकाने वाली है। यह आयोजन बिना वजह नहीं किया गया है। डेरा की राजनीति विंग अब फिर से सक्रिय हो रही है। अब देखना यह होगा कि यह विंग किस दल को अपना समर्थन देती है। जब तक घोषणा नहीं होती, तब तक हर दल डेरा को साधने की कोशिश में रहेगा।

 

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